दिल्ली विधानसभा चुनावों के नतीजे अब सामने आ चुके हैं और भाजपा को एक बार फिर राज्य में 10 से कम सीटें मिलती दिखाई दे रही है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी का वोटशेयर 53 प्रतिशत से ज़्यादा है जबकि भाजपा को लगभग 39 प्रतिशत वोटशेयर मिला है। वहीं 2015 की तरह ही शून्य सीटें लानी वाली कांग्रेस को मात्र 4 प्रतिशत वोटर्स ने ही अपनी पसंद बनाया। कांग्रेस को इन चुनावों में दोहरा झटका लगा। जहां एक तरफ पार्टी कों एक भी सीट नहीं मिली, तो वहीं पार्टी का वोटशेयर भी आधा रह गया। वर्ष 2015 में कांग्रेस कों लगभग 10 प्रतिशत वोटशेयर मिला था, जो अब घटकर 4 प्रतिशत रह गया। जिस Congress पार्टी ने दिल्ली पर लगभग 20 सालों तक राज किया हो और जहां से शीला दीक्षित जैसे कद्दावर नेता निकले हों, वहां पार्टी का वोट शेयर मात्र 4 प्रतिशत रहना हैरानी की बात है। जिस तरह कांग्रेस ने इन चुनावों में बेजान प्रचार किया, उससे यह शक भी होता है कि कहीं भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का अघोषित गठबंधन तो नहीं था?
वर्ष 2015 में जब आम आदमी पार्टी की जोरदार हवा में भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार कहीं भी ठहर नहीं पाये थे, तो भी कांग्रेस पार्टी का वोटशेयर 10 प्रतिशत था। ये ऐसे वोटर्स थे, जो Congress पार्टी कों शुरू से ही वोट देते आए हैं और पार्टी के लॉयल वोटर्स माने जाते हैं। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के इतने प्रतिशत लॉयल वोटर्स होना कोई हैरानी की बात भी नहीं है।
हालांकि, ऐसा लगता है मानो इन चुनावों में तो कांग्रेस के लॉयल वोटर्स ने भी आम आदमी पार्टी को वोट दिया और ऐसा सोची समझी रणनीति के तहत किया गया। दिल्ली की कई सीटों पर आम आदमी पार्टी और भाजपा के उम्मीदवारों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली। सोचिए अगर यह चुनाव त्रिकोणीय होता, तो यहां भाजपा भारी बहुमत से चुनाव जीत सकती थी। लेकिन दिल्ली में भाजपा के विरोध में पड़ने वाला वोट बंटा नहीं और वह सारा मतदान आम आदमी पार्टी के पक्ष में हुआ।
जिस तरह इन चुनावों में Congress पार्टी ने चुनाव जीतने का कोई जज्बा ही नहीं दिखाया, उससे इस बात की आशंका और ज़्यादा बढ़ जाती है। कांग्रेस पार्टी ने जनवरी के अंत तक तो अपना चुनावी प्रचार भी शुरू नहीं किया था, उसके बाद से ही ये सवाल उठाए जा रहे थे कि क्या कांग्रेस जानबूझकर प्रचार में दम नहीं झोंक रही थी ताकि आम आदमी पार्टी कों आसानी से जिताया जा सके और भाजपा को हराया जा सके। हालांकि, तब कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा था “ऐसा गलत है, एक फरवरी से लेकर चुनाव प्रचार की सीमा खत्म होने तक कांग्रेस पार्टी के उच्च नेता से लेकर पार्टी कार्यकर्ता तक सभी अपने चुनावी वादों का भरपूर प्रचार करेंगे”।
राहुल गांधी और मौजूदा Congress अध्यक्ष सोनिया गांधी फरवरी की शुरुआत तक दिल्ली से नदारद दिखे थे। इसपर दिल्ली में ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के प्रभारी पीसी चाको ने बहुत ही बेतुका बयान दिया। उन्होंने कहा “हमें अपने सभी बड़े नेताओं कों आखिरी चरण के चुनाव प्रचार के लिए बचाकर रखा है”। उसके बाद 1 फरवरी से लेकर 6 फरवरी तक दिल्लीवासियों को राहुल गांधी की कुछ रैली ज़रूर देखने को मिली, लेकिन उनका भी कोई फायदा देखने को नहीं मिला। exit polls से लेकर चुनावों के नतीजों तक, कांग्रेस 1 भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो पाई, या कहिए कांग्रेस ने चुनाव जीतने की कोशिश नहीं की। कांग्रेस ने तो आम आदमी पार्टी को जिताने के लिए इतनी शिद्दत से मेहनत की थी, कि Congress ने चुनावों के एक दिन बाद ही केजरीवाल को विजेता घोषित कर दिया।
वोटिंग खत्म होने के अगले दिन ही कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने रविवार को कहा कि उनकी पार्टी ने शनिवार को हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में कभी भी अच्छे प्रदर्शन करने की उम्मीद नहीं की। दूसरी ओर उन्होंने बीजेपी पर भी निशाना साधा। अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि “दिल्ली विधानसभा चुनाव हमने अपनी पूरी ताकत से लड़ा। इस चुनाव में बीजेपी ने सभी सांप्रदायिक एजेंडों को आगे रखा और अरविंद केजरीवाल जी ने विकास एजेंडे को आगे बढ़ाया। अगर केजरीवाल जीत जाते हैं, तो यह विकास के एजेंडे की जीत होगी”। अब इसे गठबंधन नहीं कहा जाएगा, तो क्या कहेंगे भला? अब यह स्वीकार करने में किसी को कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का चुनावों से पहले ही अघोषित गठबंधन हो चुका था, और दोनों ही पार्टियों का एकमात्र मकसद भाजपा को हराना था।
वर्ष 2015 में जब आम आदमी पार्टी की जोरदार हवा में भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार कहीं भी ठहर नहीं पाये थे, तो भी कांग्रेस पार्टी का वोटशेयर 10 प्रतिशत था। ये ऐसे वोटर्स थे, जो Congress पार्टी कों शुरू से ही वोट देते आए हैं और पार्टी के लॉयल वोटर्स माने जाते हैं। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के इतने प्रतिशत लॉयल वोटर्स होना कोई हैरानी की बात भी नहीं है।
हालांकि, ऐसा लगता है मानो इन चुनावों में तो कांग्रेस के लॉयल वोटर्स ने भी आम आदमी पार्टी को वोट दिया और ऐसा सोची समझी रणनीति के तहत किया गया। दिल्ली की कई सीटों पर आम आदमी पार्टी और भाजपा के उम्मीदवारों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली। सोचिए अगर यह चुनाव त्रिकोणीय होता, तो यहां भाजपा भारी बहुमत से चुनाव जीत सकती थी। लेकिन दिल्ली में भाजपा के विरोध में पड़ने वाला वोट बंटा नहीं और वह सारा मतदान आम आदमी पार्टी के पक्ष में हुआ।
जिस तरह इन चुनावों में Congress पार्टी ने चुनाव जीतने का कोई जज्बा ही नहीं दिखाया, उससे इस बात की आशंका और ज़्यादा बढ़ जाती है। कांग्रेस पार्टी ने जनवरी के अंत तक तो अपना चुनावी प्रचार भी शुरू नहीं किया था, उसके बाद से ही ये सवाल उठाए जा रहे थे कि क्या कांग्रेस जानबूझकर प्रचार में दम नहीं झोंक रही थी ताकि आम आदमी पार्टी कों आसानी से जिताया जा सके और भाजपा को हराया जा सके। हालांकि, तब कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा था “ऐसा गलत है, एक फरवरी से लेकर चुनाव प्रचार की सीमा खत्म होने तक कांग्रेस पार्टी के उच्च नेता से लेकर पार्टी कार्यकर्ता तक सभी अपने चुनावी वादों का भरपूर प्रचार करेंगे”।
राहुल गांधी और मौजूदा Congress अध्यक्ष सोनिया गांधी फरवरी की शुरुआत तक दिल्ली से नदारद दिखे थे। इसपर दिल्ली में ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के प्रभारी पीसी चाको ने बहुत ही बेतुका बयान दिया। उन्होंने कहा “हमें अपने सभी बड़े नेताओं कों आखिरी चरण के चुनाव प्रचार के लिए बचाकर रखा है”। उसके बाद 1 फरवरी से लेकर 6 फरवरी तक दिल्लीवासियों को राहुल गांधी की कुछ रैली ज़रूर देखने को मिली, लेकिन उनका भी कोई फायदा देखने को नहीं मिला। exit polls से लेकर चुनावों के नतीजों तक, कांग्रेस 1 भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो पाई, या कहिए कांग्रेस ने चुनाव जीतने की कोशिश नहीं की। कांग्रेस ने तो आम आदमी पार्टी को जिताने के लिए इतनी शिद्दत से मेहनत की थी, कि Congress ने चुनावों के एक दिन बाद ही केजरीवाल को विजेता घोषित कर दिया।
वोटिंग खत्म होने के अगले दिन ही कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने रविवार को कहा कि उनकी पार्टी ने शनिवार को हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में कभी भी अच्छे प्रदर्शन करने की उम्मीद नहीं की। दूसरी ओर उन्होंने बीजेपी पर भी निशाना साधा। अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि “दिल्ली विधानसभा चुनाव हमने अपनी पूरी ताकत से लड़ा। इस चुनाव में बीजेपी ने सभी सांप्रदायिक एजेंडों को आगे रखा और अरविंद केजरीवाल जी ने विकास एजेंडे को आगे बढ़ाया। अगर केजरीवाल जीत जाते हैं, तो यह विकास के एजेंडे की जीत होगी”। अब इसे गठबंधन नहीं कहा जाएगा, तो क्या कहेंगे भला? अब यह स्वीकार करने में किसी को कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का चुनावों से पहले ही अघोषित गठबंधन हो चुका था, और दोनों ही पार्टियों का एकमात्र मकसद भाजपा को हराना था।
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