फ्रांस और जर्मनी के बीच भारत को लुभाने की दौड़ शुरू हो गयी है, जो यहाँ जीतेगा, वही यूरोप का बादशाह बनेगा
यूरोप की गद्दी का रास्ता Indo-pacific से होकर ही जाता है!
आज अमेरिका-चीन और भारत-चीन के बीच बढ़ते तनाव के कारण वैश्विक राजनीति का केंद्र Indo-Pacific बन चुका है। Indo-Pacific में पहले ही अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसी बड़ी ताक़तें बड़ी ही सक्रियता से चीन के सामने चुनौती पेश कर रही हैं। इसी बीच समय की ज़रूरत को भाँपते हुए यूरोप के दो प्रमुख देश जर्मनी और फ्रांस के बीच भी इंडो-पैसिफिक में अपनी पकड़ मजबूत करने को रेस शुरू हो चुकी है। इसी कड़ी में दोनों देश Indo-Pacific के सबसे अहम देश भारत को आकर्षित करने का प्रयास शुरू कर चुके हैं।
एक तरफ जहां फ्रांस ऑस्ट्रेलिया और भारत के साथ मिल कर Indo-Pacific में सहयोग बढ़ाने पर ध्यान देने के साथ एक त्रिपक्षीय बैठक कर रहा है तो वहीं जर्मनी ने भी इंडो-पैसिफिक में अपनी उपस्थिती दर्ज कराने की घोषणा की है और सबसे बड़ी बात ये कि उसकी ये नीति भारत केन्द्रित होगी।
दरअसल, कल भारत, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस ने Indo-Pacific क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए एक त्रिपक्षीय बैठक किया। इस वर्चुअल मीटिंग की सह-अध्यक्षता विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला, फ्रांसीसी मंत्रालय में महासचिव और विदेशी मामलों के प्रमुख Fran ois Delattre और ऑस्ट्रेलियाई विदेश मामलों के सचिव Frances Adamson ने किया।
इन तीनों ही देशों की यह पहली बार बैठक हुई थी। इस बैठक की सबसे खास बात फ्रांस का Indo-Pacific में रुचि दिखाना था जहां वह अपनी सहभागिता बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। फ्रांस पी5 का सदस्य है और वह Indo-Pacific में अपनी भूमिका भारत से दोस्ती बढ़ा कर करना चाहता है। यही कारण है कि इस बैठक का आयोजन किया गया था।
वहीं दूसरी ओर अभी तक चीन का साथ देने वाले जर्मनी ने भी अपनी विदेश नीति में बदलाव करते हुए भारत केन्द्रित Indo-Pacific नीति की घोषणा की है। आज जिस तरह से Indo-Pacific में चीन की गुंडागर्दी बढ़ती जा रही है और सभी देश उसके खिलाफ भड़क चुके हैं उसे देखते हुए जर्मनी की नीतियों में यह बदलाव बेहद अहम था। अगर वह आज भी चीन के साथ होता तो उसकी भी प्रासंगिकता आज चीन जैसी समाप्त होने के कगार पर होती।अब समय की ज़रूरत को भाँपते हुए जर्मनी ने भी हाल ही में अपनी Indo-Pacific नीति को जारी किया है जिसमें भारत की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया है।
भारत के साथ अपने संबंधो को और मजबूत करना और उसे अपनी दोस्ती के लिए आकर्षित करना जर्मनी के लिए बेहद अहम है। अगर उसे यूरोप में अपना दबदबा बनाए रखना है तो समय के साथ चलना आवश्यक है और आज के समय में भारत रणनीतिक और आर्थिक दोनों पहलू से सबसे महत्वपूर्ण देशों में से एक है।
यानि देखा जाए तो यूरोप के दो सबसे ताकतवर देश भारत को अपने साथ दोस्ती बढ़ाने के लिए भरपूर प्रयासरत हैं।
कुछ दिनों पहले तक जर्मनी के नेतृत्व में यूरोपियन यूनियन चीन से अपनी दोस्ती निभाने के कारण एक पक्ष चुनने में आनाकानी दिखा रहा था। वह दोनों नावों में पैर रख कर सवारी करना चाहता था। EU द्वारा status quo बनाए रखने के कारण पूरा का पूरा यूरोप अपनी प्रासंगिकता खो जाने की कगार पर आ गया जिसके बाद इन जर्मनी सहित कई देशों को अपनी विदेश नीति में Indo-Pacific के महत्व को समझते हुए बदलाव करना शुरू कर दिया है। पर अब जर्मनी तथा फ्रांस दोनों ही चीन से अधिक महत्व अमेरिका-भारत की उभरती साझेदारी को दे रहे हैं।
दोनों ही देश भारत को अपने साथ कर यूरोप में अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहते हैं। EU दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आर्थिक पावरहाउस है। परंतु यूरोप और इंडो-पैसिफिक की अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक सप्लाइ चेन से जुड़ी हुई हैं। प्रमुख व्यापारिक मार्ग हिंद महासागर, दक्षिण चीन सागर और प्रशांत क्षेत्र से गुजरते हैं। जर्मनी को पता है कि, दुनिया का 25 प्रतिशत समुद्री व्यापार मलक्का स्ट्रेट से होकर गुजरता है। अगर यहाँ युद्ध की स्थिति बनती है तो हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर के बीच प्रति दिन 2000 से अधिक जहाजों के परिवहन में रुकावट आएगी और सप्लाइ चेन पर गंभीर परिणाम होंगे।
आज अभी वैश्विक राजनीति का केंद्र बिंदु इंडो-पैसिफिक क्षेत्र बन गया है। और इंडो-पैसिफिक में आज के दौर में सबसे महत्वपूर्ण देश भारत है।इन दोनों देशों को पता है कि मलक्का स्ट्रेट पर भारत की स्थिति बेहद मजबूत है। जो भी देश भारत के साथ एक बेहतर संबंध बनाएगा और अर्थव्यवस्था को चीन के प्रकोप से बचायेगा उसकी यूरोप में एक बड़े खिलाड़ी की छवि और बढ़ेगी। जो भी देश इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिती दर्ज कराना चाहता है उसे सबसे पहले भारत के साथ अपने रिश्तों को नया आयाम देना होगा। अगर वे सफल रहते हैं तो वो यूरोप में भी अपना दबदबा कायम कर सकते हैं।
इससे वे EU में न सिर्फ अपना महत्व बढ़ा सकेंगे बल्कि अपनी बातों का वजन बढ़ा सकेंगे। यही कारण है कि फ्रांस और जर्मनी दोनों भारत को अपने पाले में करना चाहते हैं। अब भारत इन दोनों ही ताकतों को किस प्रकार से संतुलित करता है यह देखना दिलचस्प होगा।
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