अब सरकार को इस अराजकतावादी आंदोलन को समाप्त करने के लिए सुरक्षा बलों को खुली छूट दे देनी चाहिए!
किसान आंदोलन में सरकार द्वारा दिए गए सभी विकल्पों को नकार देने के बाद आज किसान आंदोलन इस बात को प्रमाणित कर रहा है कि इस आंदोलन का मकसद किसानों के हित को साधने का कभी नहीं था।इस पूरे आंदोलन का केवल एक ही मकसद था और वह था देश को एक ऐसे अस्थिरता के वातावरण में धकेलना जहां वैश्विक स्तर पर भारत सरकार और देश की बदनामी हो।
शुरू से ही इस आंदोलन को देश विरोधी तत्वों ने हाईजैक कर लिया था। तथाकथित किसान आंदोलन के अंदर समय-समय पर खालिस्तान तथा देश विरोधी तत्वों के सांठ-गांठ की खबरे भी आती रहती थी। परन्तु सरकार ने इस आंदोलन को खत्म करने के लिए फर्जी किसानों की लगभग सभी मांगे मान ली थी परन्तु इन किसानों को अपनी मांगों के माने जाने से तनिक भी खुशी न थी क्योंकि इनका लक्ष्य तो देश को अस्थिर करने का था, ना कि कोई हल निकालने का।
तो प्रश्न यह है कि तमाम क्रिया-कलापों के गुज़र जाने के बाद अब सरकार के पास क्या विकल्प बचता है?
किसानों की माने तो 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के रूप में वो एक ऐसी अराजकता पैदा करने वाले हैं जो देश की सुरक्षा के लिए एक खतरनाक बात हो सकती है। अब सरकार को भी चाहिए कि जिस प्रकार पंजाब में एक समय खालिस्तानी आतंकियों से निपटा गया था ठीक उसी प्रकार की कार्रवाई अब यहां भी हो क्योंकि देश को किसी भी प्रकार के संकट में डालने वाले लोगों का अंजाम वैसा ही होना चाहिए। देश में अराजकतावादी माहौल तैयार करने वाले फर्जी किसानों के इस व्यापक आतंक से भरे आंदोलन पर एक जबरदस्त कार्रवाई होनी चाहिए, जिससे देश सुरक्षित महसूस करे।
सरकार ने अपने सारे विकल्प आजमा कर यहां देख लिए हैं यहाँ तक की गतिरोध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए केंद्र सरकार ने फैसला किया था कि नए कृषि कानून डेढ़ वर्ष तक लागू नहीं किए जाएंगे। केंद्र इस संबंध में एक हलफनामा कोर्ट में पेश करने को तैयार थी। सरकार एक संयुक्त कमेटी के गठन को तैयार थी तथा वह आंदोलनकारी किसानों के प्रतिनिधियों के साथ कानूनों पर चर्चा के लिए भी तैयार हो गई थी। परन्तु निष्कर्ष निकलने के बजाय स्थिति और भी निरंकुश होती जा रही है ऐसे में देश को सुरक्षित रखने के लिए सुरक्षा बलों को उचित कार्रवाई करने का आदेश देकर देश के सामने एक उचित मिसाल कायम की जाए।जिससे देश विरोधी तत्वों को यह सीधा संदेश जाए कि देश की सरकार इतनी भी कमजोर नहीं है कि देश को अस्थिर करने वाली किसी भी साजिश को कामयाब होने दे।
सरकार ने बातचीत का रास्ता देकर एक बेहतर कदम उठाया था। यदि वे अपने अड़ियल रवैये को नहीं बदलते तो सरकार यह सिद्ध कर देगी कि ये आंदोलनकारी समाधान नही टकराव चाहते हैं, तथा आंदोलन पूर्णतः राजनीतिक स्वार्थों से प्रेरित है। इसका उद्देश्य केवल केंद्र सरकार की छवि धूमिल करना है। जिसका करारा जवाब देना देशहित में होगा।
Comments
Post a Comment