इस शर्मनाक घटना पर सब चुप क्यों हैं?
जिला जौनपुर एक बार फिर सुर्खियों में है, पर गलत कारणों से। 9 जून को बथेटी ग्राम में दलित बस्ती पर सैकड़ों कट्टरपंथी मुसलमानों ने हमला किया और कईयो के घर को स्वाहा कर दिया। इस प्रकार एक बार फिर उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक हिंसा की घटना से लोगों को दो चार होना पड़ा है।
पर इस तांडव के पीछे क्या कारण था? कारण था कि कुछ दलित बच्चे एक खेत में अपनी भैंसों को टहलाने ले गए थे, जो पास में खड़े मुसलमानों की बकरियों से टकरा गई। एक छोटी सी लड़ाई के पीछे कट्टरपंथी लोगों ने हो-हल्ला मचा दिया। उन्हे किसी तरह सरपंच ने शांत कराकर वापस भेजा। पर दलितों को क्या पता था कि उनके विरुद्ध कुछ बहुत ही भयानक साजिश रची जा रही थी।
देर रात बथेटी ग्राम की दलित बस्ती में कट्टरपंथी मुसलमानों की हिंसक भीड़ आई, और वहाँ रह रहे परिवारों के घरों को जला डाला। इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान सराई ख्वाजा पुलिस स्टेशन के थाना प्रभारी संजीव मिश्रा ने बताया, “दोनों पक्षों में पत्थरबाजी हुई थी और लोगों का मानना था कि वहाँ गोलियां भी चली थी। दोनों पक्षों से 11 लड़के घायल हुए थे”। एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार, “महिलाओं और बच्चों को दूसरे गाँव में शरण लेनी पड़ी थी, जबकि 10 घरों को आग के हवाले कर दिया गया था”।
हालांकि जांच पड़ताल में जो बात सामने आई, उसने न केवल कट्टरपंथी मुसलमानों की भयावहता को जगजाहिर किया, अपितु “जय मीम-जय भीम” जैसे नारों की वास्तविकता और प्रासंगिकता को भी सबके सामने उजागर कर दिया। दंगाइयों को भड़काने वालों में मुख्य रूप से जावेद सिद्दीकी और नूर आलम शामिल थे, जिनमें जावेद सिद्दीकी तो समाजवादी पार्टी का नेता भी है। परंतु ये बात केवल जौनपुर तक सीमित नहीं है। अभी कुछ दिनों पहले आजमगढ़ में भी कई दलित लड़कियों के साथ कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा छेड़खानी की खबरें सामने आई थी।
फिलहाल प्रशासन ने कोई कोताही न बरतते हुए अपराधियों को कठोर से कठोरतम दंड देने का निर्णय लिया है। जावेद सिद्दीकी और नूर आलम के विरुद्ध रासुका और Gangster एक्ट के अंतर्गत मुकदमा दर्ज़ करने की बात कही गयी है, और इसके अलावा इन लोगों पर सीएलए एक्ट की धारा 7, एपिडेमिक डिसीज़ एक्ट और एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत मुकदमा चलाया जाएगा। साथ ही थाना प्रभारी संजीव मिश्रा का भी स्थानांतरण कर दिया गया है।
इससे पहले भी जौनपुर में साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएँ होती रही हैं। पिछले वर्ष जब काँवड़ यात्रा पर भोले बाबा के अनेकों भक्त निकले थे, तो कुछ कट्टरपंथियों ने एक कांवड़िये को सिर्फ इसलिए पीट डाला था क्योंकि उन्हें उसके द्वारा “बोल बम” के नारे लगाना अच्छा नहीं लगा था।
इन घटनाओं से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है, कि “जय भीम-जय मीम” एक नारा नहीं, बल्कि एक मिथ्या है। राजनीतिज्ञों ने इस नारे को सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया है, और इसका सच्चाई से कोई नाता नहीं है। “जय भीम-जय मीम” का नारा कथित हिन्दुत्व और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को चुनौती देने के लिए ईजाद किया गया था, परंतु जिस तरह से उन्होने जौनपुर और बाकी क्षेत्रों में उत्पात मचाया है, उसने इस राजनीतिक नारे की पोल खोलकर रख दी है।
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