ज्योतिरादित्य सिंधिया ने केवल कांग्रेस पार्टी नहीं छोड़ी, बल्कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार का बोरिया-बिस्तर भी बांध दिया है, कद्दावर नेता के इस्तीफे से सोनिया गांधी-राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता की कलई खुल गई है
जब कांग्रेस पार्टी लगातार नाकाम साबित हो रहे अपने युवराज राहुल गांधी की पुनः ताजपोशी में जुटी थी, तब पार्टी के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस्तीफा देकर आगे होने वाले इस जश्न को फीका कर दिया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछले 18 साल से कांग्रेस पार्टी में थे। 2018 में कांग्रेस की मध्य प्रदेश में सत्ता वापसी में सिंधिया की बहुत बड़ी भूमिका थी, लेकिन न तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया और न ही कोई अहम जिम्मेदारी दी गई। पिछले 15 महीने से पार्टी में उपेक्षित और अपमानित महसूस कर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने केवल कांग्रेस नहीं छोड़ी है, बल्कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार का बोरिया-बिस्तर भी बांध दिया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक 21 विधायकों, जिनमें 6 मंत्री हैं, ने भी इस्तीफा दे दिया है। यह संख्या और बढ़ सकती है। अशोक नगर, शिवपुरी इलाकों में पूरी ज़िला ईकाई के इस्तीफे के साथ मालवा निमार क्षेत्र में कांग्रेस का नामलेवा नहीं बचने वाला है। इस झटके से शायद ही कांग्रेस और गांधी परिवार उभर पाए।
दरअसल, कांग्रेस पार्टी की स्थिति यह है कि वो गांधी परिवार से बाहर न सोचती है और न सोचना चाहती है। लगातार नाकामी के बावजूद कांग्रेस पार्टी में केवल और केवल राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का भविष्य है। उनसे ऊपर कोई नहीं जा सकता। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के रहते कांग्रेस पार्टी ज्योतिरादित्य सिंधिया या दूसरे युवा नेताओं को दरकिनार ही रखने वाली है। ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओं के पास केवल दो ही रास्ते बचते थे या तो वो फुस्स हो चुके गांधी परिवार के अधीनस्थ अपमानित होकर काम करते रहें या डूबती पार्टी छोड़कर नया रास्ता अपना लें।
मध्य प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बहुमत के करीब तक पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका ज्योतिरादित्य सिंधिया की थी, लेकिन गांधी परिवार के सबसे बड़े चाटुकारों में से एक दिग्विजय सिंह ने ऐसा षड़यंत्र रचा कि कुर्सी गांधी परिवार के एक और वफादार कमलनाथ को सौंप दी गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया को खाली हाथ ही रहना पड़ा। इतना ही नहीं, उनके करीबी विधायकों की घोर उपेक्षा होती रही। ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछले 15 महीने से जहर का कड़वा घूंट पीते चले आ रहे थे और दिग्विजय सिंह की चालबाजियां जारी थीं। दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और एक तरह से राहुल गांधी के राजनीतिक गुरू दिग्विजय सिंह ने आगामी राज्यसभा चुनावों को लेकर भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह में कांटे बोने शुरू कर दिए थे। सदैव गांधी परिवार को खुश रखने की कोशिश में जुटे रहने वाले दिग्विजय सिंह की कोशिश थी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया किसी भी तरह मध्य प्रदेश से राज्यसभा न पहुंचें।
इतना ही नहीं, कांग्रेस की लंबे समय तक अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी को भी अपने पुत्र राहुल गांधी के अलावा कोई नजर नहीं आता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रसिद्ध होना लगातार सोनिया गांधी को खटक रहा था। यही कारण है कि 9 मार्च को त्याग-पत्र सौंपने के बावजूद सोनिया गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी से निकालकर अपनी भड़ास निकाली है, जबकि इस बात की कोई जरूरत नहीं थी। वैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने से सोनिया गांधी ने राहत की सांस भी ली होगी कि उनके पुत्र का एका प्रतिद्वंद्वी स्वयं पार्टी छोड़ गया।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर के राजपरिवार से आते हैं। सिंधिया राजघराना जनसंघ के समय से भाजपा के करीब रहा है। ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया ने साल 1971 में 26 साल की उम्र में अपना पहला चुनाव मध्य प्रदेश की गुना लोकसभा सीट से जनसंघ के टिकट पर ही जीता था। हालांकि, 1980 में वो कांग्रेस में शामिल हो गए थे और गुना से जीते, लेकिन 1996 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बना रही थी। कांग्रेस के काफी मनाने पर वो वापस पार्टी में चले आए थे। माधवराव सिंधिया का कांग्रेस में कद बढ़ता जा रहा था और वो स्वयं गांधी परिवार के लिए चुनौती साबित हो रहे थे, लेकिन 2001 में माधवराव की आकस्मिक मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस की सदस्यता ली और उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया। हालांकि, ज्योतिरादित्य की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया जनसंघ और भाजपा की बड़ी नेता रहीं। वो लोकसभा और राज्यसभा में भाजपा सांसद रहीं। ज्योतिरादित्य की बुआ वसुंधरा राजे और यशोदा राजे, दोनों शुरू से भाजपा में हैं। वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह भी भाजपा सांसद हैं। सिंधिया परिवार से केवल ज्योतिरादित्य अकेले कांग्रेस में थे, जो अब भी सिंधिया राजपरिवार की मूल पार्टी भाजपा में शामिल हो गए हैं।
वैसे कांग्रेस में घुटन महसूस कर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने काफी समय पहले ही कांग्रेस छोड़ने का मन बना लिया था। अनुच्छेद 370 पर मोदी सरकार का समर्थन करके उन्होंने इसके साफ संकेत दिए थे। किसान कर्ज माफी समेत दूसरे मुद्दों को लेकर वो लगातार कमलनाथ सरकार पर हमलावर थे, लेकिन गांधी परिवार की चाशनी में डूबी कांग्रेस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी छोड़कर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की घोर नाकामी को एक बार फिर उजागर कर दिया है, लेकिन कांग्रेस के चाटुकार नेता इससे भी सबक लेने को तैयार नहीं हैं। जिस तरह से वो ज्योतिरादित्य सिंधिया पर व्यक्तिगत और पारिवारिक आरोप लगा रहे हैं, उससे तो साफ हो गया है कि यह सब दिग्विजय सिंह जैसे गांधी परिवार प्रेमियों का किया हुआ है।
अब लगभग लगभग यह साफ है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश से ही राज्यसभा में जाएंगे और संभवतः वो नरेंद्र मोदी कैबिनेट में शामिल हों। ज्योतिरादित्य समर्थक विधायकों के इस्तीफे से कांग्रेस नेतृत्व की कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई है। इसी सप्ताह में वहां सत्ता परिवर्तन हो जाएगा। लगातार 15 साल सत्ता में रही भाजपा पुनः सरकार बनाएगी। बड़ा सवाल यह है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने से ही सोनिया गांधी ने चैन की सांस ली होगी, उन्हें किसी और युवा कांग्रेस नेता से खतरा नहीं है। इस बात की पूरी संभावना है कि कांग्रेस में अपमानित महसूस कर रहे कुछ और युवा कांग्रेसी नेता जल्द गांधी परिवार की अधीनस्थता को अस्वीकार कर दें।
जब कांग्रेस पार्टी लगातार नाकाम साबित हो रहे अपने युवराज राहुल गांधी की पुनः ताजपोशी में जुटी थी, तब पार्टी के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस्तीफा देकर आगे होने वाले इस जश्न को फीका कर दिया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछले 18 साल से कांग्रेस पार्टी में थे। 2018 में कांग्रेस की मध्य प्रदेश में सत्ता वापसी में सिंधिया की बहुत बड़ी भूमिका थी, लेकिन न तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया और न ही कोई अहम जिम्मेदारी दी गई। पिछले 15 महीने से पार्टी में उपेक्षित और अपमानित महसूस कर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने केवल कांग्रेस नहीं छोड़ी है, बल्कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार का बोरिया-बिस्तर भी बांध दिया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक 21 विधायकों, जिनमें 6 मंत्री हैं, ने भी इस्तीफा दे दिया है। यह संख्या और बढ़ सकती है। अशोक नगर, शिवपुरी इलाकों में पूरी ज़िला ईकाई के इस्तीफे के साथ मालवा निमार क्षेत्र में कांग्रेस का नामलेवा नहीं बचने वाला है। इस झटके से शायद ही कांग्रेस और गांधी परिवार उभर पाए।
दरअसल, कांग्रेस पार्टी की स्थिति यह है कि वो गांधी परिवार से बाहर न सोचती है और न सोचना चाहती है। लगातार नाकामी के बावजूद कांग्रेस पार्टी में केवल और केवल राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का भविष्य है। उनसे ऊपर कोई नहीं जा सकता। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के रहते कांग्रेस पार्टी ज्योतिरादित्य सिंधिया या दूसरे युवा नेताओं को दरकिनार ही रखने वाली है। ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओं के पास केवल दो ही रास्ते बचते थे या तो वो फुस्स हो चुके गांधी परिवार के अधीनस्थ अपमानित होकर काम करते रहें या डूबती पार्टी छोड़कर नया रास्ता अपना लें।
मध्य प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बहुमत के करीब तक पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका ज्योतिरादित्य सिंधिया की थी, लेकिन गांधी परिवार के सबसे बड़े चाटुकारों में से एक दिग्विजय सिंह ने ऐसा षड़यंत्र रचा कि कुर्सी गांधी परिवार के एक और वफादार कमलनाथ को सौंप दी गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया को खाली हाथ ही रहना पड़ा। इतना ही नहीं, उनके करीबी विधायकों की घोर उपेक्षा होती रही। ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछले 15 महीने से जहर का कड़वा घूंट पीते चले आ रहे थे और दिग्विजय सिंह की चालबाजियां जारी थीं। दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और एक तरह से राहुल गांधी के राजनीतिक गुरू दिग्विजय सिंह ने आगामी राज्यसभा चुनावों को लेकर भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह में कांटे बोने शुरू कर दिए थे। सदैव गांधी परिवार को खुश रखने की कोशिश में जुटे रहने वाले दिग्विजय सिंह की कोशिश थी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया किसी भी तरह मध्य प्रदेश से राज्यसभा न पहुंचें।
इतना ही नहीं, कांग्रेस की लंबे समय तक अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी को भी अपने पुत्र राहुल गांधी के अलावा कोई नजर नहीं आता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रसिद्ध होना लगातार सोनिया गांधी को खटक रहा था। यही कारण है कि 9 मार्च को त्याग-पत्र सौंपने के बावजूद सोनिया गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी से निकालकर अपनी भड़ास निकाली है, जबकि इस बात की कोई जरूरत नहीं थी। वैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने से सोनिया गांधी ने राहत की सांस भी ली होगी कि उनके पुत्र का एका प्रतिद्वंद्वी स्वयं पार्टी छोड़ गया।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर के राजपरिवार से आते हैं। सिंधिया राजघराना जनसंघ के समय से भाजपा के करीब रहा है। ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया ने साल 1971 में 26 साल की उम्र में अपना पहला चुनाव मध्य प्रदेश की गुना लोकसभा सीट से जनसंघ के टिकट पर ही जीता था। हालांकि, 1980 में वो कांग्रेस में शामिल हो गए थे और गुना से जीते, लेकिन 1996 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बना रही थी। कांग्रेस के काफी मनाने पर वो वापस पार्टी में चले आए थे। माधवराव सिंधिया का कांग्रेस में कद बढ़ता जा रहा था और वो स्वयं गांधी परिवार के लिए चुनौती साबित हो रहे थे, लेकिन 2001 में माधवराव की आकस्मिक मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस की सदस्यता ली और उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया। हालांकि, ज्योतिरादित्य की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया जनसंघ और भाजपा की बड़ी नेता रहीं। वो लोकसभा और राज्यसभा में भाजपा सांसद रहीं। ज्योतिरादित्य की बुआ वसुंधरा राजे और यशोदा राजे, दोनों शुरू से भाजपा में हैं। वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह भी भाजपा सांसद हैं। सिंधिया परिवार से केवल ज्योतिरादित्य अकेले कांग्रेस में थे, जो अब भी सिंधिया राजपरिवार की मूल पार्टी भाजपा में शामिल हो गए हैं।
वैसे कांग्रेस में घुटन महसूस कर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने काफी समय पहले ही कांग्रेस छोड़ने का मन बना लिया था। अनुच्छेद 370 पर मोदी सरकार का समर्थन करके उन्होंने इसके साफ संकेत दिए थे। किसान कर्ज माफी समेत दूसरे मुद्दों को लेकर वो लगातार कमलनाथ सरकार पर हमलावर थे, लेकिन गांधी परिवार की चाशनी में डूबी कांग्रेस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी छोड़कर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की घोर नाकामी को एक बार फिर उजागर कर दिया है, लेकिन कांग्रेस के चाटुकार नेता इससे भी सबक लेने को तैयार नहीं हैं। जिस तरह से वो ज्योतिरादित्य सिंधिया पर व्यक्तिगत और पारिवारिक आरोप लगा रहे हैं, उससे तो साफ हो गया है कि यह सब दिग्विजय सिंह जैसे गांधी परिवार प्रेमियों का किया हुआ है।
अब लगभग लगभग यह साफ है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश से ही राज्यसभा में जाएंगे और संभवतः वो नरेंद्र मोदी कैबिनेट में शामिल हों। ज्योतिरादित्य समर्थक विधायकों के इस्तीफे से कांग्रेस नेतृत्व की कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई है। इसी सप्ताह में वहां सत्ता परिवर्तन हो जाएगा। लगातार 15 साल सत्ता में रही भाजपा पुनः सरकार बनाएगी। बड़ा सवाल यह है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने से ही सोनिया गांधी ने चैन की सांस ली होगी, उन्हें किसी और युवा कांग्रेस नेता से खतरा नहीं है। इस बात की पूरी संभावना है कि कांग्रेस में अपमानित महसूस कर रहे कुछ और युवा कांग्रेसी नेता जल्द गांधी परिवार की अधीनस्थता को अस्वीकार कर दें।
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