चीन की लोन डिप्लोमेसी पर पीएम मोदी का प्रहार!'बिना किसी लाभ की आशा के दूसरों की मदद करता है भारत' मॉरीशस के सुप्रीम कोर्ट के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन किया
नई दिल्ली/ पोर्ट लुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन की कर्ज देकर या सहायता करके कमजोर देशों को गुलाम बनाने की और इस प्रकार से चीन की विस्तारवादी घिनौनी नीति पर चीन का नाम लिए बिना तगड़ा हमला बोला। उन्होंने कहा कि हम जो भी मदद करते हैं, उसमें कोई लाभ उठाने की इच्छा या योजना नहीं रखते हैं। प्रधानमंत्री ने आज चीन की लोन आधारित डिप्लोमेसी पर खूब तंज कसे। उन्होंने कहा कि वह एक सूदखोर की तरह से है जो पहले लोन देता है और फिर उसका घर ही ले लेता है। उन्होंने कहा कि हम एक दोस्त हैं, जिसके नाते हम अपनी जिम्मेदारियां निभाते हैं। प्रधानमंत्री ने ये बातें आज वीडियो कॉंफ्रेंस के जरिए मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ के साथ संयुक्त रूपसे मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में सुप्रीमकोर्ट के नए भवन के उद्घाटन पर कहीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की नीति और प्रतिबद्धताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत ने अफगानिस्तान की पार्लियामेंट बनाई, भारत अफगानिस्तान को क्रिकेट सिखा रहा है उससे कोई मजबूरी या किसी लाभ की कोई लालसा नहीं है, भारत नेपाल में पाइप लाइन बिछा रहा और अस्पताल का निर्माण करा रहा है भारत का नेपाल से लाभ उठाने का कोई भी उद्देश्य नहीं है, भारत श्रीलंका में भवन निर्माण के साथ-साथ एंबुलेंस सर्विस दे रहा है, भारत गुयाना में स्टेडियम और दूसरी मूलभूत सुविधाएं मुहैया करा रहा है और मालदीव को बगैर मांगे पीने का पानी मुहैया कराया है, जिसके पीछे कोई लाभ की आशा नहीं है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि विस्तारवादियों और हममें यही फर्क है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत बिना शर्त दूसरे देशों की मदद करता है। भारत मॉरीशस के लोगों की उपलब्धियों पर गर्व करता है यह तथ्य रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्वास जताया कि भारत-मॉरीशस साझेदारी निश्चित तौर पर आने वाले वर्षों में और भी नई ऊंचाइयों पर पहुंच जाएगी।
गौरतलब है कि विश्व के अनेक देशों में यह माना जाता है कि चीन ने वास्तव में लोन डिप्लोमेसी के जरिए इन 50 वर्ष में अपनी जमीन का एरिया बढ़ाया है। चायना की इस नीति को दुनियाभर में समझा जाता है और उसने कई मजबूर एवं कमजोर देशों के साथ ऐसा किया भी है, जिसका दुनिया को संज्ञान लेना ही चाहिए। बहरहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर मॉरीशस के सुप्रीमकोर्ट के नए भवन के उद्घाटन पर कहा कि यह भवन मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में भारत से सहायता प्राप्त पहली अवसंरचना परियोजना है, भारत सरकार ने जिसके लिए 28.12 मिलियन अमेरिकी डालर की अनुदान सहायता दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के विकास सहयोग के अंतर्निहित दर्शन के रूपमें मानव केंद्रित दृष्टिकोण का महत्व रेखांकित किया। प्रधानमंत्री ने भारत एवं मॉरीशस के बीच घनिष्ठ संबंधों को और प्रगाढ़ करने में जनउन्मुख बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं की भूमिका की सराहना की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आधुनिक डिजाइन एवं अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित नया सुप्रीमकोर्ट भवन मॉरीशस न्यायपालिका के लिए एक उपयुक्त स्थान और सहयोग के साथ-साथ भारत एवं मॉरीशस के साझा मूल्यों का भी प्रतीक होगा। उन्होंने कहा कि परियोजना निर्धारित समय पर और प्रारंभिक अनुमानों से कम लागत पर ही पूरी हो गई, यह बहुत प्रसन्नता की बात है। प्रधानमंत्री ने कहा कि मॉरीशस के साथ सहयोग विकास साझेदारियों से जुड़े भारतीय दृष्टिकोण के केंद्र में है। उन्होंने कहा कि भारत के विकास सहयोग में कोई भी शर्त अंतर्निहित नहीं होती है और न ही कोई राजनीतिक या वाणिज्यिक हित जुड़ा होता है। उन्होंने कहा कि भारत का मुख्य सिद्धांत हमारे साझेदारों का मान-सम्मान करना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारतीय विकास सहयोग ‘सम्मान’, ‘विविधता’, ‘भविष्य के लिए चिंता’ और ‘सतत विकास’ के प्रमुख मूल्यों के रूपमें विशिष्टता प्रदान करता है।
मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ ने इस परियोजना के लिए भारत से मिली सहायता की हृदय से सराहना की और आभार व्यक्त किया, क्योंकि यह दोनों देशों के बीच मित्रता और सहयोग के प्रगाढ़ संबंधों को प्रतिबिंबित करती है। मॉरीशस के प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय सहायता से बनाया गया नया सुप्रीमकोर्ट भवन मॉरीशस में बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण की दिशा में एक नया मील का पत्थर है तथा इससे मॉरीशस की न्याय प्रणाली को और भी अधिक प्रभावकारी, सुलभ एवं समावेशी बनाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि भारत के विजन के अनुरूप नया सुप्रीम कोर्ट भवन हिंद महासागर क्षेत्र में मॉरीशस के एक विश्वसनीय साझेदार के रूपमें भारत की भूमिका को दर्शाता है और इसके साथ ही दोनों देशों के बीच भविष्यउन्मुख साझेदारी मजबूत करने के लिए भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है।
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