प्रधानमंत्री सबसे ले रहे हैं राय, सभी राजनीतिक दल हैं असहाय
सियासी दांव को कोई मौक़ा नहीं चूक रही भाजपा
सक्रियता ने चढ़ाया प्रधानमंत्री का ग्राफ,
तमाम दल वजूद चमकाने को आतुर
धीरे-धीरे दलों ने शोर मचाना शुरू किया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सक्रियता और उनके प्रभाव ने राजनीतिक दलों की परेशानी बढ़ाई हुई है। कांग्रेस समेत बाकी पार्टियां इस असमंजस में हैं कि कोविड-19 के खतरे और देश में स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति देखते हुए वे अपने वजूद को चमकाने का कौन सा रास्ता चुने। कितना सरकार की हां में हां मिलाएं और कितना विरोध करें? अंदरखाने अब कई दलों में सरकार को रचनात्मक, सकारात्मक सहयोग देने की नीति से धीरे-धीरे बाहर आने की छटपटाहट बढ़ रही है।
कांग्रेस पार्टी के एक महासचिव का कहना है कि जब भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री सरकार की चूक को छिपाकर तबलीगियों को टारगेट कर रहे थे, तब काफी असमंजस की स्थिति थी। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सामने आए और उन्होंने संभलकर पक्ष रखा। बाद में एनसीपी प्रमुख शरद पवार को प्रधानमंत्री के साथ चर्चा में मुद्दा उठाना पड़ा।
महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री के अनुसार पालघर में संतों की हत्या के बाद सबसे ज्यादा आशंका मामले के सांप्रदायिक रंग लेने की थी। नेताओं ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से बात की। राज्य सरकार ने तत्काल सख्त कानूनी कदम उठाने का निर्णय लिया। एनसीपी के एक नेता का मानना है कि उद्धव ठाकरे के रूप में महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री का चेहरा न रहा होता तो भाजपा और संघ के अनुषांगिक संगठनों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
शिवसेना के नेता संजय राऊत ने कहा कि इस घटना की निंदा करने और कानूनी कार्रवाई करने से कौन पीछे हट रहा है, लेकिन भाजपा ने मामले को सांप्रदायिक रंग देने की हर कोशिश की। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस का बयान ही देख लीजिए। क्या यह संप्रदायिक रंग देने की राजनीति नहीं है?
सियासी दांव को कोई मौक़ा नहीं चूक रही भाजपा
सक्रियता ने चढ़ाया प्रधानमंत्री का ग्राफ,
तमाम दल वजूद चमकाने को आतुर
धीरे-धीरे दलों ने शोर मचाना शुरू किया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सक्रियता और उनके प्रभाव ने राजनीतिक दलों की परेशानी बढ़ाई हुई है। कांग्रेस समेत बाकी पार्टियां इस असमंजस में हैं कि कोविड-19 के खतरे और देश में स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति देखते हुए वे अपने वजूद को चमकाने का कौन सा रास्ता चुने। कितना सरकार की हां में हां मिलाएं और कितना विरोध करें? अंदरखाने अब कई दलों में सरकार को रचनात्मक, सकारात्मक सहयोग देने की नीति से धीरे-धीरे बाहर आने की छटपटाहट बढ़ रही है।
कांग्रेस पार्टी के एक महासचिव का कहना है कि जब भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री सरकार की चूक को छिपाकर तबलीगियों को टारगेट कर रहे थे, तब काफी असमंजस की स्थिति थी। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सामने आए और उन्होंने संभलकर पक्ष रखा। बाद में एनसीपी प्रमुख शरद पवार को प्रधानमंत्री के साथ चर्चा में मुद्दा उठाना पड़ा।
महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री के अनुसार पालघर में संतों की हत्या के बाद सबसे ज्यादा आशंका मामले के सांप्रदायिक रंग लेने की थी। नेताओं ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से बात की। राज्य सरकार ने तत्काल सख्त कानूनी कदम उठाने का निर्णय लिया। एनसीपी के एक नेता का मानना है कि उद्धव ठाकरे के रूप में महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री का चेहरा न रहा होता तो भाजपा और संघ के अनुषांगिक संगठनों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
शिवसेना के नेता संजय राऊत ने कहा कि इस घटना की निंदा करने और कानूनी कार्रवाई करने से कौन पीछे हट रहा है, लेकिन भाजपा ने मामले को सांप्रदायिक रंग देने की हर कोशिश की। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस का बयान ही देख लीजिए। क्या यह संप्रदायिक रंग देने की राजनीति नहीं है?
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