दुनिया आर्थिक मंदी के हालात से गुजर रही है, जबकि भारत की स्थिति अभी भी तुलनात्मक रूप से अच्छी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने भारत के आर्थिक विकास अनुमान को 7.4 प्रतिशत से घटाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया है। अभी भारत की चुनौतियों में मुद्रास्फीति, सख्त वित्तीय स्थिति, यूक्रेन पर रूस के हमले और कोविड महामारी का असर शामिल है। इसके अलावा, रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊर्जा और खाद्य वस्तुओं की कीमतों के चलते महंगाई बनी रहेगी। सख्त मौद्रिक नीति का असर ऋण पर पड़ सकता है। हम देख रहे हैं कि महंगाई को नियंत्रित करने के प्रयासों के चलते ऋण संकट भी बढ़ रहा है।
ऋण लेन-देन में कमी नहीं आनी चाहिए। आईएमएफ ने आगाह किया है और हमें मौद्रिक नीति के संबंध में फूंक-फूंककर कदम रखने चाहिए।
भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार चाहे जितनी कोशिश कर ले, दुनिया में जब मंदी का असर बढ़ेगा, तो भारत भी अछूता नहीं रहेगा। हमारी विशाल आबादी और उसमें युवाओं की बड़ी भूमिका की वजह से भी हम मंदी से अब तक बचते आ रहे हैं और साल 2008 में आई मंदी ने भी हमें कम सताया था। यह सुखद बात है कि हमारी विकास दर में अनुमानित गिरावट के बावजूद भारत 2022 और 2023 में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शुमार रहेगा।
ध्यान रहे, साल 2022 में चीन की विकास दर धीमी होकर 3.2 प्रतिशत और 2023 में 4.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने संकेत दिया है कि चीनी अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बनी रहेगी। यह भी ध्यान रहे कि चीन सहित दुनिया में संपत्ति बाजार भी मुश्किल में है। आवास या संपत्ति बाजार जब-जब मुश्किल में आता है, उससे जुड़े कम से कम 100 तरह के व्यवसायों पर असर पड़ता है। संपत्ति बाजार के मोर्चे पर भारत में भी कुछ असर होगा, लेकिन हालात बहुत खराब नहीं होंगे। जोखिम के पूरे आकलन के बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने वित्त वर्ष 2024 में भारत के लिए पूर्वानुमान को 6.1 प्रतिशत पर बरकरार रखा है।
अगस्त में जारी भारत के आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि विनिर्माण क्षेत्र के निराशाजनक प्रदर्शन के चलते अप्रैल-जुलाई में अर्थव्यवस्था उम्मीद से काफी कम 13.5 फीसदी की दर से बढ़ी है। यह भी महत्वपूर्ण है कि विश्व बैंक ने गत सप्ताह साल 2022-23 के लिए भारत के विकास के अनुमान को घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है, जबकि एशियाई विकास बैंक और भारतीय रिजर्व बैंक ने अनुमान घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया है। मतलब, जब विश्व में 3.2 प्रतिशत की दर से विकास होगा, तब भी भारतीय विकास दर दोगुनी रहेगी। क्या यह हमारी अर्थव्यवस्था की मजबूती का संकेत है?
वास्तव में, समग्र आकलन में भारत की स्थिति ठीक है और भारत तेजी से विकास कर रहा है, लेकिन भारत में एक आबादी ऐसी भी है, जहां तक विकास का पूरा लाभ नहीं पहुंच पा रहा है। भारत की असली चिंता यही है। ऐसा होना नहीं चाहिए, किसी की विकास दर आसमान छुए और किसी की विकास दर नकारात्मक हो जाए! वैश्विक वित्तीय संस्थाओं के अनुमानों को ध्यान में रखते हुए भारतीय कर्णधारों को अपनी आर्थिक नीति पर ध्यान देना चाहिए। हमारी सफलता इसमें नहीं है कि हम अनुमानित विकास दर को हासिल करें। भारत की जरूरतें बहुत ज्यादा हैं और क्षमता के अनुरूप भारत अगर प्रदर्शन करे, तो मुश्किल समय में दुनिया के लिए आदर्श बन सकता है।
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