मुसलमानों की भीड़ का डॉक्टरों पर हमला क्या मॉब लिंचिंग नहीं है ?

जिनका स्वागत ताली और थाली बजाकर किया जाना चाहिए था उनके ऊपर मुसलमान, जानलेवा हमले कर रहे हैं, डाक्टरों ने इसे मॉब लिंचिंग का प्रयास बताकर नई बहस छेड़ दी है

कोरोना वायरस की इस महामारी में मुसलमानों की भीड़ ने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद में पुलिस टीम पर, रामपुर जनपद में उप जिलाधिकारी पर हमला किया. इंदौर और जयपुर में डाक्टरों पर मुसलमानों ने हमले किये. इंदौर में दो महिला डाक्टर घायल हो गईं. इंदौर के हमले के बाद डॉ. आनंद राय ने एक टीवी चैनल से कहा कि “हम लोगों की ‘मॉब लिंचिंग’ हो सकती थी. अगर ऐसा होता तो करीब 200 से ज्यादा लोग मारे जाते." अब सवाल यह उठता है कि इस कोरोना वायरस के संकट में मुसलमान जिस तरह पुलिस और डाक्टर पर हमला कर रहे हैं. जिनका स्वागत ताली और थाली बजा कर किया जाना चाहिए था. उन पर जानलेवा हमला क्या मॉब लिंचिंग करने का प्रयास नहीं है ? या 'मॉब लिंचिंग' का मुद्दा सिर्फ मुसलमान के मारे जाने पर उठता है.

मध्य प्रदेश के इंदौर के टाटपट्टी बाखल में कोरोना वायरस के संक्रमण की जांच करने गई टीम पर बुधवार को मुसलमानों ने पथराव कर दिया. घटना की सूचना मिलने पर पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को नियंत्रण में लिया. इस स्वास्थ्य विभाग की टीम में शामिल रहे डॉ. आनंद राय ने कहा कि " वहां उनकी टीम के लोगों की मॉब लिंचिंग भी हो सकती थी. जिन लोगों ने हमला किया है, उन्हें शिक्षित किए जाने की जरूरत है ताकि उन लोगों को यह समझ में आए कि 14 दिन के लिए क्वारंटाइन किसलिए किया जा रहा है. इस क्षेत्र में कई दिनों से अफवाह फैलाई जा रही थी कि डाक्टरों की टीम बसों में भरकर ले जायेगी और कहीं सुनसान जगह पर छोड़ आएगी. वहां पर ले जाकर इंजेक्शन भी लगाया जाएगा. इस तरह की अफवाह सोशल मीडिया पर फैलाई गई थी. इसी अफवाह की वजह से यह घटना हुई. हमला करने वाले लोग शिक्षित नहीं हैं. इन लोगों को जागरूक किये जाने की आवश्यकता है. इन्हें जागरूक करने के लिए प्रशासन और जानकार लोगों को आगे आना चाहिए. करीब तीन दिन पहले रानीपुरा इलाके में कुछ लोगों ने कुल्ला किया था और थूका भी था. इस तरह की घटनाएं हम लोगों को हतोत्साहित करती हैं.”
उल्लेखनीय है कि इंदौर में स्वास्थ्य विभाग की टीम बुजुर्ग महिलाओं की जांच करने पहुंची थी. तभी वहां के लोगों ने उनके ऊपर थूकना शुरू कर दिया. देखते ही देखते बुर्का पहने कुछ महिलाओं और मुस्लिम युवकों ने पत्थरबाजी करना शुरू कर दिया. जब स्वास्थ्य विभाग की टीम वहां से जान बचा कर भागी तो वहां भीड़ ने गाली देते हुए डाक्टरों को दौड़ाया. इस हमले में दो महिला डाक्टर घायल हो गईं. इसी प्रकार, 31 मार्च को राजस्थान के जयपुर के रामगंज इलाके में डाक्टरों की टीम कोरोना मरीजों को चिन्हित करने गई . वहां पर भी मुसलमान युवकों ने स्वास्थ्य विभाग की टीम पर हमला कर दिया. स्वास्थ्य विभाग की तरफ से डॉ. अनिल शर्मा ने पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई. पुलिस ने इस मामले में एक आरोपी रिजवान खान को गिरफ्तार किया.
उधर , उत्तर प्रदेश के रामपुर जनपद के टांडा में बुधवार की शाम को एसडीएम गौरव कुमार, तहसीलदार महेंद्र बहादुर सिंह एवं कोतवाली थाने की पुलिस लाक डाउन की स्थिति का जायजा ले रहे थी. जब वो लोग मोहल्ला - मियां वाली मस्जिद के पीछे पहुंचे तब वहां पर कुछ युवक भीड़ लगाए हुए थे. एसडीएम गौरव कुमार ने उन युवकों को अपने-अपने घरों में जाने के लिए कहा तब उन युवकों ने घरों की छत पर पहुंच कर पथराव कर दिया. एसडीएम गौरव कुमार का कहना है कि “इस मामले में एफआईआर दर्ज कराई गई है. पथराव करने वाले युवकों की पहचान कर ली गई है.
सहारनपुर जनपद में पुलिस को सूचना मिली कि बेहट कोतवाली क्षेत्र के गांव जमालपुर में स्थित मस्जिद के बाहर कुछ मुसलमान नमाज पढ़ने के लिए एकत्र हुए हैं. पुलिस ने मौके पर पहुंचकर उन लोगों को यह बताने का प्रयास किया कि कोरोना वायरस की महामारी को देखते हुए लॉक डाउन किया गया है इसलिए मस्जिद में ज्यादा संख्या में एकत्र होकर नमाज न पढ़ें. पुलिस द्वारा नमाज पढ़ने से मना करने पर मुसलमानों ने पुलिस पर हमला कर दिया. इस मामले में पुलिस ने 6 महिलाओं समेत 26 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. सहारनपुर जनपद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक दिनेश कुमार प्रभु ने बताया कि “मस्जिद में नमाज पढ़ने की सूचना पर पुलिस मौके पर गई थी. पुलिस टीम पर हमला किया गया. एफआईआर दर्ज करके आवश्यक कार्रवाई की जा रही है.”

तबरेज के मामले में एक बात बिल्कुल साफ़ थी कि वह चोरी करने का आरोपी था. झारखंड में तबरेज की हत्या का मामला हो या फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गोमांस घर में रखने के विवाद में हुई अख़लाक़ की हत्या का प्रकरण हो. जब मुसलमान किसी आपराधिक मामले में भीड़ का निशाना बनता है. तब मुसलमानों के मामले में सेकुलर लोगों की भीड़ पूरे देश में एक साथ उठ खड़ी होती है. अख़लाक़ और तबरेज की हत्या पर राजनीतिक रोटियां सेकने वाले लोग किसी भी हिन्दू के पक्ष में आवाज नहीं उठाते हैं. विडंबना है कि अगर हिन्दू ‘मॉब लिंचिंग’ का शिकार होता है तो उस घटना को ‘मॉब लिंचिंग’ की श्रेणी में नहीं रखा जाता हैं. हिन्दुओं के मारे जाने पर ये लोग चुप्पी साधे रहते हैं.
"माब लिंचिंग" पर आंदोलित होने वाले लोगों के नेटवर्क पर गौर करें तो तबरेज की हत्या झारखंड में हुई थी. उस हत्या के खिलाफ अहिंसात्मक मार्च पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निकाला गया था और उस शांतिमार्च के दौरान आगरा एवं मेरठ आदि जनपदों में जमकर हिंसा हुई थी. 30 जून 2019 को शान्ति मार्च निकालने वाले मुसलमानों ने इतने बड़े पैमाने पर हिंसा फैलाई थी कि देर रात मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और पुलिस महानिरीक्षक को वहां से हटा दिया गया था. उपद्रव से पहले , मेरठ जनपद के फैज - ए - आम कालेज से कुछ लोग निकल कर सड़क पर एकत्रित हुए थे फिर जुलूस निकालने का प्रयास करने लगे थे. पुलिस ने जुलूस निकालने से मना कर दिया लेकिन वहां पर एकत्र हुए मुसलमानों की भीड़ ने पुलिस से धक्का मुक्की शुरू कर दी. इसके बाद पुलिस ने लाठी चार्ज करके जुलूस निकालने वालों को तितर- बितर किया. इसके अगले दिन मेरठ के मवाना में भी हजारों की संख्या में मुसलमानों ने एक मस्जिद के बाहर जुलूस निकालने की कोशिश की. वहां पर भी पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा था.

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