दिल्ली में काम की नहीं, बल्कि मुस्लिम तुष्टिकरण की जीत हुई !


दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद ये लगातार दावा किया जा रहा है कि चुनाव में काम की जीत हुई है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर कांग्रेस के नेता तक यही राग अलाप रहे हैं, लेकिन हकीकत इससे अलग है। इस बात को एक उदाहरण के जरिए समझा जा सकता है।

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया को पटपड़गंज से 69,974 वोट मिले, जबकि भाजपा के उम्मीदवार रविंदर सिंह नेगी को 66,703 वोट मिले यानि जीत का अंतर सिर्फ 3,271 वोटों का रहा। काउटिंग के दौरान मनीष सिसोदिया 10-11 राउंड तक पीछे रहे और मीडिया में ये कयास लगने लगे कि मनीष सिसोदिया चुनाव हार भी सकते हैं लेकिन अंत में वो किसी तरह महज 32,00 वोटों से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे।

अगर दूसरी तरफ हम ओखला से आम आदमी पार्टी के उम्मीदार अमानतुल्लाह खान की बात करें तो चुनाव में उन्हें 1,30,131 वोट मिले जबकि वहां से चुनाव लड़ रहे भाजपा के उम्मीदवार ब्रह्म सिंह को चुनाव में 58,499 वोट मिले यानि जीत का अंतर 71, 632 का रहा है।

ओखला से अमानतल्लाह खान ने 71, 632 से जबकि मनीष सिसोदिया ने महज 3,271 वोटों से जीत दर्ज की। अगर काम पर वोटिंग होती तो निश्चित तौर से मनीष सिसोदिया की जीत का अंतर ज्यादा होता लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

सोशल मीडिया पर सवाल पूछे जा रहे हैं कि अगर दिल्ली में काम की जीत हुई तो उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को इतने कम वोट क्यों मिले और जीत का अंतर कम क्यों रहा।

अरविंद केजरीवाल ने चुनाव में शिक्षा क्रांति को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया। डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया के पास शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी थी और आम आदमी पार्टी द्वारा दावा किया गया है कि पिछले पांच सालों के दौरान दिल्ली में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए जो काम हुए वो पिछले 70 सालों में नहीं हुए।

पूरे चुनाव प्रचार के दौरान दिल्ली में शिक्षा क्रांति को प्रचारित किया गया लेकिन हकीकत यह है कि 2015 विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने 500 नये स्कूल और 20 नये कॉलेज के निर्माण की बात कही थी लेकिन पिछले पांच सालों में एक भी न तो स्कूल बना और न ही कॉलेज।

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