कट्टरता के खिलाफ बोलना मुसलमानों का विरोध कैसे?

हेट न्यूज़ (Hate News) के आरोप लगाने वाले अपने मन के मुताबिक खबरों की परिभाषा तय करना चाहते हैं. दो दिन पहले भारत के 95 पूर्व बड़े सरकारी अफसरों ने भारत की कंपनियों और कॉर्पोरेट्स को चिट्ठी लिखकर कहा है कि कंपनियां उन न्यूज़ चैनलों को विज्ञापन देना बंद कर दें जो नफरत फैलाते हैं.

नफरत को रिपोर्ट करना नफरत फैलाना नहीं होता. लेकिन हमारे देश में बहुत सारे लोगों को सच से परेशानी होती है और ये लोग चाहते हैं कि खबर का वही संस्करण पेश किया जाए जो इन्हें सूट करता है. इन लोगों के मुताबिक जेहाद पर बात करना नफरत फैलाना है. इनके मुताबिक कट्टर इस्लाम का विरोध करना सभी मुसलमानों का विरोध करने जैसा है, इन लोगों के मुताबिक किसी धर्म में सुधार की बात करना असहनशीलता है. लेकिन ऐसे लोगों को बांग्लादेश से आई कुछ तस्वीरें देखनी चाहिए, इन तस्वीरों के देखकर आपको समझ आ जाएगा कि असली असहनशीलता और असली कट्टरपंथ किसे कहते हैं.

बांग्लादेश में क्यों जलाए गए हिंदुओ के घर?
सभी मुस्लिम देशों की तरह इन दिनों बांग्लादेश में भी फ्रांस के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं लेकिन विरोध करने के लिए बांग्लादेश में प्रदर्शनकारी सिर्फ फ्रांस के झंडे नहीं जला रहे, बल्कि वहां रहने वाले हिंदुओं के घरों को भी जलाया जा रहा है. बांग्लादेश के कोमिला जिले में कट्टरपंथी भीड़ ने हिंदुओं के 10 घरों में तोड़ फोड़ की और इन घरों को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया. खबरों के मुताबिक इस आगजनी में 500 लोग शामिल थे और ये लोग फेसबुक पर फैली एक अफवाह के बाद भड़के हुए थे.

बांग्लादेश में हिंदुओं के घर सिर्फ इसलिए जलाए गए, क्योंकि किसी ने अफवाह फैला दी कि इन घरों में रहने वाले हिंदू, फ्रांस का समर्थन कर रहे हैं. 

कहने को बांग्लादेश भारत और फ्रांस की तरह एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश है. लेकिन वहां रहने वाली अल्पसंख्यक आबादी बहुसंख्यक आबादी की विचारधारा का विरोध नहीं कर सकती और अगर कोई हिंदू अल्पसंख्यक बांग्लादेश की मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी की विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखता तो उसका क्या हश्र होता है ये आप हाल में सामने आई तस्वीरों से समझ सकते हैं.

ढाका में फ्रांस के दूतावास पर भी कब्जा करने की कोशिश
कल एक बार फिर बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर फ्रांस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए. बांग्लादेश की राजधानी ढाका की सड़कें इन हजारों प्रदर्शनकारियों से भरी हुई थीं. आज का ये विरोध प्रदर्शन हिफाज़त ए इस्लाम नाम के संगठन ने आयोजित किया था. ये संगठन शिक्षकों और छात्रों का समूह है जिसका संबंध बांग्लादेश के हजारों इस्लामिक स्कूलों से है. इन लोगों ने न सिर्फ विरोध प्रदर्शन किया, बल्कि ढाका में फ्रांस के दूतावास पर भी कब्जा करने की कोशिश की.

आपको याद होगा दो दिन पहले हमने आपको फ्रांस के खिलाफ भारत में हुए विरोध प्रदर्शनों की तस्वीरें दिखाई थी. ये सब भारत में इसलिए संभव हो पाया क्योंकि भारत के संविधान ने सबको अपनी बात कहने की और विरोध दर्ज कराने की आजादी दी है, कई बार इस आजादी का दुरुपयोग होने के बावजूद भारत में इस तरह की हिंसा नहीं होती, लेकिन इन लोगों को सोचना चाहिए कि क्या बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों में अल्पसंख्यकों को ऐसी आजादी हासिल है ? इसका जवाब है नहीं.

हेट न्यूज़ की परिभाषा क्या है?
हम भारत के एक पड़ोसी देश में हिंदुओं के खिलाफ फैली नफरत को रिपोर्ट कर रहे हैं और हो सकता है कि हमारी इस रिपोर्ट को कई लोग नफरत फैलाने वाला बता दें ? लेकिन हम एक बार ये पूछना चाहते हैं कि क्या भारत में किसी कमरे में बैठे दस, बीस, पचास या 100 लोग ये तय कर सकते हैं कि हेट न्यूज़ की परिभाषा क्या है?

पाकिस्तान से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जिसे देखकर आप समझ जाएंगे कि असली नफरत किसे कहते हैं. ये तस्वीर पाकिस्तान के एक स्कूल की है. जहां एक टीचर ने छात्रों को ये सिखाने की कोशिश की कि इस्लाम के नाम पर किसी का गला काट देना जायज है. इसके लिए टीचर ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के एक पुतले का इस्तेमाल किया और छात्रों को इस पुतले का सिर कलम करके दिखाया. आप समझ सकते हैं कि जिन देशों के स्कूलों में धर्म के नाम पर गला काटने की ट्रेनिंग दी जा रही हो. उन देशों में अल्पसंख्यकों का जीवन कितना मुश्किल होता होगा.

विरोध के नाम पर सामने आ रहीं डरावनी तस्वीरें
विरोध के नाम पर ऐसी डरावनी तस्वीरें दुनिया के दूसरे देशों से भी आई हैं. इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में भी प्रर्दशनकारियों ने मैक्रों के चेहरे वाला मास्क लगाए एक व्यक्ति का गला काटने की एक्टिंग की और इनका मकसद भी यही साबित करना था कि इस्लाम के नाम पर ये सब करना जायज है.

इस्लाम का सिर कलम करने से क्या संबंध?
अब आप सोचिए कि आखिर इस्लाम का सिर कलम करने से क्या संबंध है और इसका विरोध क्यों होना चाहिए? लेकिन जब हमारे जैसे न्यूज़ चैनल इसका विरोध करते हैं तो हमारे खिलाफ चिट्ठी लिखकर कहा जाता है कि हम नफरत फैला रहे हैं. अब आप खुद सोचिए कि हम नफरत को रिपोर्ट कर रहे हैं या नफरत फैला रहे हैं?

दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं जो धर्म और मोहब्बत के  नाम पर फ्रांस का विरोध कर रह हैं और कह रहे हैं कि हम तो शांति फैला रहे हैं. ये कितना बड़ा विरोधाभास है.

क्या नफरत को रिपोर्ट करना भी नफरत फैलाना है?
हेट न्यूज़ के आरोप लगाने वाले अपने मन के मुताबिक खबरों की परिभाषा तय करना चाहते हैं. 31 अक्टूबर को यानी दो दिन पहले भारत के 95 पूर्व बड़े सरकारी अफसरों ने भारत की कंपनियों और कॉर्पोरेट्स को चिट्ठी लिखकर कहा है कि कंपनियां उन न्यूज़ चैनलों को विज्ञापन देना बंद कर दें जो नफरत फैलाते हैं. हम भी मानते हैं कि नफरत फैलाने वालों का बहिष्कार होना चाहिए. लेकिन सवाल ये है क्या देश के 95 लोग ये तय कर सकते हैं कि क्या नफरत को रिपोर्ट करना भी नफरत फैलाना है?

देश के एडवर्टाइजर्स को चिट्ठी
भारत में सरकारी नौकरी कर चुके पूर्व बड़े अधिकारियों ने इसे लेकर देश के एडवर्टाइजर्स को चिट्ठी को लिखी है. इन 95 पूर्व अधिकारियों ने एक समूह बनाया हुआ है, जिसे नाम दिया गया है Constitutional Conduct Group. इस ग्रुप का दावा है कि ये किसी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करता और इस ग्रुप के सदस्य निष्पक्षता और भारत के संविधान के साथ हैं.

इस चिट्ठी में सबसे पहले देश की कंपनियों, व्यापारिक घरानों और कॉर्पोरेट्स को टार्गेट किया गया है और कहा गया है कि ये वो लोग हैं जो भारत को समृद्ध बनाते हैं लेकिन ये कंपनियां समाज में फैल रही नफरत और भेदभाव को रोकने के लिए कुछ नहीं कर रहीं.

कॉर्पोरेट्स पर ये आरोप लगाया गया है कि कंपनियां उन मीडिया हाउसेज को बेझिझक विज्ञापन दे रही हैं, जो नफरत फैलाते हैं, जो धर्म और जाति के नाम पर देश को बांट रहे हैं, जो झूठे नैरेटिव पेश करते हैं और सीधे-सादे और कानून का पालन करने वाले लोगों को अपराधी बना देते हैं.

इस चिट्ठी में कहा गया है कि ये शायद इन एडवर्टाइजर्स ने कभी इस बारे में सोचा नहीं या फिर अनजाने में न्यूज़ चैनलों को विज्ञापन देने की गलती करते रहे. लेकिन अब इन लोगों को ऐसे मीडिया हाउसेज को विज्ञापन देना बंद करना चाहिए.

इस चिट्ठी में कई मौकों पर संविधान की दुहाई दी गई है और कहा गया है कि जिन चैनलों ने कोरोना वायरस को सांप्रदायिक मुद्दे में बदल दिया, UPSC की परीक्षाओं में मुसलमानों की घुसपैठ की झूठी खबरें चलाई और लव जेहाद जैसे मुद्दे उठाए. उन चैनलों को विज्ञापन नहीं देना चाहिए.

चिट्ठी लिखने वाले पूर्व अधिकारियों ने कहा है कि एडवर्टाइजर्स इसके बावजूद सिर्फ टीआरपी को देखकर न्यूज़ चैनलों को विज्ञापन देते रहे और अब कंपनियों को चाहिए कि वो ऐसे न्यूज़ चैनलों को विज्ञापन देना बंद करें. इस चिट्ठी के आखिर में पूर्व अधिकारियों के नाम हैं जिन्होंने इस चिट्ठी को समर्थन दिया है और इनकी कुल संख्या 95 है.

चिट्ठी के पीछे छिपी असली मंशा
अब आप इस चिट्ठी के पीछे छिपी असली मंशा को तीन प्वाइंट्स में समझिए, फिर हम इनके बारे में विस्तार से बात करेंगे.

पहली बात ये है कि कुछ लोग मिलकर न्यूज़ चैनलों की फाइनांशियल सप्लाई को काटना चाहते हैं, ताकि न्यूज़ चैनल इन लोगों की विचारधारा के सामने सरेंडर कर दें, और सच बोलना बंद कर दें. ये लोग ऐसे हालात पैदा करना चाहते हैं कि न्यूज़ चैनल अपने कर्मचारियों को सैलरी न दे पाएं. पत्रकार अदालतों के चक्कर लगाते रहें और उन्हें नौकरियां मिलने में परेशानी हो, ये सीधे सीधे एक प्रकार की धमकी है.

दूसरी बात ये है कि चिट्ठी लिखने वाले इन अधिकारियों ने जिन खबरों को नफरत फैलाने वाली खबर बताया है. उन सबके केंद्र में सिर्फ एक विशेष धर्म के लोगों के बारे में दिखाई गई खबरें हैं. इन लोगों ने आज और आज से पहले जितनी चिट्ठियां लिखी उनमें से किसी में भी, पालघर में साधुओं की हत्याओं का विरोध नहीं किया गया, पुलवामा आतंकवादी हमले की निंदा नहीं की गई, राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने वालों पर सवाल नहीं उठाए गए. दिल्ली दंगों का विरोध नहीं किया गया, मुंबई हमलों पर बात नहीं की गई, शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शनों को आजादी का दुरुपयोग नहीं बताया.

लेकिन इस्लाम में फैले कट्टरपंथ का विरोध करना, इन्हें मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाना लगता है और तीसरी बात ये है कि अगर ये सारे अधिकारी आज भी अपने पदों पर होते तो क्या ये लोग तभी भी ऐसे ही एकतरफा फैसले लेते?

अगर लव जेहाद के नाम पर निकिता तोमर के मर्डर का केस इनके पास आता तो क्या ये लोग एजेंडे को साइड में रखकर अपना फर्ज निभा पाते?

राहुल राजपूत की हत्या के मामले में इनकी कार्रवाई कैसी होती और अगर शाहीन बाग का मामला इनके संज्ञान में लाया जाता, तो ये लोग क्या करते?

जब शाहीन बाग में संविधान की प्रतियां हाथ में लेकर संविधान की धज्जियां उड़ाई जाती है तो इन्हें संविधान की याद नहीं आती लेकिन जब नफरत को रिपोर्ट किया जाता है और उस रिपोर्ट के केंद्र में किसी धर्म विशेष के लोग होते हैं तो इन्हें संविधान की याद आ जाती है. जब देश भर के मुसलमान संविधान में दी गई आजादी के नाम पर देश भर की सड़कों को जाम कर देते हैं और सरकार के फैसले के साथ नहीं होते. तब ये लोग चिट्ठी लिखकर इसे गलत नहीं बताते.

Constitutional Conduct Group क्या है?

Constitutional Conduct Group पूर्व अधिकारियों का एक ग्रुप है. ये ग्रुप 2018 से अब तक अलग अलग मुद्दों पर 30 से ज्यादा ओपन लेटर लिख चुका है. इन खुली चिट्ठियों में कभी कोरोना वायरस के मुद्दे को मीडिया द्वारा सांप्रयादिक बनाए जाने का आरोप लगाया जाता है तो कभी नए नागरिकता कानून और NRC का विरोध किया जाता है. कभी हैदराबाद में हुए बलात्कारियों के एनकाउंटर पर सवाल उठाए जाते हैं तो कभी बाबरी मस्जिद विवाद पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर दुख जताया जाता है और कभी रफाल लड़ाकू विमानों की डील और नोटबंदी पर सवाल उठाए जाते हैं.

लेकिन आज तक हमें इस समूह द्वारा लिखी गई एक भी ऐसी चिट्ठी नहीं मिली, जिसमें संविधान की धज्जियां उड़ाने वालों का विरोध किया गया हो, पुलवामा में भारत के सैनिकों का खून बहाने वालों की निंदा की गई हो. कहने को ये ग्रुप दावा करता है कि इनका किसी राजनीतिक पार्टियों से कोई संबंध नहीं है. लेकिन इनकी चिट्ठियों की स्क्रिप्ट पढ़कर आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि इन चिट्ठियों के राजनीतिक ​स्क्रिप्ट राइटर कौन हैं?

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