चीन के साथ टकराव ने भारत का कद बढ़ा दिया है,अब भारत क्षेत्रीय नहीं वैश्विक शक्ति है वैश्विक स्तर पर भारत-पाक कूटनीति से आगे बढ़ चुका है देश
कहते हैं, जब आप किसी बड़े प्रतिद्वंदी से भिड़ते हो, और उसके सामने बिलकुल भी घुटने नहीं टेकते हो, तो आपके प्रति दुनिया का दृष्टिकोण बदलता है। जिस तरह से भारत ने चीन के विरुद्ध बिना घुटने टेके मोर्चा संभाला है, और चीन के अत्याचारों से त्रस्त दुनिया को राह दिखाई है, उससे न केवल भारत का वैश्विक कद बढ़ा है, अपितु भारत पाकिस्तान के मुद्दे को भी साइडलाइन किया गया है, जिससे पाकिस्तान की वैश्विक छवि को भी तगड़ा नुकसान पहुंचा है।
परंतु ये कायाकल्प हुआ कैसे? जो भारत कभी अंतर्राष्ट्रीय पटल पर उपहास का विषय था, वह अचानक से विश्व के लिए इतना अहम कैसे हो गया? इसका जवाब आपको मिलेगा भारत के विरोधी में, जो कोई और नहीं, बल्कि वुहान वायरस का जनक और इस समय विश्व के लिए सबसे बड़ा सरदर्द बना चीन है। इसका एक उदाहरण अभी हाल ही में देखने को मिला है, जब चीन के अत्याचारों से त्रस्त हो कर वियतनाम ने भारत से आधिकारिक तौर पर सहायता मांगी है।
वियतनाम के राजदूत ने हाल ही में भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला से बातचीत में चीन के नापाक इरादों के बारे में अवगत कराया है। चीन की गुंडई से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है, लेकिन इस बार अपनी हदें पार करते हुए उसने दक्षिण चीन सागर में अपने नौसैनिक बॉम्बर तैनात किए हैं, विशेषकर वियतनामी क्षेत्र में, जिससे स्पष्ट पता चलता है कि चीन के वास्तविक इरादे क्या है। हालांकि, वियतनाम और भारत के बीच की बातें पूर्णतया सार्वजनिक नहीं हुई है, लेकिन वियतनाम ने संकेत दिया है कि वे भारत की सहायता चाहते हैं।
अब आप सोच रहे होंगे, इसका पाकिस्तान वाले मुद्दे से क्या लेना देना? पहले भारत की विदेश नीति इतनी परिपक्व नहीं थी, जितनी अभी है। पहले भारत की अधिकतर विदेश नीति 1990 तक केवल दो बिन्दुओं पर ही केन्द्रित थी – पाकिस्तान और सोवियत रूस। इसके कारण भारत का नाम पाकिस्तान के साथ ऐसा जुड़ा कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों में भी भारत के साथ पाकिस्तान का उल्लेख होने लगा। हालांकि, इस रीति से पीछा छुड़ाने के लिए भारत ने कुछ प्रयास भी किए, लेकिन वे काफी हद तक नाकाफी थे। परंतु 2014 में मोदी सरकार के आगमन से इस समस्या से भी धीरे-धीरे निजात मिलने लगा, और फिर चीन ने 2020 में गलवान घाटी में हमला कर भारत के वैश्विक कद को बढ़ाने का एक सुनहरा अवसर प्रदान किया।
आज भारत का नाम कश्मीर या पाकिस्तान से तनातनी के लिए नहीं, अपितु उसके बढ़ते वैश्विक कद के लिए लिया जा रहा है। चीन से चुनौती लेने के लिए भारत को ठीक वैसे ही सम्मान की दृष्टि से देखा जा रहा है, जैसे वुहान वायरस पर चीन से मोर्चा लेने के लिए ताइवान को देखा जा रहा है। इसका एक सकारात्मक असर यह भी पड़ा कि जो पाकिस्तान कश्मीर के नाम पर विश्व का ध्यान आकर्षित करना चाहता था, आज उसे चीन और तुर्की को छोड़कर कोई भी भाव नहीं देना चाहता है।
लेकिन केवल यही एक बात नहीं है, जिसके कारण भारत का कद बढ़ा है। अगर भारत के बढ़ते कद के पीछे का कारण जानना है, तो आपको कुछ महीने पहले का रुख करना होगा, जब चीन ने मई में पूर्वी लद्दाख में कब्जा जमाने की नीयत से कदम रखा था। ये वो समय था जब वुहान वायरस के प्रकोप से पूरी दुनिया कराह रही थी, और भारत भी राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के अंतर्गत इस महामारी से जूझ रहा था। वुहान वायरस दुनिया भर में फैलाकर चीन ने सोचा कि क्यों न एक तीर से दो लक्ष्य भेदे जाएँ। एक पूर्वी लद्दाख पर कब्जा जमा लें, और दूसरा, 2017 में डोक्लाम पठार पर भारत के हाथों हुई बेइज्जती का बदला लिया जाये, और फिर बदले का साक्षी बना गलवान घाटी।
लेकिन भारतीयों ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थी। इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स की माने तो भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसियों और अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसियों ने अपनी अपनी रिपोर्ट्स में इस बात पर प्रकाश डाला कि चीन पिछले तीन वर्षों से गलवान घाटी में हमले की तैयारियां कर रहा था। लेकिन चीन का अतिआत्मविश्वास उसे बहुत महंगा पड़ा, क्योंकि गलवान घाटी में भारतीयों ने उनकी ऐसी धुलाई की, कि चीन अभी तक अपने मृत सैनिकों की वास्तविक संख्या बताना तो दूर की बात, उन्हे उचित अंतिम संस्कार देने से भी कतराता रहा है। निस्संदेह भारत को 20 जवानों की वीरगति से गहरा झटका लगा, परंतु चीन के गोलमोल जवाब से इतना तो स्पष्ट है कि भारतीयों ने चीनियों को साफ बचकर निकलने भी नहीं दिया।
गलवान घाटी पर चीन के हमले से भारत को न सिर्फ वैश्विक समर्थन, अपितु अमेरिका से लेकर फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, इज़रायल और जापान जैसे शक्तिशाली देशों ने उसे अपने समर्थन के साथ साथ हरसंभव सहायता देने का भी वादा किया। इसके पश्चात जब भारत ने डिजिटल और आर्थिक मोर्चे पर चीन पर ताबड़तोड़ प्रहार किये तो आधे से अधिक दुनिया उसके साथ आ गई। स्थिति तो यह हो गई कि जो रूस चीन का करीबी माना जाता है, उसने भी अपने एस 400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम के लिए भारत को ही प्राथमिकता दी और चीन के लिए इस सिस्टम की डिलीवरी ही निलंबित कर दी।
पाकिस्तान की इस समय हालत काफी खराब है। कोई देश उसे कर्जा देने को तैयार नहीं, इस्लामिक देश होने के बावजूद इस्लामिक जगत के ताकतवर देश उसकी सुनने को तैयार नहीं, और तो और कश्मीर मुद्दे पर तो मानो पूरी दुनिया कानों में तेल डालकर बैठी है। वहीं दूसरी ओर अब भारत का कद न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा है, अपितु अब अमेरिका से लेकर इज़रायल, जापान से लेकर फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश न केवल उसके साथ हैं, अपितु किसी भी स्थिति में हरसंभव सहायता के लिए भी तैयार हैं।
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