अमेरिकी Spy plane ने चीन में हाहाकार मचाया, बदले में चीन ने खाली पानी में मिसाइल छोड़कर दो ऑक्टोपस को मार गिराया इसे कहते हैं बदला लेना

चीन अपने प्रभुत्व को बनाये रखने के लिए खूब हाथ पाँव मार रहा लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प उसकी मंशा पर पानी फेर दे रहे। इस बार जब चीन ने दवा किया कि अमेरिका ने उसके इलाके में घुसपैठ की है तो उसने जोरदार जवाबी कार्रवाई करने की बात कही। इसके बाद चीन ने अपने वफदार मित्र पाकिस्तान की तरह जवाबी कार्रवाई की भले ही उसका प्रभाव अमेरिका पर शून्य रहा, पर चीन ने जवाबी कार्रवाई की।

दरअसल, चीन का दावा है कि अमेरिका ने चीन की सेना द्वारा किए जा रहे सैन्य अभ्यास के दौरान अपने जासूसी विमान U-2 को दक्षिणी चीन सागर में भेजा था। जिसपर चीन ने आपत्ति जताते हुए अमेरिका को डराने के लिए दक्षिणी चीन सागर क्षेत्र में अपनी मध्यम दूरी की मिसाइलों को दाग दिया। हाँ, इस कार्रेवाई से अमेरिका को भले ही कोई जोरदार सन्देश नहीं मिल सका, परन्तु समुद्र की मछलियों और Octopus में जरूर तहलका मच गया होगा।

बता दें कि चीन द्वारा इस्तेमाल की गई इन मिसाइलों में “एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल” भी शामिल है जिसका उपयोग चीन ने अमेरिका को यह संदेश देने के लिए किया है कि वह दक्षिणी चीन सागर में अमेरिकी विमान वाहक पोत को आसानी से डुबो सकता है। इन मिसाइलों में DF 26 भी शामिल था जिसकी दूरी 4000 किलोमीटर है। गौरतलब है कि चीन द्वारा DF 26 को 2016 में सेना में शामिल किया गया था। इसके विकास के बाद अमेरिका ने रूस के साथ हुई Intermediate-Range Nuclear Forces Treaty से खुद को अलग कर लिया था। यह समझौता अमेरिका और रूस के बीच छोटी और मध्यम दूरी की परमाणु हमले में सक्षम मिसाइलों का विकास न करने को लेकर हुआ था। लेकिन चीन द्वारा ऐसी मिसाइल बनाने के बाद अमेरिका इस समझौते से अलग हो गया।

DF 26 जमीन तथा समुद्र दोनों स्थानों पर वार कर सकती है और यह न्यूक्लियर हमले के लिए भी उपयोग की जा सकती है। इसके अलावा चीन ने D F 21 को भी इस्तेमाल किया जो दुनिया की पहली बैलेस्टिक एंटी शिप मिसाइल है।

मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि “यह दक्षिण चीन सागर में लगातार आने वाले अमेरिकी युद्धक विमानों और सैन्य जहाजों द्वारा लाए गए संभावित जोखिमों के लिए चीन की प्रतिक्रिया है” साथ ही स्त्रोत के अनुसार “चीन नहीं चाहता कि पड़ोसी देश बीजिंग के उद्देश्यों को गलत समझें।”

दरअसल, चीन अमेरिका के आक्रामक व्यवहार से घबराया हुआ है। वह नहीं चाहता कि उसके पड़ोसी देशों में इस बात का विश्वास पैदा हो कि अमेरिका दक्षिणी चीन सागर में चीन से अधिक प्रभावी सकता है। यदि ऐसा हुआ तो आने वाले समय में फिलीपींस की तरह अन्य आसियान देश भी चीन की बढ़ती आक्रामकता से बचने के लिए अमेरिका के साथ मिलिट्री पैक्ट में जुड़ सकते हैं। चीन की नीति यही है कि अधिक से अधिक आक्रामक दिखकर अमेरिका के प्रभाव को किसी प्रकार से रोका जाए। परन्तु आक्रमकता के नाम पर चीन द्वारा इस तरह की जवाबी कार्रवाई उसकी ही मज़बूरी को दर्शा रहा है। स्पष्ट है चीन अमेरिका के मजबूत एक्शन से पस्त हो चुका है।

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