क्या सावरकर के बलिदान से बढ़कर हो गई है सत्ता? शिवसेना के रवैये से तो ऐसा ही लगता है!

सावरकर के नाम से भाग रही है शिवसेना!

कॉमन मिनिमम प्रोग्राम…ये शब्द हमने देश की राजनीति में दो पार्टियों के गठबंधन के दौरान कई बार सुना है। इसको लेकर राजनीतिक पार्टियों का तर्क रहता है कि गठबंधन कुछ समान जनहित के मुद्दों पर होगा। इसके विपरीत ऐसे गठबंधन मात्र राजनीतिक महत्वाकांक्षा के पर्याय होते हैं। महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार का गठबंधन कुछ ऐसा ही है, क्योंकि यहां सत्ता के लिए शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी से गठबंधन किया है। शिवसेना ने इसके लिए अपनी विचारधारा और पार्टी के आदर्श स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के सम्मान की भी तिलांजलि दे दी है! नतीजा ये है कि अब पार्टी के लिए इस नाम को साथ लेकर चलना मुश्किल हो रहा है।

शिवसेना की राजनीतिक असहजता
वीर सावरकर के मुद्दे पर शिवसेना सदैव सकारात्मक नीतियों पर चली है, जिसके कारण कांग्रेस आक्रोशित रहती थी। शिवसेना ने वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग भी की थी। इसके विपरीत अब शिवसेना के लिए ही वीर सावरकर का नाम राजनीतिक असहजता का विषय बन गया है, क्योंकि पार्टी ने सत्ता के लिए सावरकर विरोधी कांग्रेस और एनसीपी से गठबंधन कर लिया। हालांकि, हाल ही में सावरकर के माफी कांड को लेकर जब बहस शुरु हुई तो शिवसेना का कहना था कि सावरकर ने कभी माफी मांगी ही नहीं थी।

इस मुद्दे पर शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने कहा, “वीर सावरकर ने कभी भी अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी थी। उन्होंने कहा कि एक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी जो एक दशक से ज्यादा समय तक जेल में रहा हो, वह अपने मकसद को पूर्ण करने के लिए रणनीति अपना सकता है, ताकि जेल से बाहर आए। राजनीति और कैद के दौरान अलग ही रणनीति अपनाई जाती है। अगर सावरकर ने ऐसी कोई रणनीति अपनाई तो फिर उसे माफी मांगना नहीं कहा जा सकता।”

कार्यक्रम का नाम तक बदला
शिवसेना नेता आए दिन अपने हिंदुत्व के एजेंडे के दिखावे में वीर सावरकर का नाम लेते रहते हैं। इसके विपरीत एक यथार्थ सत्य ये भी है कि कांग्रेस, एनसीपी के आक्रामक बयानों के कारण पार्टी असमंजस में आकर सत्ता के लिए सावरकर के नाम से किनारा कर लेती है। हाल ही में महाराष्ट्र के रत्नागिरी के ‘गोगटे जोगलेकर महाविद्यालय’ में सोमवार को ‘डिस्मैंटलिंग कास्टिज्मः लेसन्स फ्रॉम सावरकर्स इसेनशियल्स आफ हिंदुत्व’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई है, जिसका उद्घाटन राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी की उपस्थिति में होना है, लेकिन राज्य सरकार ने कार्यक्रम का नाम बदल दिया है। सूचना विभाग द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कार्यक्रम के विषय को बदलकर ‘डिस्मैंटलिंग हिंदुत्व’ कर दिया गया। ऐसे में इस मुद्दे पर स्थानीय लोगों ने विरोध करना शुरु कर दिया, नतीजा ये हुआ कि विभाग को पुनः एक नई प्रेस विज्ञप्ति जारी करनी पड़ी है।

मंत्री भी कर रहें अपमान
कुछ इसी तरह महाराष्ट्र के ऊर्जा मंत्री नितिन राउत ने अपने फेसबुक पर एक पोस्ट किया। कांग्रेस नेता ने इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान जारी दो डाक टिकटों के चित्र डाले थे। एक डाक टिकट सावरकर के चित्र वाला था, तो दूसरे में सुनहरा बंदर बैठा था। सावरकर के डाक टिकट की कीमत 20 पैसे थी और बंदर वाले डाक टिकट की कीमत एक रुपए थी। कीमतों के इस अंतर को लेकर सावरकर पर अभद्र टिप्पणी करते हुए नितिन राउत ने सवाल उठाया था कि, ‘कौन ज्यादा मूल्यवान?’

इस मुद्दे पर जनता से लेकर शिवसैनिकों में भी आक्रोश दिखा, लेकिन ठाकरे परिवार के रवैए से लग रहा था कि वो अनभिज्ञ हैं। नितिन राउत भी उद्धव सरकार की कैबिनेट में हैं। ऐसे में बढ़ रहे जनआक्रोश को लेकर उन्होंने अपना पोस्ट तो डिलीट कर लिया, किन्तु एक सत्य ये भी है कि शिवसेना ने इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। सावरकर पर आपत्तिजनक बात रखने वाले कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की शिवसैनिकों द्वारा खूब पिटाई की गई थी। इसके विपरीत अब ये मुद्दा संभवतः शिवसेना के लिए मायने ही नहीं रखता है।

महाराष्ट्र के कुछ जिलों का नाम बदलने को लेकर पहले शिवसेना आक्रामक थी, लेकिन पार्टी के नेताओं से इन मुद्दों पर कोई बोल ही नहीं फूटते हैं। इसके विपरीत शिवसेना का मुख्य मुद्दा केवल और केवल सत्ता रह गया है! नतीजा ये है कि शिवसेना जो वीर सावरकर के नाम को लेकर अपनी राजनीति करती थी, उसके लिए वीर सावरकर का नाम ही असहजता का मुद्दा बन गया है। पार्टी के वर्तमान रवैए को देख कर ये कहा जा सकता है कि अब शिवसेना सावरकर के नाम से ही भाग रही है।

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