नोटबंदी का लॉन्ग टर्म इफ़ेक्ट ये रहा, कांग्रेस पार्टी लगभग दिवालिया हो गयी है

ये तो होना ही था!

याद कीजिए, जब नवंबर 2016 में नोटबंदी हुई थी तो कांग्रेस ने मोदी सरकार के इस ऐतिहासिक कदम का सबसे ज्यादा विरोध किया था। यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रहे कांग्रेस नेता पी चिंदबरम ने इसे ब्लंडर कहा था, लेकिन पार्टी ने क्यों इतना विरोध किया, उसकी वजहें अब सामने आ रही हैं, क्योंकि कांग्रेस के पास फंड की कमी हो गई है। स्थिति ये है कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले कांग्रेस अभी तक की सबसे बड़े वित्तीय संकट से गुजर रही है, और इसके लिए पार्टी अब अपनी चंद राज्यों में चल रही सरकारों पर ही निर्भर हो गई है, और इसीलिए अलग-अलग राज्यों में एआईसीसी के रणनीतिकार मदद मांग रहे हैं।

कांग्रेस शासित यूपीए सरकार के दस साल में हुए भ्रष्टाचार को लेकर कहा जाता है कि पार्टी और उसके नेताओं ने करीब 12 लाख करोड़ का भ्रष्टाचार कर रखा है, जिसके चलते स्थिति ये है कि पार्टी अध्यक्ष तक से लेकर अन्य सभी नेताओं के खिलाफ केस चल रहे हैं। ऐसे में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की हालत पतली है, और वो वित्तीय संकटों से जूझ रही है, इसके चलते पार्टी कुछ राज्यों में बची सरकारों पर निर्भर हो चली है। एआईसीसी के रणनीतिकार इस मुद्दे पर लगातार राज्यों के नेताओं से मिल रहे हैं।

इस मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी की चिंताएं भी बढ़ रही हैं। जनसत्ता की रिपोर्ट बताती है कि कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के कहने पर एआईसीसी के रणनीतिकार पंजाब और महाराष्ट्र जैसे सूबे के नेताओं को गंभीर वित्तीय संकट के बारे में बता रहे थे। पार्टी की सबसे बड़ी चिंता पांच राज्यों केरल, असम, बंगाल, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी के चुनाव हैं। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि इन राज्यों में चुनाव अच्छे से लड़ना है तो पैसे का इंतजाम तो करना ही होगा। इसलिए अभी सबसे बड़ा मुद्दा फंडिंग ही है।

खबरों के मुताबिक अब बड़े-बड़े उद्योगपतियों द्वारा कांग्रेस को पहले जैसी मदद नहीं मिल रही है, जिससे पार्टी के पास फंड की कमी आ गई है। कांग्रेस की पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पुडुचेरी में सरकार है। वहीं महाराष्ट्र और झारखंड में वो सरकार के साथ गठबंधन में है। ऐसे में इन राज्यों के अलावा कोई भी उसे खास मदद नहीं पहुंचा पा रहा है। दूसरी ओर 2014 के बाद बीजेपी की फंडिंग का ग्राफ आसमान छू रहा है। इन स्थितियों के चलते एआईसीसी के बन रहे नए दफ्तर के खर्च को लेकर भी दिक्कतें है जिसके चलते पार्टी को अपने सांसदों और विधायकों से भी मदद मांगनी पड़ सकती है।

कांग्रेस के ही एक नेता का कहना है कि खर्चों को कम करने के साथ ही कांग्रेस आलाकमान मदद के लिए लोगों से आगे आने की अपील कर रहा है। पार्टी को प्रत्याशियों की मदद के लिये अब चंदे के पैसे का सहारा है। बड़े बिजनेस घराने अब कांग्रेस से बीजेपी की ओर पलायन कर गए हैं। चुनाव में खर्चे बढ़ते जा रहे है। 2019 को देखते हुए सोशल मीडिया की भूमिका भी अहम है। ऐसे में पार्टी के लिए पांच राज्यों के होने वाले चुनाव काफी चुनौतीपूर्ण होंगे।

इस पूरी परिस्थिति की वजह केवल एक ही है… नोटबंदी। एक वक्त ऐसा था कि कांग्रेस के पास उसके खुद के पैसे का ही हिसाब नहीं था। पार्टी को लेकर कहा जाता है कि सारा काम नकदी में ही होता था। ऐसे में जाहिर था कि कांग्रेस को 2014 में सरकार बदलने के बावजूद कोई खास असर नहीं पड़ने वाला था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्कीम शुरू से ही देश के भ्रष्टाचारियों को बर्बाद करने की ही रही है। ऐसे में उन्होंने 2016 में नोटबंदी का जो ऐलान किया उसका असर ये हुआ कि कांग्रेस पार्टी फंडिंग की मोहताज हो गई लेकिन उसके असर अचानक नहीं बल्कि अन्य राज्यों से उसकी सरकार जाने के बाद अब सामने आ रहे हैं, जो कि कांग्रेस के लिए काफी चिंताजनक स्थिति है, वहीं देश के अन्य राजनीतिक दलों के लिए ये एक हास्यास्पद विषय बन गया है।

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