मोदी सरकार को घेरने के लिए कॉन्ग्रेस ने जारी किया चीनी FDI का फर्जी डाटा, UPA जमाने के आँकड़ों में भी कर डाली हेराफेरी
फिर खुली कॉन्ग्रेस के झूठ की पोल
मोदी सरकार को निशाना बनाने के चक्कर में कॉन्ग्रेस एक बार फिर झूठ फैलाती पकड़ी गई। इस बार उनका झूठ भारत में चीन से आ रहे फॉरेन डाइरेक्ट इन्वेस्टमेन्ट (FDI/ एफडीआई) को लेकर था। 4 जनवरी 2021 को आधिकारिक ट्विटर हैंडल से कॉन्ग्रेस ने एक इंफोग्राफिक ट्वीट किया जिसमें दर्शाया गया कि मोदी काल में चीन का FDI भारत में बढ़ा है।
कॉन्ग्रेस के चार्ट के अनुसार साल 2017 में चीनी एफडीआई $2.8 बिलियन थी। 2018 में यह बढ़कर $3.94 बिलियन और 2019 में $4.19 बिलियन हो गई। पार्टी ने मोदी कार्यकाल से जुड़ी इस डिटेल के बगल में अपने कार्यकाल के दौरान के आँकड़े भी पेश किए। इसमें दिखाया गया कि 2011 में ये राशि $0.3 बिलियन थी, 2012 में $0.31 बिलियन हुई और 2013 में $2.7 बिलियन पहुँची।
कॉन्ग्रेस के ट्वीट का स्क्रीनशॉट
मोदी सरकार को घेरने के लिए इस इंफोग्राफिक को शेयर करते हुए शायद कॉन्ग्रेस भूल गई कि ऐसा ही उछाल उनके UPA कार्यकाल के दौरान आया था। कहीं न जाकर उनके द्वारा पेश किए आँकड़ों को हीं देखें तो 2012 से 2013 तक में काफी उछाल आया है।
लेकिन, यहाँ सवाल कॉन्ग्रेस कार्यकाल से तुलना करके मोदी सरकार को सही साबित करने का नहीं है, बल्कि तथ्यों पर बात करने का है, जो ये बताते हैं कि कॉन्ग्रेस द्वारा पोस्ट किया गया ये इंफोग्राफिक बेबुनियाद है। हकीकत में दोनों देशों के बीच उपजे विवाद के चलते हाल के सालों में चीन के एफडीआई में गिरावट आई है।
कॉन्ग्रेस के दावों से उलट साल 2019-20 में चीनी FDI इस वित्तीय वर्ष में सिर्फ़ 163.77 मिलियन डॉलर था, न कि 4.14 बिलियन डॉलर था। इसके अलावा, पिछले तीन वर्षों में भी चीनी FDI में कमी आई है। यह 2017-18 में $350.22 मिलियन, और 2018-19 में $229.0 मिलियन था।
इन आँकड़ों का खुलासा वित्त राज्य मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने पिछले साल 14 सितंबर को लोकसभा में किया था जब उनसे इस संबंध में सवाल किए गए।
अब यहाँ ये भी साफ कर दें कि कॉन्ग्रेस ने सिर्फ़ भाजपा को लेकर झूठ नहीं फैलाया, बल्कि खुद के कार्यकाल को लेकर भी उनके पास जानकारी सही नहीं है। उनका दावा था कि 2013 में $2.7 बिलियन एफडीआई हुई। लेकिन हकीकत यह है कि भारत में कभी भी चीनी FDI ने 1 बिलियन डॉलर का आँकड़ा क्रॉस नहीं किया। 2013 में ये राशि $148 मिलियन थी, जो बाद के साल (2014) में गिरकर 121 मिलियन हो गई। फिर 2015 में यह $505 मिलियन पहुँची, लेकिन उसके बाद से यह लगातार कम हो रही है।
उल्लेखनीय है कि कोरोनो वायरस महामारी के कारण कंपनियों की कमजोर वित्तीय स्थिति से अवसर लेने वाली भारतीय कंपनियों के चीनी अधिग्रहण पर अंकुश लगाने के लिए, भारत सरकार ने चीन से एफडीआई के मानदंडों को कड़ा कर दिया है। इस साल अप्रैल में केंद्र सरकार ने एक प्रेस नोट 3 जारी किया था, जिसमें उन्होंने सूचित किया था कि भारत से सीमा साझा करने वाले देशों से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) केवल सरकार की मंजूरी के बाद ही दिया जाएगा।
अब चूँकि इस नियम में चीन का नाम अलग से नहीं है, लेकिन फिर भी इसमें यह लिखा गया है कि यह केवल भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों को लक्षित करता है, जिसका मतलब साफ है कि नियम को बनाने के पीछे मुख्य लक्ष्य चीन को टारगेट करना है।
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