यह महज कोई आंदोलन नहीं है बल्कि देश को अस्थिर करने की साजिश है
पंजाब और हरियाणा से आकर राजधानी दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर अनेकों किसान संघों के अंतर्गत धरने बैठे किसानों का रुख देखकर लगता ही नहीं है कि इन्हें कृषि कानून के बारे में पूरी जानकारी भी होगी। ये ठीक उसी तरह का आंदोलन बन गया है जैसे साल 2020 की शुरुआत में शाहीन बाग का देश विरोधी धरना था। शाहीन बाग और किसानों के धरने में एक से अधिक समानताएं हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि इस धरने पर बैठे किसानों से सरकार बात कर रही है जबकि शाहीन बाग के प्रदर्शकारियों को सरकार ने कोई महत्व ही नहीं दिया था।
पंजाब के किसान ऐसे मुद्दे पर परेशान होकर प्रदर्शन कर रहे हैं जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। उन्हें अलगाववादियों और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से ओतप्रोत लोगों द्वारा बरगलाया गया है। पंजाब के किसानों से कहा गया है कि सरकार ने कृषि कानून के जरिए एमएसपी खत्म कर दी है और साथ ही अब उनकी भूमि उद्योगपतियों को बिना उनकी सहमति के दे दी जाएगी। जबकि हकीकत में कहा जाए तो यह सफेद झूठ है जो राजनीतिक पार्टियां अपने निजी स्वार्थ के लिए बोल रही हैं। मोदी सरकार के इस सफल प्रयास के खिलाफ प्रदर्शन इसलिए किया जा रहा है क्योंकि सरकार के खिलाफ इन राजनीतिक पार्टियों के कोई भी पैंतरे अभी तक काम नहीं आए हैं।
सभी को याद होगा कि दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में भी कुछ इसी तरीके से झूठ फैला कर विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया गया था। इसमें कहा गया था कि मुसलमानों की नागरिकता को खतरा है। सीएए और एनआरसी के जरिए मुस्लिम लोगों की नागरिकता खत्म की जाएगी। इसके अलावा यह भी कहा गया था कि भारत में मुसलमानों और अल्पसंख्यकों की आवाज दबाई जा रही है। शाहीन बाग का पूरा आंदोलन इन भ्रमों के इर्द-गिर्द रहा था, जिसमें कई राजनीतिक पार्टियों से लेकर वामपंथी नेताओं और बुद्धिजीवियों की राजनीतिक महत्वकांक्षाएं थीं।
यह ध्यान देने वाली बात है कि शाहीन बाग का विरोध प्रदर्शन उस स्थान पर हुआ था जो दिल्ली और नोएडा को आपस में जोड़ता है। इस मार्ग को ठप करके किया गया आंदोलन दिल्ली-एनसीआर के एक बड़े हिस्से को प्रभावित कर रहा था। कुछ ऐसे ही किसान आंदोलन के दौरान भी दिल्ली की सीमाओं को अवरुद्ध किया गया है, जिसके चलते सिंघू बॉर्डर पूरी तरह बंद हो चुका है। अन्य कई बॉर्डर पर अभी आंशिक रूप से ट्रैफिक चल रहा है लेकिन परिस्थितियों के बदलते रुख को देखते हुए प्रशासन द्वारा इन्हें बंद किया जा सकता है। कुछ इसी तरह पिछले महीने ही किसानों ने पंजाब में रेलवे ट्रैक बंद कर दिया था जिससे पंजाब को आर्थिक रूप से काफी नुकसान हुआ था।
शाहीन बाग का आंदोलन सरकार विरोधी प्रदर्शनों का ट्रेडमार्क बन गया है। उस बिरयानी को तो कोई भूल ही नहीं सकता, जिसके स्वाद के लालच में ही लोग प्रदर्शन करने शाहीनबाग चले जाते थे। लोगों को प्रदर्शन करने के लिए दैनिक आधार पर पैसा भी दिया जाता था। दिल्ली के गाजीपुर में भी किसान आंदोलन में मिल रही मुफ्त बिरयानी ने एक बार फिर लोगों को चकित कर दिया है क्योंकि दोनों आंदोलन के बीच समानताएं हद से ज्यादा हो गई हैं। सोशल मीडिया पर भी लोग अब दोनों के बीच समानता बता रहे हैं।
शाहीन बाग का विरोध प्रदर्शन सरकार के विरोध के साथ ही हिंदुओं का विरोध भी कर रहा था। फरवरी में पूर्वोत्तर दिल्ली के कई इलाकों में हुए हिंदू विरोधी दंगों के बावजूद सरकार ने इस को कोई तवज्जो नहीं दी, इस उम्मीद के साथ कि देश के अन्य किसी क्षेत्रों से ऐसी कोई खबरें नहीं आएंगी। इस आंदोलन की एक और बड़ी समानता शाहीन बाग के देश विरोधी प्रदर्शन वाली बिल्किस दादी भी हैं। जिन्होंने उस आंदोलन से एक वैश्विक पहचान पाई, टाइम्स मैगजीन ने उन्हें दुनिया की 100 शक्तिशाली महिलाओं में शामिल किया।
शाहीन बाग वाली बिल्किस दादी भी किसानों के समर्थन में उतर आईं। दादी जब सिंघू बॉर्डर पर अराजकता को विस्तार देने पहुंचीं तो, पुलिस ने उनके मंसूबों को नाकाम करते हुए उन्हें हिरासत में ले लिया। किसानों का आंदोलन अलगाववादियों और खालिस्तानी समर्थकों द्वारा भी हाईजैक करने की कोशिशें की गईं, जिससे इस आंदोलन की छवि भी एक देश विरोधी आंदोलन की बनने लगी है। इस पूरे प्रकरण में एक सकारात्मक बात यह है कि किसानों के मुद्दों पर केंद्र सरकार लगातार बातचीत करके मामले को हल करने की कोशिश में काम कर रही है, जिसके चलते ये उम्मीद लगाई जा रही है कि जल्दी गलत नियत से किया गया प्रदर्शन खत्म होगा।
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