राहुल गाँधी आज पुलवामा हमले पर नफे-नुकसान की ओछी राजनीति कर रहे हैं। इस हिसाब से तो यह भी पूछा जाना चाहिए कि महात्मा गाँधी की हत्या का फायदा किसे हुआ? इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सिखों का नरसंहार कराने का लाभ किसे हुआ? राजीव गाँधी की हत्या के बाद सियासी फायदा किसने उठाया था?
पुलवामा आतंकी हमले की पहली बरसी पर आज जहाँ पूरा देश सीआरपीएफ के जवानों को याद कर रहा है और उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहा है, वहीं कॉन्ग्रेस नेता ने अपनी छोटी सोच को एक बार फिर से उजागर किया है। पुलवामा हमले के बाद राहुल गाँधी हर जगह ये ज्ञान देते नजर आए थे कि पुलवामा हमले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, लेकिन उन्होंने खुद ही मोदी विरोध के चक्कर में भारतीय सेना पर सवाल उठाए। अब इस हमले की पहली बरसी पर कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने एक ट्वीट कर साबित कर दिया है कि उनकी विकृत सोच साल भर बाद भी नहीं बदली है।
उन्होंने ट्वीट कर तीन सवाल पूछे हैं। पहले सवाल में उन्होंने पूछा है कि इस आतंकी हमले से सबसे ज्यादा फायदा किसे हुआ? इस सवाल का साफ मतलब है कि कॉन्ग्रेसियों को लगता है कि ये हमला भाजपा ने ही करवाया था क्योंकि उसको फायदा मिलता। उस समय भी कॉन्ग्रेस के कई नेताओं समेत तमाम विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग में शिकायत दी थी कि पीएम मोदी पुलवामा हमले और एयरस्ट्राइक का चुनावी फायदा लेने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल गाँधी अपने पहले सवाल के माध्यम से यह कहना चाह रहे हैं कि चूँकि बीजेपी पुलवामा हमले को चुनाव में भुनाना चाहती थी, इसलिए उसने यह हमला करवाया था।
राहुल गाँधी आज पुलवामा हमले पर नफे-नुकसान की ओछी राजनीति कर रहे हैं। इस हिसाब से तो यह भी पूछा जाना चाहिए कि महात्मा गाँधी की हत्या का फायदा किसे हुआ? लाल बहादुर शास्त्री जी की हत्या का लाभ किसे हुआ? इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सिखों का नरसंहार कराने का लाभ किसे हुआ? राजीव गाँधी की हत्या के बाद सियासी फायदा किसने उठाया था? खैर, देश ने कॉन्ग्रेस की इस शर्मनाक हरकत का जवाब लोकसभा चुनाव 2019 में दे दिया है, लेकिन ये अभी भी सेना के शौर्य पर सवाल करके गंदी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे।
कॉन्ग्रेस नेता ने अपने दूसरे सवाल में पूछा कि पुलवामा आतंकी हमले की हुई जाँच में क्या निकला? वहीं उनका तीसरा सवाल है कि बीजेपी सरकार में सुरक्षा में चूक के लिए किसकी जवाबदेही तय हुई? अंध-विरोध के चक्कर में ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर भी राहुल गाँधी ने बेतुके बयान देकर ओछी राजनीति का परिचय दिया है। राहुल गाँधी ने इस ट्वीट से अपनी संवेदनहीनता को प्रमाणित करने का काम किया है। एक सच्चे देशभक्त होने के नाते तो उन्हें तो सेना के वीरों पर गर्व होना चाहिए, जो जान को हथेली पर रखकर वर्दी धारण करते हैं और देश की रक्षा करते हैं। मगर वो तो इस पर आज भी राजनीतिक रोटियाँ सेंक रहे हैं। उनके इस ट्वीट के बाद तो लोग यह भी सवाल कर रहे हैं कि कॉन्ग्रेस भारत की राजनैतिक पार्टी है या पाकिस्तान की, जो आज बलिदान दिवस पर भी ओछी राजनीति कर रही है।
वैसे कुछ सवाल तो लोगों के पास भी है, जिसका जवाब राहुल गाँधी को देना चाहिए। जब देश का बँटवारा हुआ तब सरकार किसकी थी? जब पाक अधिकृत कश्मीर बना तब सरकार किसकी थी? जब मुंबई पर हमला हुआ तब सरकार किसकी थी? जब चीन ने ज़मीन हड़पी थी, तब सरकार किसकी थी? जब वीर सैनिकों के सर काट के पाकिस्तानी ले गए थे तब किसकी सरकार थी? जब बोफोर्स का घोटाला हुआ तब सरकार किसकी थी?
एक तरफ जहाँ पूरा देश जाबांजों की शहादत पर गम में डूबा है, वहीं दूसरी तरफ राहुल गाँधी ने दिखा दिया कि उनके लिए देशभक्ति से ऊपर राजनीति है। तभी तो इस मौके पर भी वो राजनीति करने से बाज नहीं आए। उन्होंने साबित कर दिया कि उन्हें तो बस अपनी राजनीति चमकाने से मतलब है। वैसे ये पहली बार नहीं है, जब कॉन्ग्रेस नेताओं ने इनकी शहादत पर सवाल उठाए हों या फिर इनका मजाक उड़ाया हो। उनके ट्वीट से उनकी मानसिकता साफ झलकती है, लेकिन हैरत की बात तो यह भी है कि कॉन्ग्रेस के किसी नेता की इतनी हिम्मत नहीं होती कि उनके इस तरह की बयान की निंदा कर सके। वैसे करेंगे भी कैसे, पूरी पार्टी को ही वीरों और भारतीय सेना के अपमान करने पर शर्म नहीं आती है।
उल्लेखनीय है कि कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह से लेकर, सलमान खुर्शीद, नवजोत सिंह सिद्धू और कमलनाथ तक सब ने लगातार इस पर सवाल उठाए। ये तो इनके सीनियर नेताओं के कुकर्म हैं, छोटे नेताओं को तो गिना भी नहीं जा रहा। कॉन्ग्रेस से राज्यसभा संसद बीके हरिप्रसाद ने इस हमले में मोदी और इमरान खान की मिलीभगत बताते हुए कहा था, “पुलवामा अटैक के बाद के घटनाक्रम पर यदि आप नजर डालेंगे तो पता चलता है कि यह पीएम नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच मैच फिक्सिंग थी।”
कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह जैसे कई नेता भारतीय सेना और IAF का मजाक बनाते दिखे थे। दिग्विजय सिंह ने पुलवामा हमले को ‘दुर्घटना’ बताया तो वहीं नवजोत सिंह सिद्धू जैसे कुछ नेता तो एयर स्ट्राइक पर ही यह कहकर सवाल उठाया था कि आतंकी मारने गए थे या पेड़ गिराने? गाँधी परिवार के बेहद क़रीबी और इंडियन ओवरसीज कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने अपना पाकिस्तान प्रेम दिखाते हुए कहा था कि पुलवामा हमले के लिए पूरे पाकिस्तान को दोषी ठहराना गलत है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मुंबई हमले के लिए भी पूरे पाकिस्तान पर आरोप लगाना सही नहीं है।
राहुल गाँधी की राजनीति से इतर पुलवामा हमले के एक साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वीरों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि भारत हमेशा हमारे बहादुरों और उनके परिवारों का आभारी रहेगा जिन्होंने हमारी मातृभूमि की संप्रभुता और अखंडता के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। देश उनकी शहादत को नहीं भूलेगा। वहीं सीआरपीएफ ने पुलवामा के वीरों को शत्-शत् नमन करते हुए लिखा, “तुम्हारे शौर्य के गीत, कर्कश शोर में खोए नहीं। गर्व इतना था कि हम देर तक रोए नहीं।”
पुलवामा आतंकी हमले की पहली बरसी पर आज जहाँ पूरा देश सीआरपीएफ के जवानों को याद कर रहा है और उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहा है, वहीं कॉन्ग्रेस नेता ने अपनी छोटी सोच को एक बार फिर से उजागर किया है। पुलवामा हमले के बाद राहुल गाँधी हर जगह ये ज्ञान देते नजर आए थे कि पुलवामा हमले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, लेकिन उन्होंने खुद ही मोदी विरोध के चक्कर में भारतीय सेना पर सवाल उठाए। अब इस हमले की पहली बरसी पर कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने एक ट्वीट कर साबित कर दिया है कि उनकी विकृत सोच साल भर बाद भी नहीं बदली है।
उन्होंने ट्वीट कर तीन सवाल पूछे हैं। पहले सवाल में उन्होंने पूछा है कि इस आतंकी हमले से सबसे ज्यादा फायदा किसे हुआ? इस सवाल का साफ मतलब है कि कॉन्ग्रेसियों को लगता है कि ये हमला भाजपा ने ही करवाया था क्योंकि उसको फायदा मिलता। उस समय भी कॉन्ग्रेस के कई नेताओं समेत तमाम विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग में शिकायत दी थी कि पीएम मोदी पुलवामा हमले और एयरस्ट्राइक का चुनावी फायदा लेने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल गाँधी अपने पहले सवाल के माध्यम से यह कहना चाह रहे हैं कि चूँकि बीजेपी पुलवामा हमले को चुनाव में भुनाना चाहती थी, इसलिए उसने यह हमला करवाया था।
राहुल गाँधी आज पुलवामा हमले पर नफे-नुकसान की ओछी राजनीति कर रहे हैं। इस हिसाब से तो यह भी पूछा जाना चाहिए कि महात्मा गाँधी की हत्या का फायदा किसे हुआ? लाल बहादुर शास्त्री जी की हत्या का लाभ किसे हुआ? इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सिखों का नरसंहार कराने का लाभ किसे हुआ? राजीव गाँधी की हत्या के बाद सियासी फायदा किसने उठाया था? खैर, देश ने कॉन्ग्रेस की इस शर्मनाक हरकत का जवाब लोकसभा चुनाव 2019 में दे दिया है, लेकिन ये अभी भी सेना के शौर्य पर सवाल करके गंदी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे।
कॉन्ग्रेस नेता ने अपने दूसरे सवाल में पूछा कि पुलवामा आतंकी हमले की हुई जाँच में क्या निकला? वहीं उनका तीसरा सवाल है कि बीजेपी सरकार में सुरक्षा में चूक के लिए किसकी जवाबदेही तय हुई? अंध-विरोध के चक्कर में ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर भी राहुल गाँधी ने बेतुके बयान देकर ओछी राजनीति का परिचय दिया है। राहुल गाँधी ने इस ट्वीट से अपनी संवेदनहीनता को प्रमाणित करने का काम किया है। एक सच्चे देशभक्त होने के नाते तो उन्हें तो सेना के वीरों पर गर्व होना चाहिए, जो जान को हथेली पर रखकर वर्दी धारण करते हैं और देश की रक्षा करते हैं। मगर वो तो इस पर आज भी राजनीतिक रोटियाँ सेंक रहे हैं। उनके इस ट्वीट के बाद तो लोग यह भी सवाल कर रहे हैं कि कॉन्ग्रेस भारत की राजनैतिक पार्टी है या पाकिस्तान की, जो आज बलिदान दिवस पर भी ओछी राजनीति कर रही है।
वैसे कुछ सवाल तो लोगों के पास भी है, जिसका जवाब राहुल गाँधी को देना चाहिए। जब देश का बँटवारा हुआ तब सरकार किसकी थी? जब पाक अधिकृत कश्मीर बना तब सरकार किसकी थी? जब मुंबई पर हमला हुआ तब सरकार किसकी थी? जब चीन ने ज़मीन हड़पी थी, तब सरकार किसकी थी? जब वीर सैनिकों के सर काट के पाकिस्तानी ले गए थे तब किसकी सरकार थी? जब बोफोर्स का घोटाला हुआ तब सरकार किसकी थी?
एक तरफ जहाँ पूरा देश जाबांजों की शहादत पर गम में डूबा है, वहीं दूसरी तरफ राहुल गाँधी ने दिखा दिया कि उनके लिए देशभक्ति से ऊपर राजनीति है। तभी तो इस मौके पर भी वो राजनीति करने से बाज नहीं आए। उन्होंने साबित कर दिया कि उन्हें तो बस अपनी राजनीति चमकाने से मतलब है। वैसे ये पहली बार नहीं है, जब कॉन्ग्रेस नेताओं ने इनकी शहादत पर सवाल उठाए हों या फिर इनका मजाक उड़ाया हो। उनके ट्वीट से उनकी मानसिकता साफ झलकती है, लेकिन हैरत की बात तो यह भी है कि कॉन्ग्रेस के किसी नेता की इतनी हिम्मत नहीं होती कि उनके इस तरह की बयान की निंदा कर सके। वैसे करेंगे भी कैसे, पूरी पार्टी को ही वीरों और भारतीय सेना के अपमान करने पर शर्म नहीं आती है।
उल्लेखनीय है कि कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह से लेकर, सलमान खुर्शीद, नवजोत सिंह सिद्धू और कमलनाथ तक सब ने लगातार इस पर सवाल उठाए। ये तो इनके सीनियर नेताओं के कुकर्म हैं, छोटे नेताओं को तो गिना भी नहीं जा रहा। कॉन्ग्रेस से राज्यसभा संसद बीके हरिप्रसाद ने इस हमले में मोदी और इमरान खान की मिलीभगत बताते हुए कहा था, “पुलवामा अटैक के बाद के घटनाक्रम पर यदि आप नजर डालेंगे तो पता चलता है कि यह पीएम नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच मैच फिक्सिंग थी।”
कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह जैसे कई नेता भारतीय सेना और IAF का मजाक बनाते दिखे थे। दिग्विजय सिंह ने पुलवामा हमले को ‘दुर्घटना’ बताया तो वहीं नवजोत सिंह सिद्धू जैसे कुछ नेता तो एयर स्ट्राइक पर ही यह कहकर सवाल उठाया था कि आतंकी मारने गए थे या पेड़ गिराने? गाँधी परिवार के बेहद क़रीबी और इंडियन ओवरसीज कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने अपना पाकिस्तान प्रेम दिखाते हुए कहा था कि पुलवामा हमले के लिए पूरे पाकिस्तान को दोषी ठहराना गलत है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मुंबई हमले के लिए भी पूरे पाकिस्तान पर आरोप लगाना सही नहीं है।
राहुल गाँधी की राजनीति से इतर पुलवामा हमले के एक साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वीरों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि भारत हमेशा हमारे बहादुरों और उनके परिवारों का आभारी रहेगा जिन्होंने हमारी मातृभूमि की संप्रभुता और अखंडता के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। देश उनकी शहादत को नहीं भूलेगा। वहीं सीआरपीएफ ने पुलवामा के वीरों को शत्-शत् नमन करते हुए लिखा, “तुम्हारे शौर्य के गीत, कर्कश शोर में खोए नहीं। गर्व इतना था कि हम देर तक रोए नहीं।”
Comments
Post a Comment