Kashi/Banaras:देश में इस वक़्त प्राचीन मंदिरों पर अवैध कब्ज़ा हटवाने की एक विशेष मुहीम चल रही है। अयोध्या (Ayodhya) में भव्य राम मंदिर (Ram Mandir) के शिलान्यास और भूमिपूजन के बाद मथुरा (Mathura) और काशी (Kashi) को लेकर हिंदूवादी संगठनों ने अपना आंदोलन तेज कर दिया है। हाल ही में अयोध्या में राम मंदिर के ऐतिहासिक भूमि पूजन के साथ ही नए युग का आरम्भ हुआ हैं। कोरोना संकट में ये दुनिया डिजिटल के माध्यम से इस क्षण का गवाह बनी।
बता दे की उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले यह राजनैतिक हलचल सुनाई देने लगी है। वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन (फास्ट ट्रैक) की कोर्ट में श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishvanath Temple) और ज्ञानव्यापी मस्जिद (Gyaanwapi) मसले की सुनवाई भी चल रही है। जिस पर अब सबकी नजरें टिक गई हैं। इस बार की तारीख में जिला जज की अदालत ने प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को नोटिस जारी करने का आदेश देते हुए अग्रिम सुनवाई के लिए एक सितंबर की तारीख मुकर्रर कर दी है।
हिंदूओं के धार्मिक स्थलों से जुड़े इस विवाद में तो कई मंदिर हैं परंतु सबसे उपर है हिंदूओं के भगवान श्री राम की जन्म स्थली अयोध्या, जिसका विवाद करीब 500 सालों बाद समाप्त हो चुका है और जहाँ पर अब जल्दी ही एक भव्य राम मंदिर भी बनने वाला है, परंतु विवाद यहीं पर समाप्त नहीं होता अपितु एक नए दिशा की ओर मुड़ गया है और वो है काशी व मथुरा यानी की हिंदू धर्म के पुज्य भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली एवं भगवान शंकर की द्वादश ज्योतिर्लिंग जो कि प्रत्येक हिंदू हृदय में विशेष आस्था रखता है।
जानकारी हो की पिछली तारीख एक जुलाई को प्रतिवादी अंजुमन इंतजामिया मस्जिद की तरफ से जिला जज उमेशचंद्र शर्मा की अदालत में याचिका दाखिल की गई थी। अंजुमन इंतजामिया मस्जिद की तरफ से सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में अर्जी देकर ये कहा गया था कि मामले की सुनवाई सिविल कोर्ट में नहीं हो सकती।
बता दे की इस याचिका को कोर्ट ने खारिज करते हुए सुनवाई चालू रखने का आदेश दिया। फिर प्रतिवादी ने एक और अर्जी लगाई, जिसमें कहा गया कि लखनऊ वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल न्यायाधिकरण के पास प्रकरण को भेजा जाए। 25 फरवरी को ये याचिका भी सीनियर डिवीजन सिविल कोर्ट से खारिज हो गई। इसी के खिलाफ जिला जज की अदालत में एक जुलाई को याचिका दाखिल की गई, जिस पर सुनवाई करते हुए जिला जज ने प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को नोटिस जारी करने का आदेश दिया है।
मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है की भगवान विश्वेश्वर की तरफ से पंडित सोमनाथ व्यास और डॉ. रामरंग शर्मा ने ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा-पाठ का अधिकार देने को लेकर वर्ष 1991 में स्थानीय अदालत में मुकदमा दाखिल किया था। इस मुकदमे में वर्ष 1998 में हाईकोर्ट के स्टे से सुनवाई स्थगित हो गई थी।
अब भगवान विश्वेश्वर के मुकदमे की सुनवाई फिर से वाराणसी की सिविल जज जो की सीनियर डिवीजन-फास्ट ट्रैक कोर्ट है, में शुरू हो गई है। दिवंगत वादी पंडित सोमनाथ व्यास और डॉ. रामरंग शर्मा के स्थान पर प्रतिनिधित्व करने के लिए पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी को न्याय मित्र नियुक्ति किया।
बता दे की भगवान विश्वेश्वर की तरफ से ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराए जाने की अर्जी पर मस्जिद पक्षकारों से उनका पक्ष मांगा गया है। इंतजामिया कमेटी की ओर से आपत्ति दर्ज की गई। परन्तु सुन्नी वक्फ बोर्ड की आपत्ति नहीं आ पाई। 21 जनवरी को सुन्नी वक्फ बोर्ड का प्रार्थना पक्ष सामने आया और उनकी ओर से नए वकील इस केस के लिए नियुक्त हुए। नए वकील ने केस से जुड़े कुछ दस्तावेज मांगे, उसके बाद अपना पक्ष रखने की बात कही थी। जिसके बाद कोर्ट ने दोनो पक्षों के वकील की मौजूदगी में अगली तारीख दी।
बता दे की अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन कराने वाले आचार्य पंडित गंगाधर पाठक ने प्रधानमंत्री मोदी से दक्षिणा का निवेदन किया था, जो सुर्ख़ियों में रहा था। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को यजमान कहते हुए कहा कि अपने यजमान से दक्षिणा की माँग करना गलत नहीं होता है। आचार्य गंगाधर पाठक ने दक्षिणा में गोवध पर पाबंदी और काशी तथा मथुरा की मुक्ति की माँग की। आचार्य गंगाधर ने मीडिया में बताया की यह मेरे लिए सौभाग्य की बात थी कि मेरे यजमान प्रधानमंत्री मोदी हैं।
आचार्य ने कहा कि वह केवल प्रधानमंत्री मोदी ही नहीं, अपुतु एक सात्विक पुरुष भी हैं। काफ़ी ख़ुशी हुई, लोकतांत्रिक देश का प्रधानमंत्री सनातन परंपरा का निर्वहन कर रहा है। यह वाकई खुशी वाली बात है। दक्षिणा के सवाल का जवाब देते हुए पंडित गंगाधर ने कहा मैं प्रधानमंत्री मोदी से नहीं बल्कि अपने यजमान से दक्षिणा की अपेक्षा रखता हूँ। प्रधानमंत्री से तो वेतन लिया जाता है, मैं प्रधानमंत्री रूपी अपने यजमान से दक्षिणा की अपेक्षा रखता हूँ।
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