बनारसी पान… बनारसी साड़ी.. बनारस के घाट … बनारस के मंदिर… बनारस की गलियाँ… बनारस के साधु … बनारस के साँड़ .. बनारस की मीठी बोली … क्या- क्या प्रसिद्ध नहीं है बनारस का
पर क्या कोई जानता भी है बनारस को ???
गंगा किनारे बसी भगवान शंकर की प्रिय नगरी… पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस काशी नगर की स्थापना स्वयं भगवान शंकर ने 5000 साल पहले की थी। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक है। ऋग्वेद, अथर्ववेद, शतपथ, रामायण, महाभारत आदि हिंदू ग्रंथो में भी इस नगर का उल्लेख है। स्कन्द पुराण के काशी खंड में इस नगर की महिमा 15,000 श्लोकों में कही गयी है। भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी इस काशी नगरी को अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है।
यहाँ मृत्यु सौभाग्य से ही प्राप्त होती है। हिंदू तथा जैन धर्म में इसे सात पवित्र नगरों (सप्तपुरी) में से सबसे पवित्रतम नगरी कहा गया है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रमुख यहाँ वाराणसी में स्थापित है। प्रजापति दक्ष के द्वारा शिव की उपेक्षा किए जाने पर बनारस के
मणिकर्णिका घाट पर ही माता सती ने अपने शरीर को अग्नि को अर्पित कर दिया था और यहीं उनके कान का गहना भी गिरा था। इस घाट पर अग्नि कभी नहीं बुझती …
दिन रात बिना रुके यहाँ दाह-संस्कार होता रहता है। यहाँ के हरीशचंद्र घाट पर ही राजा हरीशचंद्र ने डोम का काम करते हुए अपनी पत्नी से पुत्र के अंतिम-संस्कार के लिए कर लिया था।
यहाँ जीवन और मृत्यु का अजीब मेल देखा जा सकता है…. जहाँ एक तरफ़ दशाश्वमेध घाट पर मंत्रोच्चारण और आरती के साथ जीवन का उत्सव मनाया जा रहा होता है वही साथ में दूसरे घाट पर जीवन को अंत होते हुए भी देखा जा सकता है।
भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश यहाँ सारनाथ में ही दिया था। 1507 में गुरु नानक देव शिव रात्रि के अवसर पर बनारस आए और उनकी इस यात्रा का सिख धर्म की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान था।
यहाँ बनारस में गुरु नानक जी ने पंडित चतुरदास को रामकली मोहल्ला १ दक्ख़िनि ओंकार पहली बार सुनाई थी। गोस्वामी तुलसीदास जी ने बनारस के तुलसी घाट पर ही बैठ कर रामचरितमानस की रचना की थी। आज भी उनकी खड़ाऊँ वहाँ रखी है ।
महारानी लक्ष्मीबाई, जो झाँसी की रानी के रूप में जानी जाती हैं, वो बनारस की ही बेटी हैं… उनकी रगों में बहने वाला वीर रक्त बनारस का ही है।
संत कबीर, संत रविदास, वल्लभाचार्य, स्वामी रामानन्द,धर्मसम्राट स्वामी श्री करपात्री महराज , त्रैलँग स्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारत रत्न पंडित रविशंकर, पंडित हरी प्रसाद चौरसिया, भारत रत्न + पद्मविभूषण उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान, पंडित मदन मोहन मालवीय (BHU के संस्थापक), लाल बहादुर शास्त्री, भारतेंदु हरीशचंद्र, देवकी नंदन खत्री, पद्मश्री सितारा देवी, पद्मविभूशन बिरजु महाराज, पद्मविभूषण किशन महाराज, पद्मभूषण चुन्नुलाल मिश्रा, पद्मभूषण गिरिजा देवी, पद्मश्री सिद्धेश्वरी देवी, पद्मविभूषण उदय शंकर, भारत रत्न भगवान दास एवं लहरी महासया बनारस के अमूल्य रत्नों में से कुछ हैं।
बनारस के राजा- काशी नरेश … इन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है।
ज्ञान नगरी, मंदिरो की नगरी, दीपों का शहर, घाटों का शहर…. चाहे किसी भी नाम से इस शहर को बुलाओ …
इसकी हर बात अनोखी है… इसकी हर गली में एक कहानी है … इसकी हवा में एक कहानी है …. गंगा के बहते पानी में भी कहानी है …
जो बनारस की गलियों में एक बार आ जाता है , बनारस उस के अंदर बस जाता है… इसे ख़ुद से अलग करना मुश्किल ही नहीं… नामुमकिन है …!!!
हर हर महादेव
गंगा किनारे बसी भगवान शंकर की प्रिय नगरी… पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस काशी नगर की स्थापना स्वयं भगवान शंकर ने 5000 साल पहले की थी। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक है। ऋग्वेद, अथर्ववेद, शतपथ, रामायण, महाभारत आदि हिंदू ग्रंथो में भी इस नगर का उल्लेख है। स्कन्द पुराण के काशी खंड में इस नगर की महिमा 15,000 श्लोकों में कही गयी है। भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी इस काशी नगरी को अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है।
यहाँ मृत्यु सौभाग्य से ही प्राप्त होती है। हिंदू तथा जैन धर्म में इसे सात पवित्र नगरों (सप्तपुरी) में से सबसे पवित्रतम नगरी कहा गया है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रमुख यहाँ वाराणसी में स्थापित है। प्रजापति दक्ष के द्वारा शिव की उपेक्षा किए जाने पर बनारस के
मणिकर्णिका घाट पर ही माता सती ने अपने शरीर को अग्नि को अर्पित कर दिया था और यहीं उनके कान का गहना भी गिरा था। इस घाट पर अग्नि कभी नहीं बुझती …
दिन रात बिना रुके यहाँ दाह-संस्कार होता रहता है। यहाँ के हरीशचंद्र घाट पर ही राजा हरीशचंद्र ने डोम का काम करते हुए अपनी पत्नी से पुत्र के अंतिम-संस्कार के लिए कर लिया था।
यहाँ जीवन और मृत्यु का अजीब मेल देखा जा सकता है…. जहाँ एक तरफ़ दशाश्वमेध घाट पर मंत्रोच्चारण और आरती के साथ जीवन का उत्सव मनाया जा रहा होता है वही साथ में दूसरे घाट पर जीवन को अंत होते हुए भी देखा जा सकता है।
भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश यहाँ सारनाथ में ही दिया था। 1507 में गुरु नानक देव शिव रात्रि के अवसर पर बनारस आए और उनकी इस यात्रा का सिख धर्म की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान था।
यहाँ बनारस में गुरु नानक जी ने पंडित चतुरदास को रामकली मोहल्ला १ दक्ख़िनि ओंकार पहली बार सुनाई थी। गोस्वामी तुलसीदास जी ने बनारस के तुलसी घाट पर ही बैठ कर रामचरितमानस की रचना की थी। आज भी उनकी खड़ाऊँ वहाँ रखी है ।
महारानी लक्ष्मीबाई, जो झाँसी की रानी के रूप में जानी जाती हैं, वो बनारस की ही बेटी हैं… उनकी रगों में बहने वाला वीर रक्त बनारस का ही है।
संत कबीर, संत रविदास, वल्लभाचार्य, स्वामी रामानन्द,धर्मसम्राट स्वामी श्री करपात्री महराज , त्रैलँग स्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारत रत्न पंडित रविशंकर, पंडित हरी प्रसाद चौरसिया, भारत रत्न + पद्मविभूषण उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान, पंडित मदन मोहन मालवीय (BHU के संस्थापक), लाल बहादुर शास्त्री, भारतेंदु हरीशचंद्र, देवकी नंदन खत्री, पद्मश्री सितारा देवी, पद्मविभूशन बिरजु महाराज, पद्मविभूषण किशन महाराज, पद्मभूषण चुन्नुलाल मिश्रा, पद्मभूषण गिरिजा देवी, पद्मश्री सिद्धेश्वरी देवी, पद्मविभूषण उदय शंकर, भारत रत्न भगवान दास एवं लहरी महासया बनारस के अमूल्य रत्नों में से कुछ हैं।
बनारस के राजा- काशी नरेश … इन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है।
ज्ञान नगरी, मंदिरो की नगरी, दीपों का शहर, घाटों का शहर…. चाहे किसी भी नाम से इस शहर को बुलाओ …
इसकी हर बात अनोखी है… इसकी हर गली में एक कहानी है … इसकी हवा में एक कहानी है …. गंगा के बहते पानी में भी कहानी है …
जो बनारस की गलियों में एक बार आ जाता है , बनारस उस के अंदर बस जाता है… इसे ख़ुद से अलग करना मुश्किल ही नहीं… नामुमकिन है …!!!
हर हर महादेव
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