कांग्रेस का हाथ देशद्रोहियों के साथ – किसान आंदोलन के नाम पर दी खालिस्तानी प्रदर्शन को हवा

सत्ता में हो या नहीं, कांग्रेस का देशद्रोहियों के लिए समर्थन कभी भी कम नहीं होता। जब सभी प्रकार की युक्तियों से वे हार गए, तो अब उन्होंने एक नया प्रयोग किया है। नए कृषि कानून के विरुद्ध असफल पड़ते उनके सारे दाँवों में अब कांग्रेस ने पंजाब के रास्ते देश को एक बार फिर आग में झोंकने की व्यवस्था की, क्योंकि अब किसानों के नाम पर खालिस्तानी उग्रवादी दिल्ली में सेंध लगाना चाहते हैं।

यह हमारा कहना नहीं है, बल्कि खुद आंदोलनकारियों ने इस बात को अपने बयानों के जरिए उजागर किया है। दरअसल, नए कृषि कानून के बारे में ये अफवाह फैलाई गई कि केंद्र सरकार फसलों के लिए लागू होने वाले न्यूनतम सपोर्ट प्राइस [एमएसपी] को ही खत्म कर देगी, जिसके कारण पंजाब के किसानों ने कई हफ्तों तक रेल रोको आंदोलन किया, जिससे रक्षात्मक और आर्थिक दोनों क्षेत्रों में भारत को काफी नुकसान पहुंचा।

लेकिन किसानों के अधिकार के नाम पर आंदोलन कर रहे आंदोलनकारियों की वास्तविक मंशा क्या थी, ये अभी हाल ही के विरोध प्रदर्शनों में सामने आई है। आंदोलनकारी कहने को दिल्ली जाकर ‘शांतिपूर्ण’ विरोध प्रदर्शन करना चाहते हैं, जिसके लिए उन्होंने ‘दिल्ली चलो’ का नारा भी दिया। लेकिन इन जनाब के बयान पर अगर आप नज़र डालें, तो ये आंदोलन न तो किसानों के अधिकारों की बात करता हुआ दिखाई देता है, और शांतिपूर्ण तो बिल्कुल नहीं लग रहा है।

वीडियो में ये जनाब कहते हुए दिखाई देते हैं, “देखिए, यदि हमारी मांगें नहीं मानी गई, तो हम कुछ भी कर सकते हैं। हमने तो इंदिरा तक को ठोंक दिया, तो मोदी की छाती में भी ठोंक देंगे!” यहाँ इंदिरा का अर्थ इंदिरा गांधी से है, जिन्हें खालिस्तान अभियान के सरगना भिंडरावाले को मार गिराने के लिए चलाए गए ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ के विरोध में उन्हीं के सिख अंगरक्षकों द्वारा मार गिराया गया। अब ये ‘आंदोलनकर्ता’ नरेंद्र मोदी का भी वही हश्र करना चाहता है, जो इंदिरा गांधी का किया गया था। ये खालिस्तानी तत्वों द्वारा आंदोलन को हाइजैक करना नहीं तो और क्या है? परंतु ये तो मात्र शुरुआत है, क्योंकि ऐसे और भी खतरनाक वीडियो और तस्वीरें सामने आई है, जिनसे स्पष्ट पता चलता है कि किसानों के न्याय के नाम किए जा रहे इस विरोध प्रदर्शन पर खालिस्तानियों ने कांग्रेस की सहायता से कैसे कब्जा जमा लिया है।

वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने इसी प्रदर्शन के एक भाग पर प्रकाश डालते हुए ट्वीट किया, “बाई तरफ खालिस्तान का झण्डा है और दाई तरफ दिल्ली किसान आंदोलन का झण्डा। क्या यह महज संयोग है या कोई प्रयोग है? याद दिल दूँ किसान के नाम पर खालिस्तानियों का जत्था भी दिल्ली की तरफ कूच कर चुका है, इस धमकी के साथ कि इंडिया गेट पर खालिस्तान का झण्डा फहराया जाएगा! इस पोस्ट के आधार पर न मैंने कोई निष्कर्ष निकाल है, न आप कोई निष्कर्ष निकालिए, लेकिन कोई जानकार है तो कृपया मुझे बताएँ कि ये दिल्ली किसान आंदोलन का झण्डा किसने डिजाइन किया है और उसके पीछे क्या सोच है?”

जिस प्रकार से किसान आंदोलन के नाम पर खालिस्तानी झंडे, भिंडरावाले की तस्वीरों और नरेंद्र मोदी की हत्या की धमकियों को बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे स्पष्ट होता है कि कांग्रेस ने पंजाब में किसान आंदोलन के नाम पर एक बार फिर खालिस्तान के जिन्न को जिंदा कर दिया है। अभी तो आंदोलनकारियों को दिल्ली के बुराडी मैदान में प्रदर्शन करने के लिए मैदान दिया गया है, लेकिन केंद्र सरकार ने त्वरित एक्शन नहीं लिया, तो नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के नाम पर जो ज़ख्म शाहीन बाग के आंदोलन और पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगों ने देश को दिए थे, वो एक बार फिर देश को झेलने पड़ेंगे।

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