भारत ने सागर में ड्रैगन को घेरा

चीन की अकड़ के कारण दक्षिण चीन सागर लंबे समय से टकराव का क्षेत्र बना हुआ है और दुनिया के सामने चीन की चालों की काट खोजने के अलावा विकल्प नहीं। भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ एक अहम समझौता करके एशिया प्रशांत क्षेत्र में ड्रैगन की घेराबंदी कर दी है।

लद्दाख में चीन के साथ तनातनी के बीच भारत ने भारत-प्रशांत समुद्री क्षेत्र में चीन की घेराबंदी कर दी है। भारत और ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिण चीन सागर से लगते इस अहम समुद्री क्षेत्र में एक-दूसरे के ठिकानों के इस्तेमाल का महत्वपूर्ण समझौता किया है। ऐसे समय में जब दुनिया को वायरस की चपेट में डालकर अपनी गलती को स्वीकार करने की जगह चीन तरह-तरह का आक्रामक व्यवहार कर रहा है, भारत की ओर से की गई यह सामरिक घेराबंदी अहम हो जाती है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन के बीच हुई वर्चुअल बैठक में दोनों देशों ने अपने रिश्तों को नई मजबूती दी और परस्पर रिश्तों के संबंध में अब तक जिस तरह विदेश और रक्षा सचिवों के स्तर पर बातचीत होती थी, उसे बढ़ाकर मंत्री स्तरीय कर दिया गया है। गौरतलब है कि क्वाड के अन्य देशों अमेरिका और जापान के साथ भारत के पहले से ही 2+2 के फार्मेट में बातचीत का समझौता है। अब ऑस्ट्रेलिया के साथ भी ऐसा समझौता हो जाना इस बात का संकेत है कि यह एक ऐसा मजबूत गठजोड़ बन गया है जो भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामक नीतियों की काट बनेगा। बहरहाल, दोनों देशों ने विज्ञान, तकनीक और रिसर्च के क्षेत्र में परस्पर सहयोग को मजबूत करने के इरादे के साथ-साथ जो सबसे बड़ा कदम उठाया है, वह है भारत-प्रशांत समुद्री क्षेत्र में सहयोग बढ़ाना और एक-दूसरे के ठिकानों का इस्तेमाल करना।

चीन की हेकड़ी का जवाब
आज जिस तरह की स्थितियां हैं, उसमें वायरस का फैल जाना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन दिक्कत की बात यह है कि चीन ने इसको लेकर ईमानदारी नहीं बरती, दुनिया को धोखे में रखा, विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर सच को छिपाया। इसलिए दुनिया गुस्से में है क्योंकि लाखों-लाख लोग मरते जा रहे हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था की तो जैसे जान ही निकल गई है। ऐसे में चीन की जिम्मेदारी थी कि वह ईमानदारी के साथ अपनी गलती मानता और मिल-जुलकर बचने-बचाने में सहयोग करता। लेकिन हुआ इसका उल्टा और चीन ने दुनिया की पीड़ा को समझने की जगह धौंसपट्टी दिखानी शुरू कर दी है जिसका उदाहरण दक्षिण चीन सागर से लेकर लद्दाख, हर जगह देखने को मिल रहा है। इस पृष्ठभूमि में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुआ यह समझौता काफी अहम है।

साझी चिंता, साझा उपाय
चीनी आक्रामक नीतियों के इस दौर में भारत और ऑस्ट्रेलिया में भारत-प्रशांत क्षेत्र में नौसैनिक सहयोग का समझौता सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। भारत और ऑस्ट्रेलिया ने कहा है कि “ दोनों देश सामरिक सहयोगियों के रूप में भारत प्रशांत क्षेत्र में अवसरों का लाभ उठाएंगे और चुनौतियों का सामना करेंगे”।

मलक्का जलडमरूमध्य से होकर दुनिया का तकरीबन एक तिहाई व्यापार होता है और तेल के मामले में तो यह बहुत ही महत्वपूर्ण रास्ता है। वर्ष 2016 के आंकड़ों के मुताबिक मलक्का से होकर रोजाना 1.6 करोड़ गैलन तेल का व्यापार हुआ। कह सकते हैं कि चीन समेत ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण चीन सागर के तमाम देशों के लिए मलक्का चैनल का खासा महत्व है और दक्षिण चीन सागर में चीन जिस तरह की हरकतें कर रहा है, उसका निशाना दरअसल इसी समुद्री चैनल पर है जो हिंद और प्रशांत महासागर को जोड़ता है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह में भारत की मजबूत नौसैनिक उपस्थिति है और वहां से मलक्का जलडमरूमध्य पास ही है। दूसरी और कोकोस द्वीप ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका के लगभग बीचोंबीच है और इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप के करीब है। कोकोस दक्षिण-पूर्व एशिया में आता है। ऑस्ट्रेलिया की नौसेना कोकोस द्वीप पर मौजूद है जो इंडोनेशिया के पास से गुजरने वाले सुंडा, लैम्बोक और ओंबाई-वेतर जलडमरूमध्यों के पास है। कह सकते हैं कि ये जलडमरूमध्य हिंद और प्रशांत महासागर के बीच प्रवेश और निकलने के रास्ते हैं। और इन दोनों बिंदुओं पर अब भारत और ऑस्ट्रेलिया का पहरा होगा। दोनों देश एक दूसरे के ठिकानों का इस्तेमाल कर सकेंगे, यानी भारत को छूट होगी कि वह ऑस्ट्रेलिया के कोकोस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेगा और ऐसे ही ऑस्ट्रेलिया भारत के अंडमान निकोबार द्वीपों में स्थित ठिकानों का।

भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने एक समूह बना रखा है जिसे क्वाड कहते हैं और यह समूह खास तौर से मलक्का चैनल समेत पूरे दक्षिण चीन सागर में मुक्त व्यापार और आवागमन की मांग कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया को अंदाजा है कि आने वाले समय में हिंद और भारत-प्रशांत क्षेत्र का महत्व बढ़ता ही जाएगा और यही कारण है कि अमेरिका भी लगातार इस व्यापार रूट पर चीन की दादागिरी का विरोेध करता रहा है।

शतरंज के खेल की तरह ही कूटनीति का एक तकाजा होता है- सामने वाले की चाल का जबाव देते चलो। इसका उद्देश्य संतुलन बनाए रखना होता है और ये प्रेशर वाल्व की तरह काम करते हैं। यानी अगर चीन इस क्षेत्र में कुछ भी आक्रामक गतिविधि के बारे में सोचेगा तो उसे पहले बैठकर हिसाब-किताब लगाना होगा कि उसके मुकाबले में कौन-कौन खड़े होंगे। इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि भारत ने चीन की अच्छी घेराबंदी कर दी है।

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