“जांच के बिना निष्कर्ष तक कैसे पहुँच गए ?” हरीश साल्वे ने सुशांत के मामले का मज़ाक बनाने के लिए मुंबई पुलिस को लताड़ा

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व सॉलिसिटर जनरल रहे हरीश साल्वे ने सुशांत सिंह राजपूत के मामले में मुंबई पुलिस को बिना आक्रामक हुए पटक-पटक के धोया है। टाइम्स नाउ से बातचीत करते वक्त हरीश साल्वे ने हर एंगल से इस मुद्दे का विश्लेषण करते हुए मीडिया को उसकी भूमिका के लिए सराहा है और मुंबई पुलिस की घटिया इंवेस्टिगेशन के लिए जमकर लताड़ा भी है।

टाइम्स नाउ से विशेष साक्षात्कार के दौरान हरीश साल्वे ने कहा, “यदि आज मुंबई पुलिस की खिंचाई हो रही है, तो ऐसा होना ही चाहिए। एक मंझे हुए सिस्टम में मीडिया को मुद्दे पर सकारात्मक पक्ष रखना चाहिए, और जांच पड़ताल होनी चाहिए। लेकिन यहाँ तो जांच पड़ताल हो ही नहीं रही थी, और मीडिया के एक धड़े ने ये ज़िम्मेदारी खुद उठाई। अच्छा हुआ उन्होने ये काम किया”।

परंतु हरीश साल्वे यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने पुलिस की खामियां गिनाते हुए कहा कि मुंबई पुलिस ने पूरी जांच पड़ताल का मज़ाक बना कर रख दिया। उन्होंने कहा, “ऐसे मामले में मुंबई पुलिस की अकर्मण्यता के लिए जो आलोचना मिल रही है, वो होनी भी चाहिए। किसने उन्हें [और महाराष्ट्र सरकार] अधिकार दिया कि बिना जांच पड़ताल के ही मामले का परिणाम घोषित कर दे? हमने पूरी आपराधिक जांच प्रणाली का मज़ाक बना दिया है इस मामले में, जिसका श्रेय केवल एक संगठन को जाता है – मुंबई पुलिस!”।

हरीश साल्वे ने मुंबई पुलिस को मामले में सभ्य तरह से जांच पड़ताल न करने, सुशांत के पार्थिव शरीर की फोटो लीक होने देने जैसी गलतियों के लिए भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने ये पूछा कि मुंबई पुलिस ऐसे घृणित तस्वीरों को लीक होने भी कैसे दे सकती थी? क्या जांच पड़ताल का कोई सिस्टम नहीं था उस समय?

जब बात मुंबई पुलिस द्वारा एफ़आईआर न रजिस्टर कराने पर आई, तो हरीश साल्वे ने स्पष्ट किया कि इसी जगह मुंबई पुलिस ने बहुत बड़ी भूल की। उनके अनुसार, “जब परिवार ने शक जताया, तो उन्हें बिना समय गवाए इस मामले पर जांच पड़ताल करनी चाहिए। किसी भी घटना की जांच में पारदर्शिता होना बहुत अहम है। आत्महत्या हो तो भी हर सिरे से जांच करना आवश्यक है। परंतु मुंबई पुलिस ने ऐसा कुछ नहीं किया, और बिना सोचे समझे एक निष्कर्ष पर आ पहुंचे। आखिर उन्हें, या किसी को भी ये अधिकार किसने दिया कि बिना जांच पड़ताल के एक मामले को निष्कर्ष पर ले आयें?” हरीश साल्वे ने जो सवाल उठाये वो काफी गंभीर है और मुंबई पुलिस की लापरवाहियों को दर्शाता है।

बता दें कि हरीश साल्वे एक बेहतरीन अधिवक्ता हैं, जिन्होंने पूर्व नौसैनिक अफसर कुलभूषण जाधव को मौत के मुंह में जाने से भी बचाया था। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में पाकिस्तान की एक एक दलील को ध्वस्त करते हुए न केवल कुलभूषण के लिए Consular Access का प्रबंध करवाया, अपितु अनिश्चितकाल के लिए मृत्युदण्ड पर रोक भी लगवाई। जब सीएए के विरोध में प्रदर्शन अपने चरम पर थे, तो हरीश साल्वे ने इस अधिनियम को असंवैधानिक बताने वाले लोगों की दलीलों को एक-एक करके ध्वस्त किया और ये सिद्ध किया कि किस प्रकार से यह अधिनियम पूर्णतया वैध है, और इससे संविधान को कोई खतरा नहीं होगा।

पूरे मामले की बखिया उधेड़ने के लिए मुंबई पुलिस को जनता के क्रोध का सामना करना पड़ा है। जिस तरह मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार इसे आत्महत्या सिद्ध करने पर तुले हुए थे, और जिस प्रकार से इस केस के मुख्य आरोपियों में से एक, अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती ने मुंबई पुलिस के वर्तमान प्रशासन पर भरोसा जताया, उससे स्पष्ट होता है कि इस केस में कुछ तो गड़बड़ है, और इसी बात पर प्रकाश डालकर हरीश साल्वे ने बिना चांटा जड़े मुंबई पुलिस के गाल शर्म से लाल कर दिये हैं।

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