चीन की सेना को लेकर पूरी दुनिया हमेशा से असमंजस की स्थिति में रही है, कई देशों में तो इसके प्रति खौफ की स्थिति थी। लेकिन भारतीय सेना द्वारा 2017 में डोकलाम विवाद और वर्तमान में इंडो-तिब्बत सीमा पर खींचतान में जिस तरह से चीनी पीएलए की पिटाई हुई है उसने पूरी दुनिया में चीनी सेना के प्रति व्याप्त संदेह को खत्म कर दिया है। नतीजा ये कि अब चीनी सेना से म्यांमार और भूटान जैसे देश भी नहीं डरते हैं और भारत की शह पर दोनों चीनी पीएलए की आंख में आंख डाल कर बात करते हैं।
Eurasiantimes की रिपोर्ट के अनुसार, यूएस इंटेलिजेंस की एक रिपोर्ट में विश्लेषकों ने ये दावा किया है कि 2017 में डोकलाम विवाद में यथास्थिति बदलने की कोशिश कर रही पीपल्स लिबरेशन आर्मी को भारतीय सेना ने जिस तरह की आक्रामकता से प्रतिक्रिया दी उससे बीजिंग में बैठे चीनी रणनीतिकारों को एक बड़ा झटका लगा है। जम्मू-कश्मीर में 15 कोर के कमांडर सैयद अता हसनैन ने लिखा है कि चीन हिमालय की बेल्ट पर भारत के साथ मनोवैज्ञानिक खेल में जुटा हुआ है और संभावनाएं हैं कि वो अपनी इस रणनीति को आगे भी जारी रखेगा।
इस रिपोर्ट में लिखा है, “डोकलाम विवाद के बाद से चीन ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। चीन ने पिछले तीन वर्षों में भारतीय सीमा पर एयरबेस से लेकर हैलीपेड की संख्या को दोगुना करने के साथ ही वायु क्षेत्र में रक्षा प्रणाली को मजबूत किया है।” इसमें ये भी पता लगा है कि “2017 में डोकलमाम विवाद के बाद चीन ने भारतीय सीमा के इस क्षेत्र में 13 नई सैन्य पोजीशन, 3 एयरबेस, 5 एयरडिफेंस क्षेत्र और 5 हैलीपेड बनाए हैं। जो ये साबित करता है कि डोकलाम विवाद के बाद ही चीन को भारत की असल शक्ति का अंदाज़ा हुआ था। ”
बता दें कि जून 2017 में चीनी पीएलए का एका बड़ा जत्था डोकलाम के भारत-चीन-भूटान वाले ट्राईजंक्शन पर सड़क निर्माण करने लगा। ऐसे में भारतीय सेना ने सक्रियता दिखाते हुए मानव श्रृंखला बनाकर उन चीनी सैनिकों को वहीं रुकने ओर काम बंद करने पर मजबूर कर दिया। चीन साउथ चाइना सी की तरह ही इस क्षेत्र में अचानक कब्जा करने की नीति पर काम कर रहा था, लेकिन 75 दिनों के लंबे गतिरोध के बावजूद चीन को पीछे हटना पड़ा और वहीं से चीनी पीएलए की छवि पर दाग लगना शुरू हो गए थे। उस मसले पर चीन और भूटान के बीच अभी भी बातचीत जारी है और दोनों 25 दौर की बातचीत कर चुके हैं।
चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों की तुलना में कमजोर है इसका सीधा उदाहरण तो हाल में लद्दाख की ठंड से बीमार पड़ रहे चीनी सैनिकों का अस्पताल जाना ही है। इसके अलावा भारतीय सेना हमेशा भारत के कश्मीर राज्य जैसे दुनिया के सबसे मुश्किल बैटलफील्ड पर तैनात रहती है उसके पास अनेक बड़े ऑपरेशंस और युद्ध लड़ने का अनुभव है। दूसरी ओर चीनी सैनिकों के पास ऐसा कोई खास अनुभव नहीं है। युद्धाभ्यास छोड़ कर देखें तो चीनी सैनिकों का बैटलफील्ड एक्सपीरियंस बेहद कम है जो कि चीन के लिए माइनस प्वाइंट है।
इंडो-तिब्बत सीमा विवाद के दौरान चीनी और भारतीय सैनिकों में हुई झड़प के बाद जिस तरह से चीनी सैनिकों को मुंह की खानी पड़ी वो उनके लिए किसी झटके की तरह ही था। चीनी सैनिक इतने खतरनाक जवाब के लिए कतई तैयार नहीं थे। लद्दाख की जमा देने वाली ठंड में भी भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों को उनकी औकात दिखाई है। जिसके बाद चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों से सीधे युद्ध करने से परहेज की स्थिति में आ चुके हैं।
चीनी सेना अपने युद्धाभ्यास के दौरान हॉलीवुड की फिल्मों की तरह वीडियोज और तस्वीरें पोस्ट करती है उससे पूरी दुनिया में उसके प्रति एक असमंजस की छवि बनी हुई थी। लेकिन 2017 में डोकलाम विवाद और वर्तमान में इंडो तिब्बत सीमा विवाद के बाद जिस तरह से पीएलए के सैनिकों की धुनाई हुई है। उससे चीन की घिग्घी बन गई है। म्यांमार, बांग्लादेश, भूटान, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देशों का संदेह भी दूर हो गया है। यही कारण है कि यह देश अब भारत के साथ अपने रिश्ते अधिक मजबूत करना चाहते हैं जबकि चीनी सेना की भद्द पिटने के बाद यह देश चीन को ठेंगा ही दिखा रहे हैं।
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