ममता और क्या-क्या करेंगी
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद इस बार सारे चुनावी गणित फेल होने का दावा किया जा रहा है। वहीं इस बात को सही माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस बार मुस्लिम समाज के लोगों ने एकमुश्त वोट दिया है और लोगों का मानना है कि इस बार न ओवैसी फैक्टर चला, न कांग्रेस, लेफ्ट और आईएसएफ के जरिए कोई त्रिकोणीय मुकाबला। ऐसे में सवाल ये उठता है कि ये हुआ क्यों ? इस सवाल का जवाब सीधे शब्दों में दिया जाए तो ये कहा जा सकता है कि इन सभी ने मिलकर ममता बनर्जी की पार्टी TMC के साथ एक अदृश्य गठबंधन किया था, जिसका नुकसान बीजेपी को हुआ।
राजनीति में अकसर देखा गया है कि राजनीतिक दल किसी एक बड़े दल को हराने के लिए आपसी तालमेल के जरिए एक अदृश्य गठबंधन बना लेते हैं और फिर चुनाव जीतने के लिए सांकेतिक प्रयास करते हैं, लेकिन अंदरखाने उन्होंने सबसे बड़ी पार्टी के सामने हाथ खड़े कर दिए होते हैं। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में TMC ने भी AIMIM, ISF, कांग्रेस और लेफ्ट जैसी पार्टियों के साथ कुछ ऐसा ही किया, क्योंकि TMC प्रमुख ममता बनर्जी अपने कोर मुस्लिम वोट बैंक को तनिक भी बंटने नहीं देना चाहती थी।
पहले बात कांग्रेस लेफ्ट और ISF के गठबंधन की करें तो कांग्रेस ने इन चुनावों में दम ही नहीं लगाया। कांग्रेस की तरफ से बंगाल में कोई दिखा तो केवल लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी। इसके अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी चार चरणों तक बंगाल चुनाव से गायब रहे और वो पांचवें चरण के बाद जब चुनाव प्रचार करने आए, तो भी उनका रवैया उदासीन ही था। राहुल जहां-जहां रैलियां करने गए, वहां भी लेफ्ट कांग्रेस गठबंधन की जमानत जब्त हो गई। कुछ यही हाल 35 वर्ष शासन कर चुकी लेफ्ट का भी रहा, उसने अपनी भविष्य की रणनीति के तहत सारा ध्यान युवा नेताओं को खड़ा करने पर दिया, वहीं लेफ्ट के बुजुर्ग नेता अपने दफ्तरों तक ही सीमित रहे।
इन चुनावों में एक्स फैक्टर बनने का दावा करने वाले हैदराबाद के मुहल्ले के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के दावों की तो पोल ही खुल गई। ओवैसी की पार्टी के हाथ में चुनाव नतीजों से एक ढेला भी नहीं आया है। ओवैसी पूरे चुनाव प्रचार के दौरान ये दावा करते रहे कि उन्हें ममता बनर्जी का प्रशासन प्रचार नहीं करने देता, लेकिन असलियत बिल्कुल ही विचित्र है, क्योंकि बंगाल का पूरा प्रशासन तो चुनाव आयोग के हाथ में था। ओवैसी का ये रवैया दिखाता है कि वो केवल दिखावा कर रहे थे, जबकि उन्होंने चुनावों को कोई तवज्जो ही नहीं दी।
ऐसे में इन सभी पार्टियों के सांकेतिक चुनाव लड़ने का फायदा ममता बनर्जी को हुआ, क्योंकि इन चुनावों में मुस्लिम मतदाताओं ने एकजुटता के साथ ममता बनर्जी के समर्थन में वोट डाला। इस पूरे खेल के पीछे इस बात की संभावनाएं जताई जा रही हैं कि राज्य में बीजेपी को हराने के लिए ममता बनर्जी ने खुद ही पहले AIMIM, ISF, लेफ्ट और कांग्रेस जैसी वैटकटुआ बन चुकी पार्टियों से गठबंधन कर लिया था, जिससे ये मैदान छोड़कर भाग गईं।
ममता बनर्जी मान चुकी थीं कि उनकी मुख्य लड़ाई बीजेपी से है, ऐसे में संभव है कि इन सभी दलों को जनता के बीच तो बीजेपी की B टीम बताती थी, लेकिन असल में उन्होंने ही इन सब को अपना पार्टनर बना लिया था और उसका उन्हें फायदा भी हुआ, लेकिन इन सभी दलों को क्या पता कि ये बंगाल में पूर्णतः साफ हो चुके हैं।
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