झूठ की फैक्ट्रियां किसानों को भड़काने के लिए किस तरह अफवाहें फैलाने में जुटी हैं

किसानों को भड़काने के लिए जवानों के बारे में झूठ फैलाया जाए, इससे घटिया बात और क्या हो सकती है। इसकी जितनी निंदा की जाए, वह कम है।

ऐसे समय में जब सुप्रीम कोर्ट किसानों और केंद्र के बीच गतिरोध को दूर करने के लिए सभी पक्षों की एक समिति गठित करने जा रही है, अफवाह फैलाने वाली फैक्ट्रियां झूठी खबरों और वीडियो के जरिए आंदोलनकारियों को भड़काने की कोशिशों में जुटी हुई हैं। ये झूठी अफवाहें न सिर्फ किसानों बल्कि सेना में काम करने वाले उनके रिश्तेदारों के बीच भी असंतोष पैदा करने के लिए फैलाई जा रही हैं। यह गंभीर बात है जिसपर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।

आइए, अब एक-एक करके उन अफवाहों की बात करते हैं जो हाल ही में फर्जी साबित हुई हैं।

तथ्य नंबर एक: 12 दिसंबर को गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने भारतीय रेल को लेकर ट्विटर पर 25 सेकंड का एक वीडियो शेयर किया था। हार्दिक ने इस वीडियो के साथ कॉमेंट में लिखा था, 'भारतीय रेल पर अडानी के फ्रेश आटे का विज्ञापन देखने लायक है। अब तो दावे के साथ कह सकते हैं कि किसानों की लड़ाई सत्य के मार्ग पर है।' हार्दिक पटेल ने जो वीडियो ट्वीट किया था, उसमें एक ट्रेन का इंजन दिख रहा है जिसके दोनों तरफ फॉर्चून ब्रैंड के आटे का विज्ञापन नजर आ रहा है। साथ ही, एक जगह अडानी विलमार का पोस्टर भी लगा है। हार्दिक पटेल के इस ट्वीट को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने रीट्वीट किया, और फिर उन्होंने कॉमेंट किया, 'जिस भारतीय रेलवे को देश के करोड़ों लोगों ने अपनी मेहनत से बनाया, बीजेपी सरकार ने उस पर अपने अरबपति मित्र अडानी का ठप्पा लगवा दिया। कल को धीरे-धीरे रेलवे का एक बड़ा हिस्सा मोदीजी के अरबपति मित्रों को चला जाएगा।' उन्होंने आगे लिखा, 'देश के किसान, खेती-किसानी को भी आज मोदी जी के अरबपति मित्रों के हाथ में जाने से रोकने की लड़ाई लड़ रहे हैं।' इसके बाद तो सोशल मीडिया पर ये फर्जी खबर जंगल की आग की तरह फैल गई कि भारतीय रेलवे अपनी ट्रेनों को अडानी ग्रुप को बेचने जा रही है।

इसके बाद भारत सरकार के प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो ने ‘फैक्ट चेक’ अलर्ट के तहत ट्वीट किया, ‘फेसबुक पर एक वीडियो के साथ यह दावा किया जा रहा है कि सरकार ने भारतीय रेल पर एक निजी कंपनी का ठप्पा लगवा दिया है। यह दावा भ्रामक है। यह केवल एक वाणिज्यिक विज्ञापन है जिसका उद्देश्य केवल 'गैर किराया राजस्व' को बेहतर बनाना है।’ अडानी ग्रुप के इस विज्ञापन वाले वीडियो का किसान आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने इसे किसानों के बीच खूब घुमाया । इसके जरिए किसानों को ये बताने की कोशिश की, मानो अडानी को रेलगाडियां बेची जा रही है, उसी तरह, जिस तरह कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग के जरिए किसानों की जमीन हड़प ली जाएगी।

इंडिया टीवी के संवाददाता देवेंद्र पाराशर ने वीडियो की सत्यता की जांच की और पाया कि असल में पश्चिमी रेलवे ने अतिरिक्त आय जुटाने के लिए वडोदरा डिविजन में नॉन फेयर रेवेन्यू स्कीम के तहत 10 ट्रेनों में विज्ञापन देने के लिए टेंडर जारी किए थे। ये टेंडर अडानी ग्रुप को मिले थे और इसी के बाद फरवरी में अडानी ग्रुप ने अडानी विलमार के फॉर्चून आटे का विज्ञापन वडोदरा की ट्रेन पर पेंट किया था। वेस्टर्न रेलवे के फेसबुक पेज पर एक फरवरी को फॉर्चून के विज्ञापन की पेंटिंग वाली ट्रेन के उद्घाटन समारोह की जानकारी दी गई थी।

पता ये भी चला है कि इस साल मार्च तक वेस्टर्न रेलवे जोन ने 37 लोकोमोटिव को 'नॉन फेयर रेवेन्यू' स्कीम के तहत 73 लाख 26 हजार रुपये सालाना की दर पर विज्ञापन के लिए दिया था। इन विज्ञापनों को 5 साल दिखाने के लिए पश्चिमी रेलवे को 4 करोड़ 40 लाख रुपये बतौर 'नॉन फेयर रेवेन्यू' मिले थे।

इंडिया टीवी के संवाददाता को रेलवे बोर्ड से पता चला कि न तो कोई ट्रेन किसी कंपनी को बेची गई, न ही लीड़ पर दी गई। रेलवे बोर्ड ने कहा कि ये केवल एक विज्ञापन हैं, जो रेलवे के लिए आमदनी का जरिया है। न किसी ने रेल बेची, और न ही खरीदी, लेकिन कांग्रेस नेताओं ने यह अफवाह फैलाने के लिए इसे गलत तरीके से पेश किया कि भारतीय रेलवे अपनी ट्रेनें अडानी ग्रुप को बेच रही है। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का आरोप है कि अंबानी के रिलायंस ग्रुप को तो पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह लेकर आए थे। इन नेताओं ने यह भी पूछा कि क्या मोदी के 6 साल के शासन के दौरान ही अंबानी और अडानी अरबपति बन गए ? 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले भी इन उद्योगपतियों का कारोबार काफी बड़ा था।

तथ्य नंबर 2: एक तेलुगु अखबार 'प्रजशक्ति' ने दावा किया कि भारतीय सेना के 25,000 शौर्य चक्र विजेताओं ने किसानों के आंदोलन के समर्थन में अपने मेडल रक्षा मंत्रालय को वापस कर दिए हैं। हमने अपने रक्षा संवाददाता मनीष प्रसाद से रक्षा मंत्रालय से संपर्क कर इसकी सत्यता की जांच करने के लिए कहा। पता चला कि 1956 से लेकर 2019 तक कुल मिलाकर सिर्फ 2,048 शौर्य चक्र मेडल ही दिए गए हैं। ‘प्रजाशक्ति’ एक CPI(M) समर्थक अखबार है। इसकी तेलुगु खबर का हिंदी, पंजाबी और अंग्रेजी में अनुवाद करके उसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में, खासतौर पर किसानों के बीच अंसतोष पैदा करने के लिए बांटा गया। कई किसानों ने इस खबर को पूरी तरह सच भी मान लिया, जबकि इसमें दूर-दूर तक को सच्चाई नहीं थी।

तथ्य नंबर 3: खुद को तीन-तीन दैनिक अखबारों के मुख्य सम्पादक होने का दावा करने वाले गुरचरण सिंह बब्बर का भी एक वीडियो खूब सर्कुलेट हो रहा है। इस वीडियो में वह दावा कर रहा है कि उसे 'टॉप सीक्रेट सोर्सेज' से पता चला है कि सरकार ने किसानों के आंदोलन को कुचलने की पूरी तैयारी कर ली है और इसके लिए आधी रात को सिंघू, टिकरी और गाजीपुर हॉर्डर पर एक बड़ा ऑपरेशन शुरू किया जाएगा। अपने इस वीडियो संदेश में बब्बर ने कहा कि प्राइवेट एजेंसियां इस बात की जानकारी जुटा रही हैं कि धरनास्थल पर किसानों के बीच कितनी महिलाएं, बच्चे, युवा और नेता मौजूद हैं। अपने संदेश में बब्बर ने ये झूठा दावा करते हुए कहा कि सुरक्षा बल के जवान रात के समय बिजली काटने के बाद अंधेरे में सो रहे किसानों पर धावा बोलेंगे, ताकि उन्हें तितर-बितर किया जा सके। उसने दावा किया कि सरकार इस ऑपरेशन के लिए CRPF और BSF का भी इस्तेमाल कर सकती है। अपने वीडियो संदेश में बब्बर ने यहां तक कहा कि सरकार प्रदर्शनों को रोकने के लिए हरियाणा और पंजाब में कर्फ्यू लगा सकती है और गिरफ्तार किसानों एवं उनके नेताओं को अस्थाई जेलों में  कैद कर सकती है।

इंडिया टीवी के संवाददाताओं ने गुरचरण सिंह बब्बर के बारे में तहकीकात की तो पाया कि पत्रकार होने की बजाय वह अखिल भारतीय सिख कॉन्फ्रेन्स का अध्यक्ष है। उसने सुप्रीम कोर्ट के जजों और 1984 के सिख विरोधी दंगों के वकील एच. एस. फुल्का के बारे में पहले भी कई भड़काऊ बातें कही हैं। दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश सिख किसानों को बब्बर के बारे में पता है और वे उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते। ब्रिटेन के एक पत्रकार सरदार प्रभदीप सिंह, जो यूट्यूब पर एक न्यूज चैनल चलाते हैं, ने बब्बर द्वारा किए गए दावों की सत्यता पर सवाल उठाए। उन्होंने बब्बर को चुनौती दी कि वह अपनी खबर का स्रोत बताएं।

तथ्य नंबर 4: गाजियाबाद के एक टोल प्लाजा के पास सेना की मूवमेंट का एक वीडियो फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर पर ये फर्जी अफवाह फैलाने के लिए पोस्ट किया गया कि दिल्ली के बॉर्डर से किसानों को तितर-बितर करने के लिए सेना को बुला लिया गया है। नवाब सतपाल तंवर ने, जो कि खुद को भीम सेना का चीफ बताता हैं, दावा किया कि उसने टोल प्लाजा पर यह वीडियो स्वयं शूट किया। जांच करने पर पता चला कि यह वीडियो एक जगह से दूसरी जगह तैनात की जा रही सेना की एक  बटालियन के मूवमेंट का है, और किसानों के धरने से इसका कोई लेना-देना नहीं है। इंडिया टीवी के संवाददाताओं ने जब गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे किसानों से पूछा कि क्या उन्होंने वहां सेना की कोई मूवमेंट देखी है, तो उनमें से अधिकांश ने जवाब दिया कि वे 21 दिन से यहां खुले में बैठे हैं, और आर्मी की बटालियन तो क्या, सेना का एक भी जवान उन्हें नहीं दिखा।

किसानों को भड़काने के लिए जवानों के बारे में झूठ फैलाया जाए, इससे घटिया बात और क्या हो सकती है। इसकी जितनी निंदा की जाए, वह कम है। यह समझने की जरूरत है कि अशांति पैदा करने के लिए इस तरह की अफवाहें जानबूझकर फैलाई जा रही हैं। देश के दुश्मन पूरी तरह ऐक्टिव हैं और वे मौके का फायदा उठाकर हिंसा और अशांति फैलाना चाहते हैं। राहत की बात सिर्फ इतनी है कि अधिकांश किसान समझदार हैं और आसानी से ऐसी बातों पर भरोसा नहीं करते। किसानों के चारों तरफ झूठ, छल और प्रपंच का जाल बिछाया जा रहा है, उनमें से अधिकांश कम पढ़े-लिखे हो सकते हैं, लेकिन वे आसानी से ऐसी बातों पर भरोसा नही करते। वे जो अपनी आंख से देखते हैं, अपने कान से सुनते हैं, उस पर भरोसा करते हैं।

ऐसी निराधार अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि किसानों को एक-दूसरे से मोबाइल फोन पर बात करने से रोकने के लिए सरकार जैमर का इस्तेमाल कर रही है। अब यह तो कॉमन सेंस की बात है कि दिल्ली के बॉर्डर पर हजारों किसान बैठे हैं, और सबके पास एक-एक या दो-दो मोबाइल फोन हैं, और एक जगह पर एक साथ इतने ज्यादा मोबाइल ऐक्टिव हैं इसलिए उस इलाके में नेटवर्क की प्राब्लम तो हो ही सकती है। लेकिन अफवाह फैलाने वालों ने इस बात को भी हथियार बनाते हुए अफवाह फैलाई कि यह सब एक सरकारी एजेंसियों द्वारा एक ‘ऑपरेशन’ को अंजाम देने के लिए किया जा रहा है।

पंजाब के किसानों को हताश करने के लिए सोशल मीडिया पर एक वीडियो खूब फैलाया जा रहा है। इस वीडियो खूब फैलाया जा रहा है। इस वीडियो में एक किसान अपने खेत की पूरी फूलगोभी की फसल को रौंद देने की धमकी दे रहा है। यह वीडियो पंजाब से नहीं, बल्कि बिहार के समस्तीपुर जिले के मुक्तापुर का है। चूंकि स्थानीय बाजार में फूलगोभी की फसल एक रुपये किलो की दर पर खरीदी जा रही थी, इसलिए वह हताश किसान ट्रैक्टर से अपनी पूरी फसल को रौंदने जा रहा था।

मैं इस बात के लिए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद की तारीफ करूंगा कि उन्होंने इस किसान के वीडियो को देखा और अपने विभाग के कॉमन सर्विस सेंटर को निर्देश दिया कि इस किसान को संपर्क कर इनकी फसल को देश के किसी भी बाजार में उचित मूल्य पर बेचने का प्रबंध किया जाए। इसके बाद दिल्ली के एक व्यापारी ने समस्तीपुर में किसान से संपर्क किया और उसकी फूलगोभी की फसल को 10 रुपये किलो के भाव से खरीदा। कुछ ही घंटों में किसान के बैंक खाते में आधी राशि एडवांस के रूप में पहुंच गई। बुधवार को पूरी फसल जैसे ही ट्रक पर लोड हुई, तो बकाया राशि भी किसान के बैंक खाते में पहुंच गई।

आजकल व्हाट्सऐप, ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब के जरिए अफवाहें उड़ाना, फेक न्यूज फैलाना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है। हमने इंडिया टीवी पर एक एक्सपर्ट टीम तैयार की है जो सोशल मीडिया पर इस तरह के हर वायरल वीडियो का सच ढूंढ़ निकालती हैं। मेरा आपसे वादा है कि जब-जब कोई साजिश करेगा, झूठ फैलाने की कोशिश करेगा, अफवाहें फैलाने की कोशिश करेगा, हम बेखौफ होकर उसका सच आपके सामने उजागर करेंगे। 

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