जिस अखबार ने लादेन को लिखा था ‘शहीद’, उसी का पत्रकार पहुँचा था हाथरस, योगी सरकार ने कोर्ट में पेश किया सबूत
उत्तर प्रदेश के हाथरस कांड के दौरान हिरासत में लिए केरल के स्वघोषित पत्रकार सिद्दीक कप्पन (Siddique Kappan) की रिहाई को लेकर यूपी सरकार लगातार विरोध कर रही है। हाल में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करके कप्पन की बेल याचिका नामंजूर करवाने के लिए हैरान करने वाले कई प्रमाण पेश किए।
केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (KUWJ) के पत्रकार सिद्दीक कप्पन पर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के साथ जुड़े होने का आरोप है। 5 अक्टूबर को उसकी गिरफ्तारी हाथरस जाते समय की गई थी। KUWJ ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर इस गिरफ्तारी को अवैध बताया था और कप्पन की जमानत माँगी थी। लेकिन, यूपी सरकार ने कप्पन की रिहाई पर विरोध दर्ज कराते हुए सोमवार (14 दिसंबर 2020) को कहा कि कप्पन कथित तौर पर प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया और पीएफआई से जुड़ा है।
उत्तर प्रदेश सरकार का कहना बस यही है कि यदि आरोपित की जमानत याचिका को मंजूरी दी गई तो इससे जाँच बाधित होगी और आरोपित दोबारा उन्हीं गतिविधियों में शामिल होगा, साथ ही जाँच एजेंसियों के लिए अनुपलब्ध हो जाएगा।
इतना ही नहीं सरकार ने अपने हलफनामे में कप्पन के पत्रकार होने की बात का भी विरोध किया। साथ ही KUWJ की प्रमाणिकता पर सवाल उठाए। KUWJ पर कप्पन की वास्तविक पहचान छिपाने का आरोप भी लगाया गया और कहा गया कि कप्पन ने जिस अखबार में काम करने का दावा किया है, वो न्यूजपेपर “थेजस (Thejas)” दिसंबर 2018 में ही बंद हो चुका है।
थेजस के पूर्व संपादकों को लेकर हलफनामे में कहा गया कि वह भी पीएफआई के सदस्य थे और कप्पन अखबार में पत्रकार के तौर पर नहीं बल्कि कॉन्ट्रिब्यूटर के लिहाज से काम करता था। सरकार की ओर से प्रमाण पेश करने के लिए अखबार के मुख्य पेज की कॉपी का भी यूज किया गया। ये पृष्ठ 30 नवंबर 2011 को प्रकाशित अखबार का मुख्य पेज है। इस पृष्ठ से ज्ञात होता है कि थेजस अखबार के विचार कितने कट्टरपंथी थे कि वो ओसामा बिन लादेन जैसे खूँखार आतंकी को “शहीद” लिखने तक से नहीं चूके।
राज्य की ओर से पेश किए गए हलफनामे में कप्पन को मास्टरमाइंड कहकर पेश किया गया है और कई दंगों में उसकी भूमिका भी बताई गई है। यूपी सरकार की जाँच में कहा गया है कप्पन के तार कई पीएफआई सदस्यों, जो सिमी नाम के आतंकी संगठन से संबंद्ध रखते हैं, उनसे पाए गए हैं। इसके अतिरिक्त दस्तावेजों से भी कई खुलासे हुए हैं।
एफिडेविट में कहा गया है कि कप्पन और तीनों अन्य आरोपितों के ख़िलाफ़ पैसों की संदिग्ध लेन-देन पर भी जाँच चल रही है। इन चारों को दिल्ली दंगों के आरोपितों में से एक मोहम्मद दानिश के निर्देश पर भेजे जाने का उल्लेख हलफनामे में पढ़ने को मिलता है। कथित पत्रकार पर जानकारी देते हुए राज्य ने आरोप लगाया कि कप्पन ने पूछताछ में अपने दिल्ली वाले घर की जानकारी छिपाई और सोशल मीडिया अकॉउंट की सूचना भी साझा नहीं की।
अब KUWJ ने इस एफिडेविट पर जवाब देने के लिए कोर्ट से समय माँगा है, जिसकी वजह से पूरे केस की सुनवाई जनवरी के तीसरे माह में होगी। बता दें कि अपने फोन के जरिए और सोशल मीडिया के माध्यम से कप्पन लगातार पीएफआई सदस्यों के संपर्क में था। इनमें कुछ का संबंध प्रतिबंधित संगठन सिमी से भी था।
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के स्टूडेंट विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) के नेता रऊफ शरीफ को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने शनिवार (दिसंबर 12, 2020) को तिरुवनंतपुरम से गिरफ्तार किया था। रऊफ शरीफ देश छोड़कर भागने की फिराक में था, मगर ED ने समय रहते कार्रवाई की और उसे धर दबोचा।
ईडी की रिपोर्ट में कहा गया था कि उत्तर प्रदेश के हाथरस कांड को लेकर हुए विवाद के बाद रऊफ शरीफ ने पीएफआई के सदस्यों और स्व-घोषित पत्रकार सिद्दीक कप्पन को वहाँ जाने के लिए फंड दिया था। जिसके बाद यूपी पुलिस ने सिद्दीक कप्पन को अतीकुर्र रहमान और मसूद अहमद समेत चार पीएफआई कार्यकर्ताओ को मथुरा से गिरफ्तार किया था।
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