ये लगा तीर निशाने पर!
क्या भारत ताइवान को एक देश का दर्जा देने की तैयारी कर रहा है? क्या भारत अब आधिकारिक तौर पर One-China policy को हमेशा-हमेशा के लिए Goodbye कहने वाला है? भारत के इरादे देखकर तो अब यही लगता है। कई मीडिया रिपोर्ट्स इस ओर इशारा कर रही हैं कि जल्द ही भारत और ताइवान के बीच एक trade deal को लेकर आधिकारिक स्तर पर बातचीत शुरू हो सकती है। भारत और ताइवान, दोनों ही देशों का चीन के साथ बेहद तनावपूर्ण विवाद चल रहा है, और इस बीच ये दोनों देश एक दूसरे के करीब आने की कोशिश कर रहे हैं।
ताइवान पिछले कई वर्षों से भारत के साथ एक ट्रेड डील को पक्का करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अब ऐसा पहली बार है कि भारत की ओर से भी इसको लेकर सकारात्मक संकेत मिलने शुरू हुए हैं। ताइवान ने अपनी Southbound पॉलिसी के तहत भारत को प्राथमिकता देने का फैसला लिया है और अब भारत भी अपनी Act East पॉलिसी के जरिये Taiwan के साथ संवाद को बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। अभी मौजूदा स्थिति का विश्लेषण किया जाये तो ऐसा लगता है कि भारत और ताइवान आर्थिक रिश्तों को मजबूत कर अपने कूटनीतिक रिश्तों की बहाली की ओर पहला कदम बढ़ा सकते हैं।
उदाहरण के लिए इसी महीने की शुरुआत में मोदी सरकार Foxconn, Wistron और Pegatron जैसी Taiwan के मोबाइल निर्माता कंपनियों को अपनी पाँच वर्षीय incentive scheme में शामिल करने का फैसला ले चुकी है। इसी के साथ-साथ ताइवान भी अपनी Southbound पॉलिसी के तहत भारत में बड़े पैमाने पर production bases को स्थापित करने की तैयारी कर रहा है। ताइवान के उप-विदेश मंत्री Tien Chung-kwang के मुताबिक “भारत एक लोकतंत्र है, भारत एक बढ़िया investment destination है, भारत में skilled labour मौजूद है, ऐसे में हम भारत को अपने production bases का केंद्र बना सकते हैं।”
ताइवान के साथ अपने आर्थिक रिश्ते सुधारकर भारत भी बड़ा फायदा उठा सकता है। तकनीक और electronics के क्षेत्र में ताइवान बेहद आधुनिक है और अगर भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना चाहता है, तो ताइवान की सहायता ले सकता है। पिछले कुछ समय में भारत और ताइवान के बीच people to people ties बहुत मजबूत हुए हैं, जिसका असर अब भारत की विदेश नीति पर भी देखने को मिल सकता है।
भारत-ताइवान के मजबूत होते रिश्तों का श्रेय अगर किसी को जाता है, तो वह चीन ही है। बीते 10 अक्टूबर को Taiwan के राष्ट्रीय दिवस को लेकर जब भारत की मीडिया ने कवरेज की, तो इसके बाद भारत में मौजूद चीनी दूतावास की ओर से भारतीय मीडिया को “निर्देश” जारी किए गए कि भारतीय मीडिया को तथाकथित “वन चाइना पॉलिसी” का पालन करना चाहिए। चीन का यह कदम एक ब्लंडर साबित हुआ जिसके बाद भारत की मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक ताइवान ट्रेंड करने लगा।
अगर भविष्य में भारत-ताइवान के बीच कोई ट्रेड डील होती है या कूटनीतिक रिश्तों में और विकास देखने को मिलता है, तो इससे चीन की छाती पर साँप लोटना तय है। चीन कभी भी यह स्वीकार नहीं करना चाहेगा कि भारत जैसा बड़ा लोकतान्त्रिक, शक्तिशाली देश ताइवान को एक अलग देश के तौर पर मान्यता प्रदान करे। चीन की मीडिया यह पहले ही धमकी दे चुकी है कि अगर भारत ताइवान कार्ड खेलता है, तो चीन भी भारत के पूर्वोत्तर में भारत विरोधी मानसिकता को बढ़ावा दे सकता है। इसके अलावा इस खबर पर चीन ने प्रतिक्रिया करते हुए भारत को ताइवान के साथ किसी भी आधिकारिक बातचीत के खिलाफ चेतावनी जारी की है। हालांकि, चीन की इन धमकियों का शायद ही भारत पर कोई असर पड़े। लद्दाख में भारत के खिलाफ आक्रामकता दिखाकर चीन ने बड़ी भूल की है और अब उसे अंजाम भुगतने के लिए तैयार हो जाना चाहिए!
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