बिहार चुनाव का विश्लेषण
इसमें कोई शक नहीं है कि बिहार का ये विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए अब तक का सबसे मुश्किल चुनाव होने वाला है। चिराग पासवान के एनडीए छोड़ने से लेकर 15 वर्षों की सत्ता विरोधी लहर का नीतीश को सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में एक मुश्किल, नीतीश से नाराज जनता के लिए भी है क्योंकि वो मोदी से खुश होते हुए भी नीतीश को वोट नहीं देना चाहती है। जनता का नीतीश से मोहभंग हो चुका है। चिराग की जीत को लेकर जनता ज्यादा आश्वस्त नहीं है। ऐसे में बीजेपी के कोर वोटरों के लिए ये सबसे बड़ा मुद्दा है कि वो वोट किस आधार पर और किसे दे।
पिछले 15 वर्षों से बिहार की सत्ता में नीतीश कुमार का कब्जा है वो लगातार चुनाव जीत रहे हैं, लेकिन ये चुनाव उनके लिए मुश्किल है। 15 वर्षों की सत्ता विरोधी लहर नीतीश के गले की फांस बन गई है। जेडीयू के वोटरों के एक बड़े वर्ग का भी नीतीश से मोह भंग हुआ है जिसके चलते वो खुलकर नीतीश की आलोचना कर रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल बीजेपी के कोर वोटरों की है जो इस पोशोपेश में हैं कि नीतीश से नाराजगी जाहिर करते हुए भी वो किसे वोट दें जिससे भाजपा को नुकसान न हो।
नीतीश से नाराजगी
इकॉनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में नीतीश कुमार के प्रति जनता में आक्रोश है। बीजेपी के कोर वोटरों का कहना है कि ये उनके लिए सबसे बड़ी मुश्किल की घड़ी है। वो नीतीश कुमार के काम से बिल्कुल भी खुश नहीं हैं। नीतीश के कार्यकाल में शराब बंदी से लेकर अपराध कम करने के दावे कुछ हद तक तो ज़मीन तक पहुंचे हैं लेकिन इसमें काफी खामियां हैं। वहीं नीतीश के गठबंधन सहभागी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर उनका नजरिया बिलकुल ही विपरीत हैं। वो बीजेपी से बिल्कुल भी नाराज नहीं हैं। वो बीजेपी को जिताना चाहते है लेकिन असमंजस की स्थिति में हैं।
नीतीश से नाराजगी के चलते बिहार की राजनीति में इस बार वोटों के बंटने की बुरी संभावना है। ये वोट आरजेडी के महागठबंधन समेत तीसरे मोर्चे और पीएम मोदी का नाम लेकर खड़े चिराग पासवान की पार्टी लोजपा की तरफ जा भी सकता है। ऐसे में बीजेपी के वोटरों के सामने दिक्कत इस बात की है कि वो अपना वोट किसे दें जिससे बीजेपी को फायदा हो, न चाहते हुए भी वो नतीश को वोट देने को मजबूर हैं लेकिन अगर नीतीश का बिहार के आम मुद्दों की तरफ यही रुख़ रहा, तो अगले 5 साल जनता को उन्हें फिर झेलना होगा।
इसी तरह इस खेल में नीतीश के अलावा केवल एक बड़ी दावेदार लोजपा ही दिख रही है जो दावा कर रही है कि वो बीजेपी के साथ चुनाव के बाद गठबंधन कर लेगी। लोजपा को लेकर भी लोगों में संदेह की स्थिति है। लोजपा के इतिहास पर ही नजर डालें तो बिहार की राजनीति में लोजपा 2005 में किंगमेकर की भूमिका में आई थी, लेकिन उसके बाद उसकी सीटें घटतीं चलीं गईं। ऐसे में बीजेपी के वोटरों के साथ ये मुश्किल भी है कि वो जिस लोजपा उम्मीदवार को वोट करेंगे वो जीत भी सकता है या नहीं, क्योंकि वोट बंटने और उसके हारने के कारण सीधा नुकसान बीजेपी का ही होगा, जो ये वोटर कतई नहीं चाहते होंगे।
बीजेपी के लिए भी मुश्किल
बीजेपी भी जानती है कि नीतीश के कारण सत्ता विरोधी लहर बनी हैं इसलिए अगर नीतीश के चेहरे को अपने साथ रखा तो नुकसान होगा। इसीलिए बिहार के चुनावी पोस्टरों में भाजपा ने नीतीश को बहुत ही सीमित या कहा जाए कि औपचारिक जगह ही दी है। भाजपा इस बार सारा दांव उन सीटों पर लगा रही है, जिन पर वो खुद लड़ रही है। इसीलिए उसने अपने विज्ञापनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अकेले ही रखा है जिससे उनकी साफ छवि के नाम पर ही इस चुनाव को लड़ा जाए।
बीजेपी तो नहीं… पर उसके साथ साठ-गांठ को लेकर लोजपा खुल कर बोल रही है कि वो चुनाव बाद बीजेपी के साथ सरकार बनाएगी। नीतीश के खिलाफ लोजपा का ये चक्रव्यूह काफी अच्छा रचा गया है लेकिन बीजेपी वोटरों के लिए पशोपेश की स्थिति में ये चक्रव्यूह कमजोर पड़ सकता है। नीतीश विरोधी बीजेपी वोटरों के लिए विकल्प केवल चिराग पासवान की लोक जनशकित पार्टी ही है लेकिन उसके जीतने को लेकर असमंजस ने सारा पेंच फंसा रखा है।
बीजेपी वोटरों की ये मुश्किल चिराग के लिए जितनी फायदेमंद हो सकती है उतनी ही ज्यादा नुकसानदायक भी। वहीं नीतीश से नाराज मतदाताओं की नाराजगी का प्रभाव मतदान पर भी देखने को मिल सकता है जिससे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहीं पार्टियों को फायदा हो सकता है। इसलिए इन चुनावों में जितनी कड़ी परीक्षा बीजेपी की होगी, उतनी ही सूझ-बूझ की परीक्षा बीजेपी के वोटरों की भी होगी।
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