“भारत के दुश्मनों को हथियार नहीं बेचेंगे”, चीन को S400 की सप्लाई रोकने के बाद रूस ने पाक को हथियार बेचने से किया मना
भारत के सुख-दुख का एक ही सच्चा साथी है- रूस!
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस के दौरे पर हैं, जहां वो शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में हिस्सा ले रहे हैं। गुरुवार को राजनाथ सिंह की मुलाकात रूस के रक्षा मंत्री सर्गी शोइगू से हुई। इस मुलाकात की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि, भारत की मांग पर रूस ने वादा किया कि वो पाकिस्तान के साथ No Arms Supply की पॉलिसी जारी रखेगा। यानी पाकिस्तान को किसी भी तरह के बड़े हथियार सप्लाई नहीं किए जाएंगे। हर मुश्किल में भारत के साथ खड़े रहने वाले रूस ने एक बार फिर से इस बात का प्रमाण दिया है कि वह भारत का विश्वसनीय मित्र है।
यह मुलाकात भारत के लिहाज से महत्वपूर्ण रही। रक्षा मंत्री के दौरे में रूस और भारत के ज्वाइंट वेंचर के तहत बनने वाले AK-203 राइफल्स को लेकर समझौते को अंतिम रूप दे दिया गया है। रूस ने भारत के मेक इन इंडिया को सहायता प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है, साथ ही राजनाथ सिंह ने भी भारतीय डिफेंस सेक्टर को रूस द्वारा मिलने वाले दृढ़ समर्थन को लेकर रूस का धन्यवाद किया।
गौरतलब है कि, जब से भारत ने अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बढ़ावा देना शुरू किया है, पाकिस्तान ने भी अपनी विदेश नीति में बदलाव किया और रूस से अपने संबंध सुधारने हेतु प्रयास शुरू किए। इस दौरान रूसी सेना ने पाकिस्तान में संयुक्त सैन्य अभ्यास भी किया। कुछ विशेषज्ञों ने इसे भारतीय विदेश नीति की असफ़लता भी बताना शुरू कर दिया था। लेकिन राजनाथ सिंह के मॉस्को दौरे के बाद रूस ने ऐसी सभी संभावनाओं का अंत कर दिया है।
यह पहला मौका नहीं है जब रूसी सरकार ने अपनी विदेश नीति में भारत की केंद्रीय भूमिका को स्पष्ट किया है। भारत-चीन सीमा विवाद के दौरान फिर उसने अप्रत्यक्ष रूप से भारत की सहायता ही की है। रूस ने चीन को मिलने वाली S-400 मिसाइल सिस्टम की डिलीवरी पर भी रोक लगा दी है। रूस का यह कदम तब आया था जब भारत से तनाव के कारण चीन को इन मिसाइल्स की अत्यधिक आवश्यकता थी।
बता दें कि, चीन के पास अभी जो S-400 मिसाइल सिस्टम है वह 400 किलोमीटर तक टारगेट को ट्रैक कर सकता है, किंतु उसे ध्वस्त करने के लिए 400 किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइल चीन के पास नहीं है। चीन के अनुरोध के बावजूद मॉस्को ने इन मिसाइल्स की डिलीवरी पर रोक लगा दी है। जबकि इसी दौरान रूस ने भारत को समय पर S 400 की डिलीवरी का विश्वास तो दिलाया ही है साथ ही अपग्रेडेड Mig 29 तथा Su 30 विमानों को लेकर भी समझौता किया है।
भारत ने रूस में आयोजित हो रहे कावकाज़ संयुक्त सैन्य अभ्यास में जाने से इंकार कर दिया था। जिसके बाद चीन को उम्मीद थी कि, इन दोनों देशों के संबंधों में तल्खी आएगी। लेकिन इसके विपरीत रूसी नौसेना ने मलक्का स्ट्रेट के नजदीक अंडमान निकोबार में आकर सैन्य अभ्यास करने के भारतीय निमंत्रण को स्वीकार कर यह बताया कि, भारत आज भी उसके लिए चीन से अधिक महत्वपूर्ण है।
वास्तविकता यह है कि, मॉस्को और नई दिल्ली की साझेदारी दूरगामी रूप से रूस के लिए लाभकारी सिद्ध होगी। भारत का प्रयास है कि रूस को इंडोपेसिफिक राजनीति में उतारा जाए और किसी प्रकार से उसे और QUAD समूह को एक मंच पर लाया जाए। यह इसलिए भी संभव लगता है क्योंकि, रूस और चीन कई मुद्दों पर एक दूसरे के विपरीत हैं, फिर चाहे पूर्वी यूरोप की बात करें या व्लादिवोस्टोक की।
भारत ने रूस के साथ चेन्नई से व्लादिवोस्टोक तक समुद्री व्यापार हेतु एक समझौता भी किया है। मॉस्को जानता है कि, भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो बदलती वैश्विक व्यवस्था में उचित स्थान बनाने हेतु उसका सहयोग कर सकता है। यदि भारत की बात करें, तो आज भी हमारे 75 फ़ीसदी हथियार रूसी हैं। भारत में एके 203 राइफल से लेकर ब्रह्मोस मिसाइल तक रूस के साथ कई ज्वाइंट वेंचर में शामिल है। यही कारण है कि, मॉस्को ने फैसला लिया है कि चीन हो या पाकिस्तान, जो भी भारत से शत्रुता मोल लेगा वह उसे हथियार मुहैया नहीं कराएगा।
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