देवेन्द्र फडणवीस ने 2014 में ही एकनाथ खडसे को बेरोजगार कर दिया था, इन्होंने इस्तीफा देने में 6 साल लगा दिए
देर से ही सही पर सही फैसला लिया!
महाराष्ट्र बीजेपी के नेता एकनाथ खडसे ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है जिसके बाद विश्लेषकों ने अपनी तथाकथित सूझबूझ के आधार पर इस वाकये को बीजेपी के लिए एक झटका बता दिया है, लेकिन क्या ये सच में बीजेपी के लिए कोई झटका है या केवल एक हवा बनाई जा रही है? वास्तव में पार्टी में खडसे के पास कोई बड़ा पद नहीं था, उन्हें भ्रष्टाचार के चलते मंत्री पद से 2016 में इस्तीफा देना पड़ा था। वो उसी दिन सदमें में आ गए थे जब उन्हें किनारे कर महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री पद देवेन्द्र फडणवीस को दिया गया था, उसके बाद से ही खडसे का करियर बीजेपी में लगभग खत्म हो गया था, अब ये आधिकारिक तौर पर भी हो गया है।
दरअसल, महाराष्ट्र के नेता एकनाथ खडसे ने बुधवार को बीजेपी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इस दौरान प्रदेश के पूर्व सीएम देवेन्द्र फडणवीस पर निशाना साधते हुए उन्हें पार्टी के लिए नुकसानदेह बताया है, और इसी कारण को उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह बताया है। उन्होंने कहा कि फडणवीस ने उनका करियर बर्बाद कर दिया है। इसे संयोग कहें या पहले की कोई साठ-गांठ कि जैसे ही उन्होंने इस्तीफा दिया वैसे ही उनके एनसीपी में जाने की खबरें तुल पकड़ने लगीं। एनसीपी के नेताओं ने बयान दिया कि उनका महाविकास अघाड़ी में स्वागत है। ये बयान अपने आप में साफ संकेत देता है कि दोनों के बीच कुछ तो चल रहा था जिसकी खबर किसी को नहीं थी।
महाराष्ट्र की राजनीति में एकनाथ खडसे बीजेपी के लिए एक बड़ा नाम थे लेकिन ऐसा नहीं है कि उनके अन्य दलों से मैत्रीपूर्ण संबंध नहीं रखते थे। उनके मित्र और सहयोगी कांग्रेस से लेकर एनसीपी तक में थे जिसके चलते उनके कद को लेकर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं था। महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सरकार 2014 में बनी तो राज्य में खडसे को साइडलाइन करते हुए देवेन्द्र फडणवीस को सीएम बना दिया गया जिसके बाद 2016 में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्हें फडणवीस कैबिनेट से भी बाहर होना पड़ा। आज की स्थिति ये थी कि उन्हें लेकर ये कहा जाता था कि वो महाराष्ट्र के बीजेपी नेता थे, लेकिन पद के नामपर उनके पास कुछ भी नहीं था जो कि उनके लिए चिंताजनक समय था।
महाराष्ट्र में बीजेपी के तीन बड़े नेता थे जिनमें नितिन गडकरी, गोपीनीथ मुंडे और एकनाथ खडसे शामिल थे। 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद नितिन गडकरी को केन्द्र में बेहद ही बड़ा और सम्मानजनक पद दिया गया जिसमें उनके विकास कार्यों के कारण उनकी खूब प्रशंसा भी होती है। इसी तरह गोपीनीथ मुंडे को कैबिनेट रैंक तो मिली लेकिन एक सड़क हादसे में उनका निधन हो गया। वर्ष 2014 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो महाराष्ट्र में खडसे ही एक बड़े नेता थे, जिनको ये भ्रम था कि अब चुनाव जीतने के बाद वो ही सीएम बनेंगे, लेकिन फडणवीस का सीएम बनना खडसे के लिए पहाड़ टूटने जैसा था। उनके इस्तीफे की ये पटकथा तो उसी वक्त लिख दी गई थी बस पर्दे पर आने में 6 साल का वक्त लग गया।
बीजेपी का मानना था कि वो अब पार्टी में नए चेहरों को जगह देगी। केन्द्र भी इसका उदाहरण है कि 75 साल के ऊपर के किसी भी नेता को मंत्री पद नहीं दिया जा रहा है। ठीक उसी तरह बीजेपी राज्यों में भी अपनी ताकत बढ़ाने के लिए नए चेहरों को आगे बढ़ा रही थी। हरियाणा में अनिल विज की जगह मनोहर लाल खट्टर, झारखंड में अर्जुन मुंडा की जगह रघुबर दास और महाराष्ट्र में एकनाथ खडसे की जगह फडणवीस को जगह देना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।इस तरह के महत्वाकांक्षी नेता पार्टी के भविष्य के लिए खतरा थे इसलिए ये कठिन फैसले लिए गए जो कि बाद में सही भी साबित हो रहे हैं।
ऐसे में जब पार्टी नए नेताओं को आगे बढ़ाने पर काम कर रही है तो पुराने नेताओं के छोड़कर जाने पर अनुभव के लिहाज से थोड़ी कमी तो हो सकती है लेकिन जनता युवा चेहरों को ज्यादा तवज्जो देकर इन महत्वाकांक्षी नेताओं को उनकी असल जगह पहुंचा ही देती है। जनाधार का घटना एकनाथ खडसे जैसे नेताओं के लिए नुकसानदायक साबित हुआ और उन्हें पार्टी में घुटन-सी होने लगी जिसके चलते उन्होंने पार्टी छोड़ दी। इसका मतलब ये नहीं कि पार्टी को झटका लगा है ये तो बस इस बात को साबित करता है कि साइडलाइन होने के बाद इनके राजनीतिक करियर पर प्रश्न चिन्ह लग गया था। ऐसे में उन्हें इस्तीफा देकर अपने लिए नया कुनबा देखना पड़ रहा है जिसकी पटकथा खुद वो लिख चुक हैं।
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