UN में PM मोदी की दहाड़ से बीजिंग और इस्लामाबाद में आए तेज झटके
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र(UN) महासभा के 75 वें जनरल डिबेट सत्र के 22 मिनट के अपने लंबे सम्बोधन में न केवल चीन और उसके विस्तारवाद की निंदा की, बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ की वर्तमान प्रक्रियाओं और संरचना को भी सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया।
पीएम मोदी ने अपने भाषण में एक बार भी पाकिस्तान का नाम तक नहीं लिया। यह जरूरी भी था क्योंकि भारत स्वयं को एक महाशक्ति के रूप में पेश कर रहा है, उसके लिए पाकिस्तान से अधिक महत्वपूर्ण विषय पहले से मौजूद हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन ने वैश्विक समुदाय को आह्वान करते हुए इस अवसर पर साथ आने के लिए कहा, विशेष रूप से COVID के बाद की दुनिया में होने वाले बदलाव के लिए। पीएम मोदी ने UN की संरचना में तुरंत और अनिवार्य रूप से सुधार पर ज़ोर दिया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सीट का हकदार है। इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर सकता और वैश्विक समुदाय यह जानता है।
हालांकि, उस दिशा में होने वाले बदलाव काफी धीमे नजर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने UN को चेतावनी भरे शब्दों के माध्यम से संकेत दिया कि भारतीयों का धैर्य अब जवाब दे रहा है। दुनिया के सबसे बड़े और सबसे विविध लोकतंत्र के प्रधानमंत्री ने सवाल किया कि, “आज, भारत के लोग चिंतित हैं कि क्या यह सुधार-प्रक्रिया कभी भी अपने तार्किक निष्कर्ष तक पहुंच पाएगी। कब तक भारत को संयुक्त राष्ट्र के निर्णय लेने वाली संरचनाओं से बाहर रखा जाएगा?”
प्रधानमंत्री के भाषण का पहला भाग वैश्विक समुदाय को UN में सुधार की आवश्यकता को याद दिलाने पर ध्यान केंद्रित था। UNSC के गठन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किया गया था लेकिन आज 40 दशक के बाद जियो-पॉलिटिकल महौल पूरी तरह से बदल चुका है। पीएम मोदी ने कहा कि,”भारत हमेशा शांति, सुरक्षा और समृद्धि के समर्थन में बात करेगा… भारत मानवता, मानव जाति और मानव मूल्यों के दुश्मनों के खिलाफ अपनी आवाज उठाने में संकोच नहीं करेगा – जिसमें आतंकवाद, अवैध हथियारों की तस्करी, ड्रग्स और मनी-लॉन्ड्रिंग शामिल हैं।”
पीएम मोदी ने आगे कहा, “पिछले आठ से नौ महीनों में, पूरी दुनिया कोरोनावायरस की महामारी से जूझ रही है। महामारी के खिलाफ संयुक्त लड़ाई में संयुक्त राष्ट्र कहाँ है? इसकी प्रभावी प्रतिक्रिया कहां है? … प्रतिक्रियाओं और प्रक्रियाओं के साथ संयुक्त राष्ट्र के चरित्र में बदलाव आज समय की आवश्यकता है।”
पीएम मोदी ने सवाल उठाते हुए पूछा कि, “क्या 1945 की तत्कालीन परिस्थितियों में गठित संस्था का चरित्र आज भी प्रासंगिक है? बदलते समय के साथ, अगर हम नहीं बदलते हैं, तो परिवर्तन लाने वाली इक्छाशक्ति कमजोर हो जाएगी।”
पीएम मोदी ने भी चीन का नाम लिए बगैर ऋण जाल के जरिय दूसरे देशों के जमीन हड़पने की नीति के तहत विस्तारवाद को शर्मसार कर दिया। उन्होंने कहा कि “किसी भी देश के प्रति भारत द्वारा दोस्ती का यह मतलब नहीं होता कि तीसरे देश के खिलाफ साजिश चल रही है। जब भारत अपनी विकास की साझेदारी को मजबूत करता है, तो वह भागीदार देश को आश्रित या असहाय बनाने के इरादे के साथ नहीं करता है।”
उन्होंने कहा कि भारत ने पूरे मानव जाति के हितों के बारे में हमेशा सोचा है, अपने निहित स्वार्थों के बारे में नहीं।” पीएम मोदी ने आगे कहा कि, “जब हम ताकतवर थे, तो हम कभी भी दुनिया के लिए खतरा नहीं थे, जब हम कमजोर थे, तो हम दुनिया पर बोझ भी नहीं बने।”
यह पहली बार है कि प्रधानमंत्री मोदी ने इतने आक्रामक तरीके से संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिए कहा है, ताकि यह बहुराष्ट्रीय मंच दुनिया भर की विविधता का वास्तव में प्रतिनिधित्व करे न कि एक अप्रासंगिक समूह बन कर रह जाए।साथ ही इस संगठन की और इसके प्रमुख अंगों की जवाबदेही तय की जा सके जिससे यह किसी देश द्वारा खरीदा न जा सके जैसा कि चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मामले में किया। एक स्थानीय महामारी को वैश्विक महामारी में बदलने की पूरी ज़िम्मेदारी चीन और WHO की साझेदारी को देनी चाहिए जो वैश्विक अर्थव्यवस्था को डूबाने के लिए किसी मिलीभगत से कम नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी UN को उसी के भाषण सत्र में घेरने वाले शायद पहले राष्ट्र प्रमुख हैं। UN कोरोना पर देशों को एक साथ लाने और उन्हें महामारी के खिलाफ एकजुट के लिए मार्गदर्शन करने में विफल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र को स्पष्ट संदेश दिया है कि भारत को भी निर्णय लेने वाले प्रमुख देशों में शामिल करो नहीं तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के समर्थन के बिना अप्रासंगिक हो जाओ।
भारत आम तौर पर विभिन्न बहुराष्ट्रीय समूहों के आदर्शों और सिद्धांतो का समर्थन करता है। संयुक्त राष्ट्र और इसकी वर्तमान संरचना पर पीएम मोदी का सीधा हमला एक भारतीय की दशा दिखाता है कि अब सभी भारतीयों की तरह, प्रधानमंत्री का धैर्य भी जवाब दे रहा है और यूएन को जल्द से जल्द सुधार करना चाहिए।
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