हाथरस के ज्वलंत रेप कांड को लेकर हर दिन नए खुलासे हो रहे हैं। अब सभी की निगाहें जांच पर ही टिक गई है, क्योंकि हर दिन खुलते नए पत्तों में केस उलझ कर रहा गया है। कॉल रिकॉर्डस से लेकर पीड़िता के आरोपी के साथ घंटो की बातचीत औऱ प्रेम सबंधों की खबरों ने जहां इस केस में ऑनर किलिंग की नई थ्योरी को जन्म दिया है, तो वहीं पीएफआई के चार लोगों का जातीय दंगे भड़काने के आरोप में पकड़े जाना इस पूरे मामले में एक सुनियोजित साजिश की ओर इशारा कर रहा है। केस के इतने बिखराव के कारण अब इसे लेकर कुछ कहना कठिन है।
पीड़िता की आरोपी से बात
जी न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस मुद्दे को लेकर एक नया खुलासा हुआ है जिसके मुताबिक पीड़ित लड़की और आरोपी के बीच घंटों बातचीत होती थी। इस बातचीत की पूरी डिटेल्स सामने चुकी है लेकिन फिर भी पीड़िता का परिवार इन सभी बातों से इनकार कर रहा है। आरोपी संदीप और पीड़िता के बीच बातचीत के अलावा मामले के एक और आरोपी रामू का परिवार इस पूरे केस में उसे बेगुनाह बता रहा है।
इसके अलावा ये पक्ष भी काफी अहम हो चला है कि 14 सितंबर को जब परिवार पुलिस के पास संदीप के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने गया था तब उसने रेप की बात क्यों नहीं की , और एक बड़ा सवाल ये भी है कि 8 दिन बाद गला दबाने की ये रिपोर्ट रेप की कैसे बना दी गई ? क्या उन्हें रेप की रिपोर्ट दर्ज कराने को लेकर किसी ने प्रेरित किया था? या किसी डर से परिवार चुप था?
रेप को लेकर संदेह
हाथरस कांड को लेकर सबसे बड़ा संदेह इसी बात पर ही है कि रेप हुआ है या नहीं क्योंकि इसको लेकर भी दो रिपोर्ट सामने आई है। एक तरफ 22 सितंबर को पीड़िता की मेडिकोलीगल (MLC) इंवेस्टिगेशन रिपोर्ट में पीड़िता के साथ जबरदस्ती के संकेत बताए गए, तो दूसरी तरफ आगरा के फॉरेंसिक डिपार्टमेंट और अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज की रिपोर्ट रेप की पुष्टि नहीं कर रही है जिसने मुख्य मुद्दे पर ही विरोधाभासी स्थितियां पैदा कर दी हैं।
दंगों की साजिश का खेल
इस पूरे मामले में दंगों की राजनीति का भी एक अलग एंगल सामने आया है। खबरों के मुताबिक इस मुद्दे को लेकर एक वेबसाइट बनाई गई थी। जिससे पीड़िता के लिये फण्ड जुटाया जा सके। परन्तु Zee news की एक रिपोर्ट के अनुसार दंगे की इस वेबसाइट के तार एमनेस्टी इंटरनेशनल जुड़ रहे हैं। इस वेबसाइट को इस्लामिक देशों से जमकर फंडिंग भी मिली। इस मामले में जांच एजेंसियों के हाथ अहम और चौंकाने वाले सुराग लगे हैं। साथ ही इस मुद्दे पर जातीय एंगल के नाम पर दंगे कराने का मामला सामने आया है। इस मामले में पीएफआई के चार लोगों को भी गिरफ्तार भी किया गया है जिन पर जातीय दंगे भड़काने का आरोप लगाया गया है और इसीलिए पीड़िता को इंसाफ दिलाने का ये मामला अब अधिक पेचीदा हो गया है। दंगे की संभावनाओं को लेकर खुलासे के बाद से फंडिग की सारी जांच ईडी करेगी जो कि एक औऱ नया डेवेलपमेंट है।
यूपी सरकार ने पीड़िता के इलाज को लेकर भी सवाल खड़े किए है। सरकार का कहना है कि उसका इलाज अलीगढ़ में चल रहा था डाक्टरों की सलाह को मानते हुए सरकार उसे पहले ही सफदरगंज अस्पताल भेजना चाहती थी लेकिन परिवार ने इजाजत नहीं दी। सुप्रीम कोर्ट में सरकार के इस नए बयान के बाद परिवार को लेकर भी काफी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
परिवार का खेल तो नहीं
जैसा कि जी न्यूज की रिपोर्ट में बताया गया है पीड़िता और आरोपित के बीच घंटो बात होती थी जिसके बाद इसमें ऑनर किलिंग को लेकर सवाल भी खड़े हो गए है कि कहीं इस पूरे मामले में परिवार ने ही तो ऑनर किलिंग को छिपाने के लिए ही जातीय रंग नहीं दे दिया जिसका फायदा विपक्ष और असामाजिक तत्व अपने-अपने तरीके से उठाने के लिए कूद पड़े हैं। हालांकि, ये कितना सच है और कितना झूठ जांच के बाद ही पता चल सकेगा।
इतने बिखरे हुए केस में विपक्ष अभी-भी अपना राजनीतिक हित साधने में लगा हुआ है जबकि जांच अभी पूरी नहीं हुई है। इस पूरे मामले में परत-दर-परत नए तथ्यों की एंट्री केस को पेचीदा बना रही है लेकिन अब इन तथ्यों के आधार पर अगर आगे चलकर पुलिस की रिपोर्ट में परिवार को लेकर कुछ चौंकाने वाला खुलासा होता है तो ये राजनीति करने वालों उन गिद्धों पर बहुत भारी पड़ेगा।
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