कांग्रेस के नेता दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के प्यार में इस कदर पागल है कि तीन दिन पहले ही वैलेंटाइन डे मना लिया। दरअसल कांग्रेसी केजरीवाल को अपने वैलेंटाइन के रूप में देख रहे हैं, क्योंकि केजरीवाल ने उन्हें खुश होने का मौका जो दे दिया है। उन्हें अपनी हार से ज्यादा बीजेपी की हार में खुशी नजर आ रही है। हालांकि दिल्ली विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के 67 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
कांग्रेस को मिले सिर्फ 4.25 प्रतिशत वोट
2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने गिरावट का मानो कीर्तिमान बना दिया। चुनाव आयोग से मिले अंतिम आंकड़ों के मुताबिक कांग्रेस को अब तक सिर्फ 4.25 प्रतिशत वोट मिले हैं। यानी उसके वोट शेयर में 2015 के मुकाबले 5 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट है। 70 में से किसी भी सीट पर कांग्रेस का कोई उम्मीदवार दूसरे स्थान पर नहीं आ सका। यह देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए बहुत शर्मनाक स्थिति है जो कुछ साल पहले ही शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार 15 साल शासन कर चुकी है।
कांग्रेस के 67 उम्मीदवारों की जमानत जब्त
कांग्रेस के सिर्फ तीन उम्मीदवार ही अपनी जमानत बचाने में कामयाब रहे। जमानत बचाने वालों में कस्तूराब नगर से अभिषेक दत्त (19.32%), गांधी नगर से अरविंदर सिंह लवली (19.47%) और बादली से देवेंद्र यादव (20.07%) शामिल है।
52 उम्मीदवारों को 5 प्रतिशत से कम मत मिले
दिल्ली कैंट, जंगपूरा और सीलमपुर के कांग्रेस उम्मीदवारों को 10 से 16 प्रतिशत के बीच मत मिले हैं। जबकि 8 उम्मीदवारों को 5 से 10 प्रतिशत के बीच मत मिले। इसके अलावा कांग्रेस के सबसे अधिक 52 उम्मीदवारों को पांच प्रतिशत से भी कम मतों से संतोष करना पड़ा है। इस तरह कुल 67 उम्मीदवार जमानत बचाने के लिए 16 प्रतिशत मत भी हासिल नहीं कर सके।
गठबंधन से भी नहीं मिली संजीवनी
15 वर्षों तक दिल्ली पर शासन करने वाली कांग्रेस भी पहली बार गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरी थी। समझौते के तहत राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को बुराड़ी, किराड़ी, पालम और उत्तम नगर सीट मिली थी। इन सीटों पर बिहार के मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं। लेकिन जनता ने कांग्रेस के इस गठबंधन को भी नाकार दिया।
कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील
विधानसभा चुनाव के इस नतीजे ने दिल्ली में कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोक दी है, क्योंकि तीसरी बार जीत ने अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में पूरी तरह स्थापित कर दिया है। हालांकि कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी संभव है। लेकिन मौजूदा चुनाव नतीजों से लगता है कि जब तक दिल्ली में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी रहेगी, कांग्रेस का फिर से उत्थान असंभव लगता है।
कांग्रेस ने AAP के सामने किया आत्मसमर्पण
बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से अंदरूनी साठगांठ की थी। वह आम आदमी पार्टी की जीत को अपनी जीत मान चुकी थी, क्योंकि वह किसी भी कीमत पर बीजेपी को हारते हुए देखना चाहती थी। इसकी पुष्टि कांग्रेस उम्मीदवारों के मिले मतों से होती है। इसके अलावा दिल्ली विधानसभा चुनाव-2020 को लेकर नामांकन प्रक्रिया खत्म होने के बाद कांग्रेस पार्टी ने 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की। लेकिन किसी स्टार प्रचारक ने कांग्रेस के चुनाव अभियान को पूरी गंभीरता से नहीं लिया। कांग्रेस के प्रचारकों में उत्साह दिखाई नहीं दे रहा था। मतदान के तीन दिन पहले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कुछ रैलियां कीं, जो बस दिखावे की थी। स्पष्ट रूप से कहा जाए तो कांग्रेस ने मतदान से पहले ही पूरी तरह से आम आदमी पार्टी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
2015 में भी नहीं खुला था खाता
पांच साल पहले फरवरी 2015 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए। ‘पांच साल केजरीवाल’ की झाड़ू चली और कांग्रेस पूरी तरह साफ हो गई। ऐसा पहली बार था जब राष्ट्रीय राजधानी में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल सका। दिल्ली में सिर्फ 9.8 प्रतिशत मतदाताओं ने हाथ का साथ दिया और पार्टी का वोट शेयर हैरतअंगेज रूप से 15 प्रतिशत तक गिर गया। 2013 में कांग्रेस को 19 लाख से ज्यादा वोट मिले थे लेकिन इस चुनाव में 8.4 लाख मतदाताओं ने ही हाथ का बटन दबाया। हालांकि आप की प्रचंड लहर के बावजूद बीजेपी अपना वोट शेयर बचाने में तकरीबन कामयाब रही थी। बीजेपी सिर्फ 1 प्रतिशत नुकसान के साथ 32.1 प्रतिशत वोट हासिल किए।
कांग्रेस की कीमत पर AAP का उभार
2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 24.55 प्रतिशत वोट शेयर (19.32 लाख मत) के साथ 8 सीटें जीती थीं। यह आम आदमी पार्टी के उभार का साल था और इसकी कीमत कांग्रेस ने चुकाई। जहां शीला दीक्षित नई दिल्ली सीट पर खुद केजरीवाल से चुनाव हारीं, वहीं आम आदमी पार्टी ने जोरदार आगाज के साथ 29.49 प्रतिशत वोट शेयर और 29 सीटें जीत लीं। बीजेपी 33.07 प्रतिशत वोट शेयर (26.04 लाख मत) और 31 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई लेकिन यह ज्यादा दिन नहीं चल सकी।
कांग्रेस को मिले सिर्फ 4.25 प्रतिशत वोट
2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने गिरावट का मानो कीर्तिमान बना दिया। चुनाव आयोग से मिले अंतिम आंकड़ों के मुताबिक कांग्रेस को अब तक सिर्फ 4.25 प्रतिशत वोट मिले हैं। यानी उसके वोट शेयर में 2015 के मुकाबले 5 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट है। 70 में से किसी भी सीट पर कांग्रेस का कोई उम्मीदवार दूसरे स्थान पर नहीं आ सका। यह देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए बहुत शर्मनाक स्थिति है जो कुछ साल पहले ही शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार 15 साल शासन कर चुकी है।
कांग्रेस के 67 उम्मीदवारों की जमानत जब्त
कांग्रेस के सिर्फ तीन उम्मीदवार ही अपनी जमानत बचाने में कामयाब रहे। जमानत बचाने वालों में कस्तूराब नगर से अभिषेक दत्त (19.32%), गांधी नगर से अरविंदर सिंह लवली (19.47%) और बादली से देवेंद्र यादव (20.07%) शामिल है।
52 उम्मीदवारों को 5 प्रतिशत से कम मत मिले
दिल्ली कैंट, जंगपूरा और सीलमपुर के कांग्रेस उम्मीदवारों को 10 से 16 प्रतिशत के बीच मत मिले हैं। जबकि 8 उम्मीदवारों को 5 से 10 प्रतिशत के बीच मत मिले। इसके अलावा कांग्रेस के सबसे अधिक 52 उम्मीदवारों को पांच प्रतिशत से भी कम मतों से संतोष करना पड़ा है। इस तरह कुल 67 उम्मीदवार जमानत बचाने के लिए 16 प्रतिशत मत भी हासिल नहीं कर सके।
गठबंधन से भी नहीं मिली संजीवनी
15 वर्षों तक दिल्ली पर शासन करने वाली कांग्रेस भी पहली बार गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरी थी। समझौते के तहत राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को बुराड़ी, किराड़ी, पालम और उत्तम नगर सीट मिली थी। इन सीटों पर बिहार के मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं। लेकिन जनता ने कांग्रेस के इस गठबंधन को भी नाकार दिया।
कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील
विधानसभा चुनाव के इस नतीजे ने दिल्ली में कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोक दी है, क्योंकि तीसरी बार जीत ने अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में पूरी तरह स्थापित कर दिया है। हालांकि कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी संभव है। लेकिन मौजूदा चुनाव नतीजों से लगता है कि जब तक दिल्ली में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी रहेगी, कांग्रेस का फिर से उत्थान असंभव लगता है।
कांग्रेस ने AAP के सामने किया आत्मसमर्पण
बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से अंदरूनी साठगांठ की थी। वह आम आदमी पार्टी की जीत को अपनी जीत मान चुकी थी, क्योंकि वह किसी भी कीमत पर बीजेपी को हारते हुए देखना चाहती थी। इसकी पुष्टि कांग्रेस उम्मीदवारों के मिले मतों से होती है। इसके अलावा दिल्ली विधानसभा चुनाव-2020 को लेकर नामांकन प्रक्रिया खत्म होने के बाद कांग्रेस पार्टी ने 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की। लेकिन किसी स्टार प्रचारक ने कांग्रेस के चुनाव अभियान को पूरी गंभीरता से नहीं लिया। कांग्रेस के प्रचारकों में उत्साह दिखाई नहीं दे रहा था। मतदान के तीन दिन पहले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कुछ रैलियां कीं, जो बस दिखावे की थी। स्पष्ट रूप से कहा जाए तो कांग्रेस ने मतदान से पहले ही पूरी तरह से आम आदमी पार्टी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
2015 में भी नहीं खुला था खाता
पांच साल पहले फरवरी 2015 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए। ‘पांच साल केजरीवाल’ की झाड़ू चली और कांग्रेस पूरी तरह साफ हो गई। ऐसा पहली बार था जब राष्ट्रीय राजधानी में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल सका। दिल्ली में सिर्फ 9.8 प्रतिशत मतदाताओं ने हाथ का साथ दिया और पार्टी का वोट शेयर हैरतअंगेज रूप से 15 प्रतिशत तक गिर गया। 2013 में कांग्रेस को 19 लाख से ज्यादा वोट मिले थे लेकिन इस चुनाव में 8.4 लाख मतदाताओं ने ही हाथ का बटन दबाया। हालांकि आप की प्रचंड लहर के बावजूद बीजेपी अपना वोट शेयर बचाने में तकरीबन कामयाब रही थी। बीजेपी सिर्फ 1 प्रतिशत नुकसान के साथ 32.1 प्रतिशत वोट हासिल किए।
कांग्रेस की कीमत पर AAP का उभार
2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 24.55 प्रतिशत वोट शेयर (19.32 लाख मत) के साथ 8 सीटें जीती थीं। यह आम आदमी पार्टी के उभार का साल था और इसकी कीमत कांग्रेस ने चुकाई। जहां शीला दीक्षित नई दिल्ली सीट पर खुद केजरीवाल से चुनाव हारीं, वहीं आम आदमी पार्टी ने जोरदार आगाज के साथ 29.49 प्रतिशत वोट शेयर और 29 सीटें जीत लीं। बीजेपी 33.07 प्रतिशत वोट शेयर (26.04 लाख मत) और 31 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई लेकिन यह ज्यादा दिन नहीं चल सकी।
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