राकेश टिकैत- वंशवाद का नमूना और एक हारा हुआ नेता, जो अब अपने अस्तित्व के लिए किसानों की बलि चाहता है
टिकैत के नापाक बोल - सुनो भाइयों! यहाँ 10,000 किसान मारे जाएंगे
संत विश्रवा के बारे में सुना है? यदि नहीं, तो आपको बताएँ कि वे एक गुणी और ज्ञानवान व्यक्ति थे, जिन्होंने आयुपर्यंत सदाचार और सद्गति के मार्ग पर लोगों को चलना सिखाया। लेकिन उनकी ये नीतियाँ उनके पुत्र पर काम नहीं आई, क्योंकि वह ज्ञानवान होते हुए भी एक अवगुण – ‘असीमित महत्वकांक्षा’ से ग्रसित था। यही पुत्र बाद में लंकापति रावण बना जिस कारण आज संत विश्रवा का नाम हर कोई सम्मान के साथ नहीं लेता।
कुछ ऐसा ही कारनामा कलियुग में एक व्यक्ति दोहराना चाहता है, जिसका नाम है राकेश टिकैत। इनके पिता ने जिस कृषि कानून को लागू कराने के लिए दिन रात एक किये थे, और इनका भाई जिस कानून के लिए सरकार से बातचीत करने तक को तैयार है, उसी कानून के विरोध के नाम पर ये आदमी अपने आप को नष्ट करने के साथ ही लाखों किसानों की बलि चढ़ाने तक को तैयार है।
राकेश टिकैत एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार इस ‘किसान नेता’ ने धमकी भरे लहजे में कहा है कि ‘किसान आंदोलन’ तब तक चलेगा, जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जाती। इसके अलावा उन्होंने ये भी कहा कि यदि किसी ने जबरदस्ती उन्हें हटाने की कोशिश की, तो 1000 नहीं, 10000 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा।
राकेश टिकैत के अनुसार, “किसानों का यह आंदोलन जारी रहेगा। किसान बातचीत के बाद तय करेंगे कि सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के पास जाएंगे या नहीं। यदि सरकार ने जबरदस्ती किसानों को हटाने की कोशिश की तो इसमें 10000 लोग मारे जा सकते हैं। किसान यहां से अब कहीं नहीं जा रहा है। सरकार का आकलन है कि आंदोलन हटाने पर एक हजार आदमी मारे जा सकते हैं, लेकिन सरकार का यह गलत आकलन है। क्योंकि अगर किसानों को जबरन हटाने की कोशिश की गई तो यहां 10 हजार आदमी मारे जा सकते हैं”।
परंतु यह राकेश टिकैत है कौन, और यह क्यों अपने खानदान का नाम बदनाम करने पर उतारू हैं? राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अग्रणी कार्यकर्ता हैं, जिनके भाई नरेश टिकैत इसी यूनियन के अध्यक्ष है, और इनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत एक बेहद प्रसिद्ध किसान नेता रहे हैं, जो हमेशा किसानों के हक लिए लड़े हैं।
महेंद्र सिंह टिकैत ने 1993 में कृषि कानूनों में सुधार की मांग पर दिल्ली में जमकर प्रदर्शन किया था, और तत्कालीन सरकार को घुटने टेकने पर विवश भी किया। कितनी अजीब बात है, जिन किसानों को आढ़तियों और दलालों के मायाजाल से मुक्त करने के लिए उनके पिता ने काफी लंबी लड़ाइयाँ लड़ी थी, आज उन्हीं का बेटा इन मांगों को पूरा करने वाले कानूनों के विरोध में मरने मारने की बातें कर रहा है।
राकेश टिकैत एक अकर्मण्य अराजकतावादी होने के साथ साथ एक असफल राजनेता भी रहे हैं। राकेश टिकैत राष्ट्रीय लोक दल की ओर से 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव भी लड़े थे, लेकिन दोनों ही बार जनाब धूम धड़ाके से हारे। इससे भी हास्यास्पद बात तो यह है कि यह वही राकेश टिकैत हैं, जिन्होंने जून 2020 में कृषि कानून के पारित होने पर बधाई दी थी।
अभी थोड़े ही दिन पहले इनके भाई नरेश टिकैत ने स्पष्ट किया था कि जो भी किसान आंदोलन के नेताओं द्वारा सरकार से बातचीत में खलल डालेगा, उसे किसान बाहर निकाल फेंकेंगे। टिकैत के अनुसार, “हम सरकार से समाधान को तैयार हैं, लेकिन समिति के 40 लोगों में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो समाधान के बजाय मामले को आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे लोगों को समझाया जाएगा या बाहर किया जाएगा। किसान अपनी समस्या का समाधान चाहते हैं और सरकार उनकी बातों को सुन भी रही है, उसके बाद भी कुछ लोगों से सहमति पूरी नहीं बन पा रही है”। कहीं इसीलिए तो राकेश टिकैत कुछ ज्यादा ही आक्रामक नहीं हो रहे हैं?
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि राकेश टिकैत एक अयोग्य और अकर्मण्य नेता हैं, जिन्होंने अपनी महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए हरसंभव तरीका अपनाया है, चाहे इसके चक्कर में आमजनों की जान पर खतरा ही क्यों न बन आए। ऐसे लोगों के दबाव में सरकार या कोर्ट किसी को भी नहीं आना चाहिए, और इन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई भी की जानी चाहिए।
विचारक को धन्यवाद.
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