इतिहास और भूगोल की मानें तो “दक्षिण चीन सागर” के नाम में चीन का कोई काम ही नहीं है

कुछ भी नाम रखो, लेकिन “दक्षिण चीन सागर” का कोई अर्थ नहीं!

चीन का दावा है कि उसके पास लगभग पूरे दक्षिण चीन सागर पर स्वामित्व का ऐतिहासिक अधिकार है। संयुक्त राष्ट्र में भी वह कई बार इस दावे को दोहरा चुका है जबकि सच्चाई कुछ और है। चीन “nine-dash line” के आधार पर इस जल क्षेत्र पर अपना दावा करता है यानि इस जल क्षेत्र पर “हमारा” नाम है, इसलिए यह हमारा है। अब समय आ चुका है कि चीन के इस दावों को धराशायी करने के लिए दक्षिण चीन सागर का नाम ही बदल दिया जाए।

चीन का दावा है कि वह लगभग 1.3 मिलियन वर्ग मील दक्षिण चीन सागर का मालिक है, लेकिन कम से कम छह अन्य देश के भी दावेदार हैं, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई और ताइवान।

अगर भौगोलिक दृष्टि से देखें तो दक्षिण चीन सागर दक्षिण पूर्व एशिया में पश्चिमी प्रशांत महासागर का पश्चिमी भाग है। यह चीन के दक्षिण, वियतनाम के पूर्व और दक्षिण, फिलीपींस के पश्चिम और बोर्नियो द्वीप के उत्तर में स्थित है।

सीमावर्ती देश और क्षेत्र में चीन, ताइवान, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर और वियतनाम शामिल हैं। यह पूर्वी चीन सागर के साथ ताइवान स्ट्रेट द्वारा और फिलीपीन सागर के साथ लूजॉन स्ट्रेट द्वारा जुड़ा हुआ है। इसमें कई रीफ, एटोल और द्वीप शामिल हैं जिसमें से परसेल द्वीप समूह, स्प्रैटली द्वीप समूह और स्कारबोरो शाल सबसे महत्वपूर्ण हैं। दक्षिण पूर्व एशिया के सभी देश लगभग 130,000 किमी (81,250 मील) के समुद्र तट के साथ लगभग पूरे दक्षिण चीन सागर को घेरते हैं; जबकि चीन के समुद्र तट की लंबाई मात्र लगभग 2,800 किमी (1,750 मील) है। ऐसे में इस समुद्र का नाम सिर्फ चीन के नाम के ऊपर होना किसी को भी खटकेगा।

समान्यतः इस सागर को South China Sea ही कहा जाता है शायद यहीं कारण है कि आज चीन इस पूरे जल क्षेत्र पर अपना दावा कर रहा है। हालांकि, ऐसा नहीं है इस सागर का ऐतिहासिक नाम South China sea रहा हो बल्कि यह एक हालिया घटनाक्रम है।

1930 के दशक में पूरे दक्षिण सागर को पूर्वी सागर से अलग करने के एक तरीके के रूप में South China Sea का उपयोग होना शुरू हुआ।

इस नाम को एशिया आने वाले यूरोपियन ने दिया था जिसका प्रचालन इतना बढ़ चुका है कि अब चीन स्वयं इस जल क्षेत्र पर अपना दावा करने लगा है। उससे पहले देखा जाए तो Western Zhou dynasty के इतिहास Yizhoushu में इस समुद्र का नाम Nanfang Hai यानि Southern Sea मिलता है। East Han Dynasty ने इस सागर को Zhang hai नाम दिया था जिसका अर्थ होता है The Rising Sea। Qing Dynasty के समय भी इसे Nan Hai यानि South Sea के नाम से ही जाना जाता था। दक्षिण पूर्व एशिया में इसे चंपा सागर या Sea of Cham कहा जाता था जो सोलहवीं शताब्दी से पहले चंपा के समुद्री साम्राज्य के बाद अपनाया गया था। वियतनाम में इसे East Sea के नाम से जाना जाता है वहीं फिलीपींस में इसे “Luzon Sea” के नाम से जाना जाता है। वर्ष 2011 में Spratly Islands के विबड़ के बाद इसे फिलीपींस सागर के नाम से जाना जाने लगा।

यह सागर अपने क्षेत्र के लिए जबरदस्त रणनीतिक महत्व रखता है क्योंकि यह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच मलक्का स्ट्रेट के जरीये संपर्क लिंक है। UNCTAD के अनुसार, वैश्विक शिपिंग का एक-तिहाई हिस्सा इसी सागर से हो कर गुजरता है, जिसमें अरबों का व्यापार होता है।

चीन का दावा है कि उसके पास लगभग पूरे दक्षिण चीन सागर पर स्वामित्व का ऐतिहासिक अधिकार है, 2016 के अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के फैसले के बावजूद, बीजिंग के दावे का अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत कोई कानूनी आधार नहीं था। वर्तमान में चीन ने दक्षिण चीन सागर में अपनी पकड़ बढ़ाई है, यहां तक ​​कि चीन ने कृत्रिम द्वीप भी बनाए हैं और सैन्य सुविधाएं में भी भारी इजाफा कर लिया है। चीन 9-Dash Line के जरीये पूरे क्षेत्र पर अपना दावा करता है। लेकिन वियतनाम, ताइवान, फिलीपींस, ब्रुनेई, और मलेशिया सभी के पास ऐसे भागों के लिए क्षेत्रीय दावे हैं जो उनके तट के पास हैं। वर्ष 2013 में फिलीपींस ने Law of the Sea Convention के तहत मध्यस्थता मामले में चीन के ऐतिहासिक अधिकारों और अन्य आक्रामकता को चुनौती दी। 2016 में मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने फिलीपींस के पक्ष में फैसला सुनाया और चीन के समुद्री दावों को खारिज कर दिया जो Convention में निर्धारित अधिकारों से परे हैं।

भौगोलिक रूप से या ऐतिहासिक रूप से दक्षिण चीन सागर सिर्फ चीन से संबंधित नहीं है, इसलिए इसे दक्षिण चीन सागर के रूप में कहने के बजाय, इसका नाम कुछ और होना चाहिए, जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई सागर क्योंकि यह समुद्र कई देशों को एक साथ जोड़ता है।

इस आधुनिक युग में, मानव सभ्यता एक बहुआयामी वैश्विक सहयोग से विकसित हुई है। भौगोलिक रूप से एशिया में मानव जाति की जरूरत को पूरा करने के लिए उप-क्षेत्र बनाया गया है और इस क्षेत्र को आधिकारिक तौर पर ‘दक्षिण पूर्व एशिया’ का नाम दिया गया था और इसमें बर्मा, ब्रुनेई, कंबोडिया, पूर्वी तिमोर, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपींस और वियतनाम जैसे देश शामिल हैं। दक्षिण पूर्व एशिया लगभग 600 मिलियन लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, जिन्होंने संयुक्त प्रयास में, संस्कृति, विज्ञान, शिक्षा, अर्थशास्त्र, राजनीति, आदि सहित कई पहलुओं में आधुनिक सभ्यता के लिए अद्वितीय और मूल योगदान दिया है। तो सिर्फ इस क्षेत्र के सागर पर सिर्फ चीन का एकाधिकार कैसे हो सकता है?

कई देश तो इस जल क्षेत्र का नाम बदलने की कोशिश पहले ही कर चुके हैं। वर्ष 2011 में, फिलीपींस ने “West Philippines Sea “ के रूप में सागर का नाम बदल दिया था। उसी दौरान एक ऑनलाइन आंदोलन भी चला था जिसमें South China Sea का नाम बदल कर “Southeast Asia Sea” करने का प्रस्ताव दिया गया था। वर्ष 2016 में इन्डोनेशिया ने भी चीन के दावे की धज्जियां उड़ाते हुए दक्षिण चीन सागर में अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र के उत्तरी क्षेत्रों को “North Natuna Sea” के रूप में दिखाया था जिसके बाद चीन काफी भड़क गया था।

अगर देखा जाए तो दक्षिण चीन सागर में चीन और उसके पड़ोसी देशों के बीच यह क्षेत्रीय संघर्ष की सभी जटिलताओं का जड़ उस जल क्षेत्र का नाम है। “दक्षिण चीन सागर” एक हालिया आविष्कार है जिसका इतिहास में कोई आधार नहीं है। अब समय आ गया है कि वैश्विन संगठनों और क्षेत्रीय देशों को साथ आ कर इस समुद्र का नाम बदलना चाहिए जिससे चीन के एकाधिकार को समाप्त किया जा सके।

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