नेहरू का नेवल ब्लंडर- नेहरू ने बर्मा को कोको द्वीप दान कर दिया, आज चीन वहां बैठकर भारत को आँख दिखा रहा है पहाड़ों से लेकर समुन्द्र तक! नेहरू के कारनामे एक से बढ़कर एक रहे हैं
सोचिए कि एक नया नया स्वतंत्र हुआ देश एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में आ जाए, जो एक के बाद एक गलतियाँ करते हुए देश का बंटाधार कर दे, पर इतिहासकार उसे देश की प्रगति को बढ़ावा देने वाले एक प्रगतिशील पुरुष के तौर पर प्रशंसित करे। कैसा लगेगा आपको? लेकिन हमारे देश के साथ कुछ ऐसा ही है। दुर्भाग्यवश भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने जवाहरलाल नेहरू की एक अनोखी कला थी – बिना सोचे समझे देश के अहम हिस्सों को विदेशी ताकतों को दान करने की।
अब इसमें कोई दो राय नहीं है कि किस प्रकार नेहरू ने चीन और पाकिस्तान को देश के अहम हिस्से दान किए थे, परंतु इस बात पर लोगों का कम ही ध्यान जाता है कि किस प्रकार से नेहरू ने रणनीतिक रूप से अहम एक द्वीप को दान कर दिया, जिसके कारण अब चीन हमारे देश पर हमला करने के लिए अच्छी ख़ासी रणनीति बना सकता है, और ये भूल थी कोको द्वीप को दान करने की।
पर ये कोको द्वीप है क्या? अंडमान द्वीप समूह का एक अहम हिस्सा होने के नाते कोको द्वीप म्यांमार के नियंत्रण में आता है। बंगाल की खाड़ी में कोलकाता से करीब 1255 किलोमीटर ये द्वीप उस जल मार्ग में बीचोबीच स्थित है, जहां से चीन मलक्का के स्ट्रेट से जुड़ता है, ताकि मिडिल ईस्ट और अफ्रीका से अपने तेल और गैस के आयात को सुनिश्चित करा सके। 19वीं सदी में अंडमान और निकोबार के द्वीप का उपयोग ब्रिटेन ने विद्रोही भारतीयों को कैद करने के लिए किया और कोको द्वीप से नारियल की भरपूर आपूर्ति भी होती 2है।
जब अंग्रेज़ 1947 में देश छोड़ने लगे, तो वे भारत को एक सशक्त देश के तौर पर बिलकुल नहीं देखना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने अपने सैन्य प्रमुखों के जरिये उन द्वीपों को अपने नियंत्रण में रखने का निर्णय लिया, जो भारतीय उपमहाद्वीप से दूर थे। 13 जून 1947 की एक रिपोर्ट में इस योजना को विस्तार से बताया गया है।
रिपोर्ट के एक अंश अनुसार, “लक्षद्वीप का द्वीप समूह, जिसपर बहुत कम लोग रहते हैं, रणनीतिक रूप से काफी अहम है। यदि हम भारत के सभी सुविधाओं का लाभ नहीं उठा सकते, तो कम से कम उन द्वीपों का लाभ तो उठा ही सकते हैं, जो हमारे एयर reinforcement और न्यूज़ीलैंड एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के सपोर्ट रूट के लिए काम आ सके। हमें किसी भी हालत में अंडमान एवं निकोबार द्वीप को ट्रांसफर ऑफ पावर के नीति से दूर रखना होगा”।
अंग्रेज़ ये सुनिश्चित करना चाहते थे कि भारत की स्वतन्त्रता तक ये द्वीप समूह भारत के नियंत्रण में न रहे, और भारत के अंतिम वाइसरॉय लॉर्ड माउंटबैटन से बातचीत के बाद जवाहरलाल नेहरू ने कोको द्वीप अंग्रेजों को दान कर दी, जिन्होंने इसे बर्मा को दे दिया। 1994 से कई मीडिया रिपोर्ट्स ने यह बताया है कि किस प्रकार से म्यांमार ने इन द्वीपों को चीन को लीज़ पर दिया है, जिसका उपयोग वे DRDO के मिसाइल प्रोग्राम पर निगरानी रखने के लिए करते हैं।
कोको द्वीप समूह काफी हद तक चीन द्वारा नियंत्रित रहा है, और पिछले दो दशकों में चीन ने भारत पर जासूसी करने के लिए काफी प्रबंध कर लिया है। ऐसे में यदि कोको द्वीप पर चीन सैन्य छावनी स्थापित कर लेता है, तो इससे चीन को भारत की नौसैनिक गतिविधियों पर निगरानी करने का अवसर मिल जाएगा। इससे न केवल भारत, अपितु ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे ताकतों के अरमानों पर भी पानी फिर जाएगा।
अब भारत सैन्य ताकत की दृष्टि से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को सशक्त बना रहा है, पर उसे चीन के गतिविधियों पर अधिक सतर्क रहना होगा। यदि नेहरू ने अपनी निजी छवि के बजाए भारत की सुरक्षा पर अधिक ध्यान दिया होता, तो आज चीन की हमें आँखें दिखाने की भी औकात न होती।
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