अखंड भारत के प्रबल पक्षधर थे नाथूराम गोडसे जिनकी अस्थियां भी कर रही हैं प्रतीक्षा.. गांधी को मारा था राष्ट्र विभाजन के गुस्से मेंवो इतिहास जिसकी चर्चा किये बिना अधूरा है आज का
अखंड भारत दिवस पर अगर निष्पक्षता से विचार किया जाय तो ऐसे कई नाम निकलेंगे जिन्होंने इस स्वप्न के साथ जीवन बिताया अथवा इसी स्वप्न के लिए जीवन का बलिदान कर दिया... बाला साहेब ठाकरे , डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी , वीर सावरकर जैसे अनगिनत नाम ऐसे हैं जिन्होंने हिंदुओं को बार बार प्रेरणा दी कि वो अखंड राष्ट्र को भगवा ध्वज के तले फिर से लाएं और उन्ही महापुरुषों का ही आज सत्कर्म है जो देश को अपना असली इतिहास याद रहा और अखंड भारत की संकल्पना ज्यों की ज्यों जीवित है..
अगर बात थोड़ा हट कर की जाय तो अखंड भारत जैसे शब्द के साथ एक नाम और जुड़ा है जो सँभवतः सदा जुड़ा भी रहे.. यद्द्पि वामपंथी कलमकारों ने अपनी तरफ से हर प्रयास कर डाले सत्य को बदलने के लिए..हालांकि वो कई दशक तक अपने मंसूबों में कामयाब भी रहे थे पर कहा जाता है कि साँच को आंच नही. जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे लोगों को ऐसी बहुत चीजें जानने को मिली जो एकदम नई और अप्रत्याशित थीं.. उन्ही अनगिनत अप्रत्याशित बातों में एक नाम है नाथूराम गोडसे का जिनका एक ही पक्ष हमेशा आगे रखा गया..
गोडसे द्वारा गांधी की हत्या के बाद देश का धर्मनिरपेक्ष वर्ग एकजुट हो गया था और गोडसे शब्द तक को संसद में असंसदीय घोषित कर दिया गया जो मोदी सरकार में जा के खत्म हुआ..यकीनन आज के स्वघोषित धर्म निरपेक्ष माहौल में संसद पर हमला करने वाले दरिन्दे अफजल गुरु की बरसी मनाना एक संवैधानिक अधिकार माना जाता हो . लाखों निर्दोषों के हत्यारे लेनिन , चे ग्वेरा, फिदेल कास्त्रो आदि की मूर्तियाँ भारत में लगाये रखने के संघर्ष होते हो , आज भी भारत के कई कोनो में पाकिस्तान के लिए पटाखे फूटते हों , सैनिको पर पत्थर मारे जाते हो , दुर्दांत आतंकी बुरहान वाणी के लिए नारे गूंजते हों जिसको न सिर्फ नेताओं बल्कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग संगीत जैसे आनंद से आराम से सुन कर आनंद लेता हो लेकिन एक नाम ऐसा भी है जिसको मात्र हिन्दू समाज को कटघरे में खड़ा करने के लिए ऐसे तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया जैसे अब तक के स्वतंत्र भारत में गलती सिर्फ और सिर्फ एक व्यक्ति ने की हो और वो है नाथूराम गोडसे.
इस देश मे अलगाव की बात करने वालों को Z सुरक्षा दी जाती रही, राष्ट्र के रक्षको को घायल करते पत्थरबाज़ों को पुचकारा जाता रहा, दुर्दांत आतंकियों के लिए आधी रात अदालतें लगती रहीं , बौद्धों की हत्या कर के दूसरे देश से आये कातिलों को बसाया जाता रहा लेकिन सिर्फ एक नाम से इतनी चिढ़ बनाये रहे कि 75 साल से उसको ही नफरत का प्रतीक घोषित किये रहे..कम लोगों को पता है कि कश्मीर के कुख्यात आतंकियों तक के शव उनके परिवार को दे दिया जाता है जिसमे सेना विरोधी, भारत विरोधी नारे लगते हैं और आतंकी उन्हें बन्दूकों की सलामी देते हैं लेकिन नाथूराम गोडसे का शव इन्ही तथाकथित मानवता के ठेकेदारों ने उनके घर वालों को नही दिया था बल्कि तत्कालीन सरकार के आदेश पर जेल के अधिकारियों ने घग्घर नदी के किनारे पर उन्हें जला दिया था ..
इस देश मे अलगाव की बात करने वालों को Z सुरक्षा दी जाती रही, राष्ट्र के रक्षको को घायल करते पत्थरबाज़ों को पुचकारा जाता रहा, दुर्दांत आतंकियों के लिए आधी रात अदालतें लगती रहीं , बौद्धों की हत्या कर के दूसरे देश से आये कातिलों को बसाया जाता रहा लेकिन सिर्फ एक नाम से इतनी चिढ़ बनाये रहे कि 75 साल से उसको ही नफरत का प्रतीक घोषित किये रहे..कम लोगों को पता है कि कश्मीर के कुख्यात आतंकियों तक के शव उनके परिवार को दे दिया जाता है जिसमे सेना विरोधी, भारत विरोधी नारे लगते हैं और आतंकी उन्हें बन्दूकों की सलामी देते हैं लेकिन नाथूराम गोडसे का शव इन्ही तथाकथित मानवता के ठेकेदारों ने उनके घर वालों को नही दिया था बल्कि तत्कालीन सरकार के आदेश पर जेल के अधिकारियों ने घग्घर नदी के किनारे पर उन्हें जला दिया था.
1 नवंबर 1947 को गोडसे के अखबार ‘हिंदू राष्ट्र’ के नए कार्यालय का उद्घाटन कार्यक्रम रखा गया. इस कार्यक्रम में पुणे (तब का पूना) के तमाम प्रतिष्ठित लोगों और खासकर हिंदुवादी नेताओं को आमंत्रित किया गया था. उस शाम गोडसे ने अपने भाषण में बंटवारा का पूरा ठीकरा गांधी के सिर पर फोड़ा. इतिहासकार डोमिनिक लॉपियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में लिखा है कि हैं, “गोडसे ने गरजकर कहा, भारत माता के दो टुकड़े कर दिये गए हैं. गिद्ध मातृभूमि की बोटियां नोच रहे हैं. कितनी देर कोई यह सहन करेगा?”
सीनियर बीजेपी लीडर और कद्दावर शख्सियत राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने संसद में मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या पर खुली चर्चा कराने की पैरवी की है। कहना न होगा कि गाहे-बगाहे स्वामी ने क़रीब सात दशक पुराने गांधी हत्याकांड के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। दरअसल, गांधी की हत्या से जुड़े कई पहलू ऐसे हैं, जिन पर आज तक कई वर्षो के बाद कभी चर्चा तक नहीं हुई। लिहाज़ा, यह सुनहरा मौक़ा है, जब उस घटना के हर पहलू की चर्चा करके उसे सार्वजनिक किया जाए और देश के लोगों का भ्रम दूर किया जाए कि आख़िर वास्तविकता क्या है और देश जान सके कि आखिर गाँधी की हत्या क्यों और किस परिस्थिति में गोडसे ने की ?
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