ये नया भारत है, अकेला ही काफी है
जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुनाव हार गए थे तब चीन ने सोचा था कि एक बार फिर से उसे विश्व में अपनी गुंडागर्दी दिखाने को मिलेगा। खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ के देश अमेरिकी समर्थन से चीन के विरोध में खड़े हुए थे। चीन ने भारत के बारे में भी यही सोचा था कि ट्रंप की हार के बाद भारत बॉर्डर क्षेत्रों में झुकने के लिए मजबूर हो जायेगा। परन्तु ऐसा कुछ हुआ नहीं बल्कि इसके विपरीत चीन को ही पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार चीन के रक्षा मंत्रालय ने बुधवार को लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर नौ महीने से चल रहे सैन्य गतिरोध को दूर करने का संकेत देते हुए कहा कि पैंगोंग त्सो के दक्षिणी और उत्तरी तट पर चीनी और भारतीय सैनिकों ने कोर कमांडरों के बीच 24 जनवरी को बैठक के बाद डिसइंगेजमेंट यानि सेना की वापसी शुरू की।
हालांकि, भारतीय सेना की ओर से तत्काल कोई बयान नहीं आया। रक्षा मंत्री के कार्यालय ने कहा कि राजनाथ सिंह गुरुवार को राज्यसभा में पूर्वी लद्दाख में वर्तमान स्थिति के बारे में बयान देंगे। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिण तट पर कोर कमांडरों ने मंगलवार और बुधवार को मुलाकात की ताकि वे पहले चरण की तैयारी कर सकें।
इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि सेना की “एक चरणबद्ध वापसी होगी” क्योंकि यही “पारस्परिक रूप से तय किया गया” है। शुरुआत में armoured को वापस भेजा जा रहा है, जबकि फ्रंटलाइन सैनिकों अभी वहीँ बने रहेंगे जहां वे हैं।
योजना के तहत, ऊंचाइयों पर कब्जा करने वाले सैनिक बाद के चरण में वापस आयेंगे। पीएलए सैनिकों का उल्लेख करते हुए, सूत्रों ने बताया कि: “उनकी तरफ से वापसी शुरू हो चुकी है और भारी उपकरण तथा सैनिकों की वापसी की जा रही है। इन सभी मुवमेंट्स की निगरानी की जाएगी तथा हमें भी ऐसा ही करना होगा।”
रिपोर्ट के अनुसार “आर्टलरी के किसी भी मुवमेंट में और दो-तीन दिन लगेंगे। सैनिकों की वापसी तीन या चार दिनों के बाद हो सकती है। इस प्रक्रिया के लिए लगभग एक सप्ताह से 10 दिनों की समय-सीमा निर्धारित की गई है।”
चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता, वरिष्ठ कर्नल वू कियान ने एक लिखित बयान में कहा, “पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी और उत्तरी तट पर चीनी और भारतीय सीमावर्ती सैनिकों ने 10 फरवरी से डिसइंगेजमेंट शुरू किया।” उन्होंने कहा कि “यह कदम चीन-भारत कोर कमांडर स्तर की बैठक के 9 वें दौर में दोनों पक्षों द्वारा आम सहमति के अनुसार है।“

पिछले साल मई में शुरू हुए सैन्य गतिरोध को समाप्त करने के लिए कोई भी सहमति एक महत्वपूर्ण सफलता को चिह्नित करेगी। जुलाई में कुछ डिसइंगेजमेंट हुई थी लेकिन चीन ने इस प्रक्रिया को पूरा करने से मना कर दिया और दोनों देशों ने अतिरिक्त सैन्य बलों के साथ टैंक, तोपखाने और वायु शक्ति की तैनाती की थी। अब डिसइंगेजमेंट का एक ही अर्थ है और वह है चीनी सत्ता को भारत की शक्ति और दृढ़ निश्चय से डर लगने लगा है कि कहीं भारत से उसे फिर मुंह की न खाना पड़े और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेइज्जती सहनी पड़े।
जब भारत ने चीन को बॉर्डर पर मुंहतोड़ जवाब दिया था तब चीन बार बार भारत को अमेरिका और डोनाल्ड ट्रंप से प्रभावित बता रहा था और चेतावनी दे रहा था कि यह भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। जब डोनाल्ड ट्रंप हारे तो चीन ने सोचा कि अब भारत पीछे हट जायेगा। परन्तु ऐसा कुछ हुआ नहीं और भारत मजबूती से बॉर्डर पर चीन के खिलाफ डटा रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को डिसइंगेजमेंट के लिए मजबूर कर दिखा और यह सन्देश दिया कि भारत चीन के सामने किसी अन्य देश की मदद से नहीं बल्कि अपनी सेना के बल पर खड़ा है।
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