कोरोना पर चीन ने किया दुनिया से खिलवाड़, China के 'षडयंत्र' का सच

अब हम इस महामारी को फैलाने में चीन की भूमिका को लेकर उठ रहे सवालों की बात करेंगे.

अब हम इस महामारी को फैलाने में चीन की भूमिका को लेकर उठ रहे सवालों की बात करेंगे. नोबल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने अपनी एक मशहूर किताब डेवलपमेंट एज फ्रीडम (Development as Freedom) में लिखा था कि कहीं भी अकाल मूल रूप से भोजन के अभाव की वजह से नहीं पड़ता बल्कि भोजन से संबंधित जानकारियों के अभाव में पड़ता है . इस पृथ्वी पर सबके लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध है अगर आपको ठीक-ठीक पता हो कि भोजन कहां है और भूखे लोग कहां है तो आप अकाल को रोक सकते हैं.

यही बात महामारियों के संदर्भ में भी लागू होती है. महामारियां हमेशा एक नए किस्म के वायरस की वजह से नहीं फैलती, बल्कि उस वायरस से जुड़ी सही और सच्ची जानकारियों के अभाव में फैलती है. कोरोना वायरस के मामले में भी ऐसा ही हुआ और बहुत हद इसका जिम्मेदार चीन है. इसके लिए आपको कोरोना की क्रोनोलॉजी समझनी होगी. इस वायरस का पहला मामला नवंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में सामने आया था. वुहान में एक करोड़ 10 लाख लोग रहते हैं और ये चीन के कई शहरों को आपस में जोड़ता है.

वुहान में शुरुआत के चार मामले दिसंबर महीना खत्म होते होते दर्जनों और फिर सैंकड़ों मामलों में बदल गए. इस दौरान डॉक्टरों को सिर्फ ये पता था कि ये एक वायरल न्यूमोनिया है जो सामान्य दवाओं से ठीक नहीं हो रहा. विशेषज्ञ मानते हैं कि इस दौरान ही ये वायरस वुहान के हजारों लोगों को संक्रमित कर चुका था. इस वायरस से संक्रमित हर एक मरीज आगे दो या तीन लोगों को संक्रमित कर रहा था लेकिन चीन ने 30 दिसंबर तक इस बारे में दुनिया को कोई जानकारी नहीं दी.

31 दिसंबर को चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO को इस बारे में सूचित किया और भरोसा दिलाया है कि चीन इस वायरस को रोकने में सक्षम है. एक अनुमान के मुताबिक 1 जनवरी को 1 लाख 75 हजार से ज्यादा लोग नया साल मनाने वुहान से अपने-अपने गांव और शहरों की तरफ चले गए. ठीक वैसे ही जैसे भारत के लोग अपने गांव और शहरों की तरफ लौट रहे हैं. इस दौरान ये संख्या बढ़ती रही और जनवरी के महीने में यातायात पर प्रतिबंध लगाए जाने से पहले ही करीब 70 लाख लोग वुहान से होकर गुजर चुके थे. इनमें से हजारों की संख्या में यात्री संक्रमित हो चुके थे.

इस दौरान 21 जनवरी को चीन ने मान लिया कि ये वायरस एक से दूसरे व्यक्ति में फैल रहा है. इसके दो दिनों के बाद पूरे वुहान को लॉकडाउन कर दिया गया और कुछ दूसरे शहरों में यातायात को पूरी तरह रोक दिया गया लेकिन इन सबके बावजूद स्थानीय संक्रमण तेजीसे फैल रहा था. पूरे चीन में संक्रमण के मामले सामने आने के बाद भी चीन ने अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध नहीं लगाया.

वुहान से हजारों की संख्या में लोग दुनिया के दूसरे शहरों में पहुंच गए. नया साल मनाने चीन के 15 हजार लोग थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक पहुंच गए. जनवरी के मध्य में चीन से बाहर कोरोना वायरस का पहला मामला बैंकॉक में ही सामने आया था. जनवरी के आखिरी हफ्ते में ही टोक्यो, सियोल, सिंगापुर, हांगकांग और अमेरिका में संक्रमण के मामले सामने आने लगे. विशेषज्ञों के मुताबिक इस दौरान 85 प्रतिशत यात्रियों में संक्रमण की जांच नहीं हो पाई और ये लोग अपने अपने देश लौटकर दूसरों में संक्रमण फैलाते रहे. आखिरकार 31 जनवरी को वुहान से आने और जाने वाली उड़ानों को रोका गया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. कई देशों में ये वायरस तेजीसे फैलने लगा और वो लोग भी संक्रमित होने लगे जिन्होंने कभी वुहान की यात्रा नहीं की थी. इसके बाद इटली, ईरान और दक्षिण कोरिया जैसे देश इस वायरस के नए केंद्र बन गए और आने वाले दिनों में इन देशों ने संक्रमण के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ दिया .

भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित शुरुआती मरीर इटली से आए
भारत में इस वायरस से संक्रमित शुरुआती मरीज चीन से नहीं बल्कि इटली से आए थे. आज की तारीख में ये वायरस पूरी दुनिया में 4 लाख 80 हजार से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर चुका है और 22 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. ये क्रोनोलॉजी देखकर आप समझ गए होंगे कि कैसे ये वायरस चीन से फैलना शुरू हुआ, चीन ने लापरवाही दिखाई, सच छिपाया और आज ये महामारी दुनिया के सैंकड़ों देशों के लिए सबसे बड़ा संकट बन गई है . लेकिन ये इस वायरस पर चीन द्वारा बोले गए झूठ का एक हिस्सा है . आपको इस कहानी का दूसरा हिस्सा भी देखना चाहिए.

जब ये साफ हो गया कि ये वायरस चीन की ही देन है तो फिर चीन ने नए नए बहाने बनाना शुरू कर दिया और चीन की मीडिया और सरकार की तरफ से दुनिया को गुमराह किया जाने लगा. चीन के अधिकारियों ने इसके लिए एक नई थ्योरी गढ़ी. 12 मार्च को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजान ने ट्विटर पर दावा किया कि ये वायरस चीन में अमेरिका से आया था और अमेरिका इस सच को छिपाने की कोशिश कर रहा है. चीन के अधिकारियों ने दावा किया कि अक्टूबर 2019 में वुहान में मिलिट्री वर्ल्ड गेम्स के दौरान अमेरिका की सेना के एथलीट ये वायरस अपने साथ लेकर आए थे.

इतनी ही नहीं, चीन की मीडिया के जरिए भी दुष्प्रचार किया जाने लगा कि ये वायरस चीन से पहले इटली में फैल चुका था लेकिन अब पूरी दुनिया जानती है कि तीन की लापरवाही और जिद की वजह से ही ये वायरस पूरी दुनिया के लिए खतरा बन गया है लेकिन चीन है कि उसे इसे चाइनीज वायरस कहने पर भी एतराज़ है. चीन को स्पेन से फैले स्पेनिश फ्लू दक्षिण कोरिया की हनतान नदी के नाम पर रखे गए हंता वायरस और न्यू डेल्ही सुपरबग जैसी बीमारियों के नाम पर कोई ऐतराज़ नहीं होता. ये चीन का दोहरा रवैया है और चीन की असलियत अब दुनिया के सामने आ चुकी है. चीन अब दूसरे देशों को मदद के ऑफर दे रहा है और खुद को दूसरों की जान बचाने वाला देश साबित करना चाहता है लेकिन चीन का असली चेहरा दुनिया देख चुकी है.

चीन ने लंबे समय तक वायरस का सच छिपाया
सच ये है कि चीन ने इस वायरस का सच लंबे समय तक दुनिया से छिपाकर रखा. कुछ रिपोर्ट्स का दावा है कि जैसे ही चीन के डॉक्टरों को इस नए वायरस का पता लगा वैसे ही..चीन के अधिकारियों ने वायरस के सैंपल की जांच करने वाली लैब को बंद कर दिया और सैंपल को भी नष्ट कर दिया. दावा ये भी है कि चीन में जिन लोगों ने इस वायरस को लेकर खतरे की घंटी बजाई थी. उनमें से 5 लोग या तो गिरफ्तार कर लिए गए या फिर उन्हें गायब कर दिया गया.

वुहान के डॉक्टर Li Wenliang (ली वेनलियांग ) ने सबसे पहले इस वायरस के बारे में खबर दी थी लेकिन चीन की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और बाद में उनकी कोरोना वायरस से ही मौत हो गई. यानी चीन शुरुआत से ही इस वायरस की सच्चाई पर पर्दा डाल रहा था. आपने एक और बात पर गौर किया होगा कि चीन में किसी बड़ी शख्सियत के कोरोना वायरस से पीड़ित होने की खबर नहीं आई . ना तो चीन का कोई बड़ा नेता इससे संक्रमित हुआ, ना कोई बड़ा खिलाड़ी और ना ही कोई फिल्मी सितारा लेकिन पूरी दुनिया में इस वायरस से बड़े बड़े नेता, राजा महाराजा, खिलाड़ी और फिल्मी सितारे संक्रमित हो चुके हैं. कुल मिलाकर साफ है कि चीन ने इस वायरस का पूरा सच कभी दुनिया के सामने आने ही नहीं दिया.

मार्च की शुरुआत में ही इस वायरस को लेकर पूरी दुनिया संकट में घिर चुकी थी लेकिन 11 मार्च तक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे एक महामारी घोषित नहीं किया. जब इसे महामारी घोषित किया गया, तब तक काफी देर हो चुकी थी. अब कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन के दबाव में काम कर रहा था. कुछ लोग तो इतने नाराज़ है कि वो कह रहे कि WHO ने अपनी आंखों पर चीन के झंडे वाली पट्टी पहन रखी है . ये तस्वीर WHO के डायरेक्टर जनरल की है जिनकी आंखों पर चीन के नाम की पट्टी बंधी है. हालांकि ये एक मीम है लेकिन WHO और चीन की मिलिभगत को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.

WHO, UN और सुरक्षा परिषद की भूमिका पर सवाल
WHO ही नहीं संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद की भूमिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र दुनिया की सबसे ब़ड़ी संस्था है और अगर ये संस्था चाहती तो पूरी दुनिया के इस महामारी के खिलाफ एकजुट कर सकती थी लेकिन अफसोस ऐसा हुआ नहीं. लेकिन ना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ऐसा किया और ना ही यूएन की जनरल असेंबली की तरफ से कोई पहल की गई. इन संस्थाओं में कभी औपचारिक तौर पर कोरोना वायरस को लेकर चर्चा नहीं हुई. आप जानना चाहेंगे ऐसा क्यों नहीं हुआ तो इसके लिए आपको अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को समझना होगा.

यूएन की सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इस महीने चीन के पास है और चीन ने ये बड़े आराम से तय कर लिया कि महामारी पर चर्चा कराए जाने की कोई जरूरत नहीं है. चीन से जब इस बारे में सवाल किया गया तो उसने साफ किया कि इस पर चर्चा की कोई जरूरत नहीं है जो वायरस चीन से पूरी दुनिया में फैला उसे लेकर चीन को चर्चा करनी चाहिए थी लेकिन चीन पूरी दुनिया को ये बता रहा है कि अब उसके घर में तो सब ठीक है..दुनिया के देश अपनी कमियों की वजह से स्थिति नहीं संभाल पा रहे. लेकिन जब 2014 में इबोला वायरस फैला था तो फौरन यूएन की सुरक्षा परिषद परेशान हो गई थी और प्रस्ताव पास करके इबोला को फौरन दुनिया की शांति और सुरक्षा के लिए खतरा घोषित कर दिया गया था. 2 वर्षों में इबोला के सिर्फ 28 हजार मामले सामने आए और 11 हजार मौते हुईं. कोरोना वायरस से करीब 5 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं और 22 हजार लोगों की जान जा चुकी है.

लेकिन इस बार सुरक्षा परिषद को इसकी चिंता नहीं है..क्योंकि अध्यक्ष की कुर्सी पर चीन बैठा है. ये वही चीन है जिसने 5 वर्षों तक मसूद अजहर को अंतर्राष्टीय आतंकवादी घोषित नहीं होने दिया, ये वही चीन है जिसने कश्मीर के लॉकडाउन पर चर्चा कराई, लेकिन अब जब पूरी दुनिया लॉकडाउन में है तो चीन इस पर चर्चा तक नहीं चाहता. अब दुनिया के बड़े बड़े देशों को सोचना होगा कि चीन कब तक UNSC का स्थायी सदस्य होने की धौंस दुनिया पर जमाता रहेगा और अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से बचता रहेगा.

अब यहां चीन की भूमिका पर कुछ सवाल उठते हैं:
पहला सवाल- चीन ने खतरे की घंटी बजाने वालों को सज़ा क्यों दी ?
दूसरा सवाल- चीन ने तीन हफ्तों तक लोगों को वुहान से जाने और आने से क्यों नहीं रोका?
तीसरा सवाल- चीन ने वायरस के टेस्ट सैंपल नष्ट क्यों किए ?
चौथा सवाल- चीन संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे पर बहस क्यों नहीं होने दे रहा?

जब तक चीन इन सवालों का जवाब नहीं देता, उसे इस वायरस पर क्लीन चिट नहीं दी जा सकती.

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