काश… मेहमान ट्रंप के लौटने तक सब्र रखती कांग्रेस!

लोकतंत्र में विपक्षी दल को सवाल पूछने का सिर्फ हक ही नहीं है, बल्कि उनकी जिम्मेदारी भी है. लेकिन जब अधीर रंजन अमेरिकी राष्ट्रपति को ‘मोगैंबो’ कहते हैं, तो कांग्रेस के सवाल पूछने की मंशा पर सवाल उठते हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत दौरे को लेकर कांग्रेस ने सारे मोर्चे खोल दिए हैं. पहले पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने खर्चे पर सवाल उठाए. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन ने मैडम सोनिया को भोज में न बुलाने पर आपत्ति जाहिर की. फिर रणदीप सुरजेवाला सवालों की लंबी फेहरिस्त ले आए.

सरकार और देश को आपत्ति नहीं होनी चाहिए. बतौर विपक्षी दल कांग्रेस को सवाल उठाने का अधिकार है. लेकिन टाइमिंग पर सवाल है. विदेश नीति, अर्थनीति और कूटनीति में खुद को बड़ी ही परिपक्व मानने वाली कांग्रेस को क्या दौरे के खत्म होने का इंतजार नहीं करना था?

रणदीप सुरजेवाला तालिबान से अमेरिकी डील के हवाले से इतिहास को खंगाल रहे हैं. सवाल पूछ रहे हैं कि कंधार कांड भूल गए? मसूद अजहर की रिहाई भूल गए? संसद हमले और पुलवामा की भी याद दिला रहे हैं. भारत को ड्यूटी फ्री इंपोर्ट की सुविधा से हटाने पर भी सवाल हैं.

सवाल अमेरिका की वजह से ईरान से कच्चे तेल के आयात में कटौती पर भी है और टैरिफ बढ़ने से भारतीय स्टील के निर्यात में 50 प्रतिशत की गिरावट पर भी. सवालों में आगे बढ़ते-बढ़ते सुरजेवाला ने ये भी पूछ लिया है कि अगर डोनाल्ड ट्रंप ‘अमेरिका फर्स्ट’ की बात कह रहे हैं, तो ‘इंडिया फर्स्ट’ पर मोदी चुप क्यों हैं?

सवाल अच्छे हैं, मगर सोच पर सवाल है

कांग्रेस के ये सारे सवाल जायज हो सकते हैं. लोकतंत्र में विपक्षी दल को ऐसे सवाल पूछने का सिर्फ हक ही नहीं है, बल्कि उनकी जिम्मेदारी भी है. लेकिन जब अधीर रंजन अमेरिकी राष्ट्रपति को ‘मोगैंबो’ कहते हैं, तो कांग्रेस के सवाल पूछने की मंशा पर सवाल उठते हैं. क्या घर आ रहे मेहमान के लिए शब्दों के चयन में सावधानी नहीं बरती जानी चाहिए? सोशल मीडिया पर लिखे जाने वाले शब्द लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता के नहीं हो सकते.

अधीर रंजन जब सोनिया गांधी को भोज में न्योता न मिलने पर नाराजगी जाहिर करते हुए बायकाट की बात करते हैं, तब भी विरोध के पीछे की नीयत पर सवाल होते हैं. अधीर को लगता है कि अमेरिका व्यापारी नजर आ रहा है और हम खरीदार.

पार्टी के दिग्गज अर्थशास्त्रियों से अधीर ने तो जाना ही होगा कि आज के दौर की रीत ही यही है. हर कोई अपना माल बेचने के लिए वैश्विक बाजार में बैठा है. रही बात कौन व्यापार कर रहा है और कौन महज खरीदार की भूमिका में है, तो हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि ट्रंप मोदी को ‘हार्ड बारगेनर’ कहकर कई बार अपनी पीड़ा का इजहार कर चुके हैं.

ट्रंप का चुनावी प्रचार भी है तो क्या?
अहमदाबाद के इवेंट को अधीर रंजन ट्रंप का चुनावी प्रचार भी मानते हैं. मान लेते हैं उनका ये मानना कुछ हद तक सही भी हो सकता है. अमेरिका में 16 लाख से ज्यादा गुजराती हैं. अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की तादात में से 20 प्रतिशत हिस्सा गुजरातियों का ही है. अमेरिका में चुनाव है और ट्रंप के अहमदाबाद आने के पीछे की ये वजह हम निश्चित ही देख सकते हैं. लेकिन सिर्फ इसी को वजह मान लेना हास्यास्पद है.

लेकिन तभी हमें ये भी याद रखना होगा कि अमेरिका हमारा सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार है. कुल विदेशी कारोबार का 10 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा हम अमेरिका से करते हैं. हमारे कुल निर्यात का 16 प्रतिशत अमेरिका को ही जाता है. यही नहीं, हम अमेरिकी हथियार के तीसरा सबसे बड़े खरीददार भी हैं.

बेशक, इसका बड़ा आर्थिक-व्यापारिक लाभ अमेरिका को मिलता है, लेकिन रक्षा-सुरक्षा की हमारी जरूरतें कितनी अहम हैं ये भी हम भूल नहीं सकते. अमेरिका से हमारे देश के छात्रों का भी बड़ा गहरा रिश्ता है. वहां 2 लाख से ज्यादा भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं. हमारी आईटी कंपनियों के लिए अमेरिका बड़ा बाजार है.

ऐसा नहीं है कि ये बातें कांग्रेस को पता नहीं. उनकी टीम में तो विदेश और अर्थनीति से जुड़े दिग्गजों की लंबी फेहरिस्त रही है. लेकिन राजनीति है कि छूटती नहीं. भले ही बात दूसरे देशों (और वह भी अमेरिका जैसे देश) से रिश्ते की हो

प्रियंका गांधी को खर्चे की चिंता!
प्रियंका गांधी की चिंता अलग है. वह खर्चे को लेकर चिंतित हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के हवाले से ट्रंप के दौरे पर कथित तौर से होने वाले 100 करोड़ पर सवाल उठा रही हैं. इसके स्रोत पूछ रही हैं. और पूछ रही हैं कि सरकार क्या छिपा रही है?

दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले कांग्रेस विरोधी दलों ने लचर तैयारियों पर खूब सवाल उठाए थे. करप्शन के आरोप भी लगे थे. तब कांग्रेस पार्टी ने देश की इमेज का वास्ता दिया था. अब वही कांग्रेस आरोपों को लगाने के लिए अमेरिका राष्ट्रपति के दौरे निपट जाने का इंतजार कर सकती थी. शायद ये राष्ट्रहित में भी होता और कांग्रेस की इमेज भी थोड़ी संजीदा बनती.

अभी पार्टी बस इतना कहकर छोड़ सकती थी कि ट्रंप के दौरे को लेकर हमारे कुछ गंभीर सवाल हैं, जिन्हें हम ये दौरा निपटने के बाद उठाएंगे. तब शायद कांग्रेस की बातों को मीडिया में जगह भी ज्यादा मिलती. लेकिन यहां तो पार्टी में ही होड़ लग गई है.

कुछ मौकों पर प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की कुछ परेशानियों का जिक्र अंतरराष्ट्रीय मंचों पर किया, तो कांग्रेस ने खूब सवाल उठाए. भारत की छवि खराब करने का आरोप भी लगाया. ट्रंप के भारत दौरे से जुड़े सवालों की झड़ी लगाने वाली कांग्रेस क्या अपने उन आरोपों के आईने में अपने शर्मिंदा चेहरे को देख पाएगी?

ट्रंप की शान नहीं… हमारा मान भी तो बढ़ेगा
महाशक्ति का महाबली राष्ट्रपति अगले कुछ ही घंटों में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की धरती पर कदम रखने वाला है. मेहमाननवाजी में दुनिया में अव्वल भारत की भूमि ने स्वागत की ऐसी तैयारी की है, जिसे दुनिया देखेगी.

भारत अब खुद में एक बड़ी शक्ति है. ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति का ग्रैंड वेलकम तो बनता ही है. साथ में, ये हमारी इमेज के लिए भी जरूरी है. क्योंकि ऐसा कर हम जितना डोनाल्ड ट्रंप को सम्मान दे रहे होंगे, उससे कहीं ज्यादा दुनिया में हमारा मान बढ़ रहा होगा.

हम नमस्ते ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति को कह रहे होंगे. अहमदाबाद की भव्यता और चकाचौंध देख हमें दुनिया सलाम कर रही होगी.

विदेश से रिश्तों पर राजनीति कैसी?
हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनमी हैं. ये गौरव की बात है. हमने 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनने का सपना देखा है. ये साहस की बात है. लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हमें अब यहां से क्या कुछ करना है, ये देश के नेतृत्व को बखूबी पता होना चाहिए और बतौर देश के नागरिक हमें सरकार के फैसलों पर भरोसे की आदत भी डालनी चाहिए.

राजनीति की मजबूरी इसकी इजाजत नहीं देता है, तो ये उनकी परेशानी है. पूरे देश की नहीं. ट्रंप का ये ऐतिहासिक दौरा हो या इससे पहले दुनिया भर के देशों से बेहद करीबी रिश्ते बनाने की प्रधानमंत्री की पहल. ये सारी कोशिशें देश को उसी खास मुकाम पर पहुंचाने की अलग-अलग सीढ़ी हो सकते हैं. फैसलों का विरोध करते हुए हमें इन बातों का भी ख्याल रखना चाहिए.

खासतौर से तब और भी ज्यादा, जब बात दूसरे देश से भारत के रिश्ते की हो. कांग्रेस को तो शासन का लंबा अनुभव रहा है! वह एक के बाद एक चूक क्यों कर रही है? 25 फरवरी को रात 10 बजे तक इंतजार कर लेने में बिगड़ ही क्या जाता?

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