पूर्व विदेश मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नटवर सिंह ने रविवार को कहा कि उन्हें खुशी है कि भारत का बंटवारा हुआ, नहीं तो ‘मुस्लिम लीग’ देश को चलने नहीं देती तथा ‘सीधी कार्रवाई के दिन’ और भी हो सकते थे। गौरतलब है कि मुहम्मद अली जिन्ना नीत मुस्लिम लीग ने अलग राष्ट्र बनाने की मांग को लेकर ‘सीधी कार्रवाई’ का आह्वान किया था। 16 अगस्त, 1946 (जिसे 1946 की कलकत्ता नरसंहार या सीधी कार्रवाई दिवस भी कहते हैं) तत्कालीन ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत के कलकत्ता में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच सांप्रदायिक दंगे भड़क गये थे।
राज्यसभा सदस्य एमजे अकबर की नयी पुस्तक ‘गांधीज़ हिंदुज्म : द स्ट्रगल अगेंस्ट जिन्नाज इस्लाम’ के लोकार्पण के मौके पर सिंह ने यह बात कही। इस पुस्तक का लोकार्पण पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने आवास पर किया। नटवर सिंह (88) ने कहा, ‘मेरे विचार से मुझे खुशी है कि भारत का विभाजन हुआ, क्योंकि अगर भारत का बंटवारा नहीं होता, तो हमें और भी ‘सीधी कार्रवाई कार्रवाई दिवस’ देखने पड़ते। पहली बार यह जिन्ना (मुहम्मद अली जिन्ना) के जीवनकाल में 16 अगस्त, 1946 को हुआ, जिसमें हजारों हिंदू कोलकाता (तब कलकत्ता) में मारे गये और फिर उसके जवाब में बिहार में हिंसा की घटनाएं हुई, जिसमें हजारों मुस्लिम मारे गये।
उन्होंने कहा, ‘इसलिए भी कि मुस्लिम लीग देश को चलने नहीं देती।’ मुस्लिम लीग के बारे में अपनी राय के पक्ष में नटवर सिंह ने दो सितंबर 1946 में गठित अंतरिम भारत सरकार का उदाहरण दिया और किस तरह से मुस्लिम लीग ने शुरुआत में (वायसराय की कार्यकारिणी) परिषद के उपाध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में शामिल होने से इनकार कर दिया था और बाद में केवल प्रस्तावों को खारिज करने के लिए इसमें शामिल हो गयी।
सिंह ने कहा, ‘इसलिए व्यापक स्तर पर आप यह कल्पना कीजिए कि अगर भारत का बंटवारा नहीं होता, तो मुस्लिम लीग (शासन का) कामकाज हमारे लिए बहुत ही मुश्किल कर देती। साथ ही, उस समय एक हफ्ते में ही सरकार की स्थिति कमजोर हो जाती. उन्होंने (महात्मा) गांधी और जिन्ना का उल्लेख दो बहुत ही ‘महान’ और ‘जटिल’ व्यक्ति के रूप में किया।
सिंह ने कहा, ‘उनके साथ रहना असंभव होता, क्योंकि गांधीजी के मानदंड बहुत ऊंचे थे और जिन्ना का स्वभाव बहुत ही अक्खड़ था, जिनके साथ संभवत: मैं नहीं रह सकता था।’ उन्होंने वहां मौजूद लोगों से कहा कि वह कार्यक्रम में एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने गांधी को जीवित देखा है। पूर्व विदेशमंत्री ने कहा, उनका मानना है कि भारत के अंतिम गर्वनर जनरल सी राजगोपालचारी के मनाने पर महात्मा गांधी ने जिन्ना को महत्व दिया।
उन्होंने कहा, कई तरह से और मेरा मानना है कि गांधी जी ने जिन्ना को महत्व दिया। वर्ष 1944 में गांधीजी मालाबार हिल स्थित जिन्ना हाउस 17 बार गये, लेकिन जिन्ना एक बार भी उनके यहां नहीं आये। नटवर सिंह ने कहा, ‘फिर गांधीजी क्यों वहां गए? मैं जानता हूं, क्योंकि सी राजगोपालाचारी ने ऐसा करने के लिए उन्हें मनाया था।’
उन्होंने कहा, ‘कई वर्षों तक जिन्ना कांग्रेस के सदस्य रहे, लेकिन जब गांधी फलक पर आए तो जिन्ना अपने स्वभाव की वजह से उनके असहयोग आंदोलन में सहज नहीं महसूस कर पाए और क्रमिक रूप से अपने रास्ते अलग कर लिए। वर्ष 1928 में असली अलगाव हुआ, जब जिन्ना वकील बनने लंदन गये, क्योंकि उन्होंने अपने लिए राजनीतिक भविष्य के बारे में सोचा था।’
मुखर्जी के मुताबिक, पुस्तक को अच्छी तरह से और गहरे शोध कर लिखा गया है, जो विभाजन के इतिहास का विश्लेषण करने में अहम संदर्भ हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘यह पुस्तक स्पष्ट रूप से धर्मनिरपेक्ष के उन जरूरी अध्यात्म को रेखांकित करता है, जिसका महात्मा गांधी ने समर्थन किया था। साथ ही, यह जिन्ना के विभाजनकारी रंग को भी दिखाता है, जो उन्होंने राजनीतिक लक्ष्य के लिए धर्म को दिया।’
मुखर्जी ने कहा, ‘यह इस बात का भी जिक्र करता है कि कैसे महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश के विभाजन के खिलाफ अंतिम समय तक डटी रही।’ कार्यक्रम में मौजूद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने पुस्तक की सराहना करते हुए कहा कि गांधी जी ने बयान दिया था कि वह 15 अगस्त को पाकिस्तान जाना चाहेंगे, यह उस बड़े दर्द का सांकेतिक प्रकटीकरण था, जो वह महसूस कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘यह महज बंटवारा नहीं था, लेकिन गांधी ने बंटवारे के बाद की इस स्थिति को महसूस किया कि रिश्ते (भारत और पाकिस्तान के बीच) ऐसे होंगे, जो संभवत: दोनों देशों को दर्द और दुख देंगे, जो सही साबित हुआ।’
डोभाल ने कहा, ‘संभवत: 70 साल का इतिहास लंबा नहीं है. समय गुजरने के साथ हम अपने अनुभवों से सीखेंगे। संभवत: हम सभी प्रयोगों के बाद सही चीजें करेंगे। हमें एहसास होगा कि हमारा सह अस्तित्व संभव और वास्तविकता है तथा यही एक मात्र चीज अंतत: लाभदायक है।’ इस पुस्तक को ब्लूम्सबरी ने प्रकाशित किया गया है और इसमें 1940 से 1947 के बीच की घटनाओं का उल्लेख है।
राज्यसभा सदस्य एमजे अकबर की नयी पुस्तक ‘गांधीज़ हिंदुज्म : द स्ट्रगल अगेंस्ट जिन्नाज इस्लाम’ के लोकार्पण के मौके पर सिंह ने यह बात कही। इस पुस्तक का लोकार्पण पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने आवास पर किया। नटवर सिंह (88) ने कहा, ‘मेरे विचार से मुझे खुशी है कि भारत का विभाजन हुआ, क्योंकि अगर भारत का बंटवारा नहीं होता, तो हमें और भी ‘सीधी कार्रवाई कार्रवाई दिवस’ देखने पड़ते। पहली बार यह जिन्ना (मुहम्मद अली जिन्ना) के जीवनकाल में 16 अगस्त, 1946 को हुआ, जिसमें हजारों हिंदू कोलकाता (तब कलकत्ता) में मारे गये और फिर उसके जवाब में बिहार में हिंसा की घटनाएं हुई, जिसमें हजारों मुस्लिम मारे गये।
उन्होंने कहा, ‘इसलिए भी कि मुस्लिम लीग देश को चलने नहीं देती।’ मुस्लिम लीग के बारे में अपनी राय के पक्ष में नटवर सिंह ने दो सितंबर 1946 में गठित अंतरिम भारत सरकार का उदाहरण दिया और किस तरह से मुस्लिम लीग ने शुरुआत में (वायसराय की कार्यकारिणी) परिषद के उपाध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में शामिल होने से इनकार कर दिया था और बाद में केवल प्रस्तावों को खारिज करने के लिए इसमें शामिल हो गयी।
सिंह ने कहा, ‘इसलिए व्यापक स्तर पर आप यह कल्पना कीजिए कि अगर भारत का बंटवारा नहीं होता, तो मुस्लिम लीग (शासन का) कामकाज हमारे लिए बहुत ही मुश्किल कर देती। साथ ही, उस समय एक हफ्ते में ही सरकार की स्थिति कमजोर हो जाती. उन्होंने (महात्मा) गांधी और जिन्ना का उल्लेख दो बहुत ही ‘महान’ और ‘जटिल’ व्यक्ति के रूप में किया।
सिंह ने कहा, ‘उनके साथ रहना असंभव होता, क्योंकि गांधीजी के मानदंड बहुत ऊंचे थे और जिन्ना का स्वभाव बहुत ही अक्खड़ था, जिनके साथ संभवत: मैं नहीं रह सकता था।’ उन्होंने वहां मौजूद लोगों से कहा कि वह कार्यक्रम में एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने गांधी को जीवित देखा है। पूर्व विदेशमंत्री ने कहा, उनका मानना है कि भारत के अंतिम गर्वनर जनरल सी राजगोपालचारी के मनाने पर महात्मा गांधी ने जिन्ना को महत्व दिया।
उन्होंने कहा, कई तरह से और मेरा मानना है कि गांधी जी ने जिन्ना को महत्व दिया। वर्ष 1944 में गांधीजी मालाबार हिल स्थित जिन्ना हाउस 17 बार गये, लेकिन जिन्ना एक बार भी उनके यहां नहीं आये। नटवर सिंह ने कहा, ‘फिर गांधीजी क्यों वहां गए? मैं जानता हूं, क्योंकि सी राजगोपालाचारी ने ऐसा करने के लिए उन्हें मनाया था।’
उन्होंने कहा, ‘कई वर्षों तक जिन्ना कांग्रेस के सदस्य रहे, लेकिन जब गांधी फलक पर आए तो जिन्ना अपने स्वभाव की वजह से उनके असहयोग आंदोलन में सहज नहीं महसूस कर पाए और क्रमिक रूप से अपने रास्ते अलग कर लिए। वर्ष 1928 में असली अलगाव हुआ, जब जिन्ना वकील बनने लंदन गये, क्योंकि उन्होंने अपने लिए राजनीतिक भविष्य के बारे में सोचा था।’
मुखर्जी के मुताबिक, पुस्तक को अच्छी तरह से और गहरे शोध कर लिखा गया है, जो विभाजन के इतिहास का विश्लेषण करने में अहम संदर्भ हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘यह पुस्तक स्पष्ट रूप से धर्मनिरपेक्ष के उन जरूरी अध्यात्म को रेखांकित करता है, जिसका महात्मा गांधी ने समर्थन किया था। साथ ही, यह जिन्ना के विभाजनकारी रंग को भी दिखाता है, जो उन्होंने राजनीतिक लक्ष्य के लिए धर्म को दिया।’
मुखर्जी ने कहा, ‘यह इस बात का भी जिक्र करता है कि कैसे महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश के विभाजन के खिलाफ अंतिम समय तक डटी रही।’ कार्यक्रम में मौजूद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने पुस्तक की सराहना करते हुए कहा कि गांधी जी ने बयान दिया था कि वह 15 अगस्त को पाकिस्तान जाना चाहेंगे, यह उस बड़े दर्द का सांकेतिक प्रकटीकरण था, जो वह महसूस कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘यह महज बंटवारा नहीं था, लेकिन गांधी ने बंटवारे के बाद की इस स्थिति को महसूस किया कि रिश्ते (भारत और पाकिस्तान के बीच) ऐसे होंगे, जो संभवत: दोनों देशों को दर्द और दुख देंगे, जो सही साबित हुआ।’
डोभाल ने कहा, ‘संभवत: 70 साल का इतिहास लंबा नहीं है. समय गुजरने के साथ हम अपने अनुभवों से सीखेंगे। संभवत: हम सभी प्रयोगों के बाद सही चीजें करेंगे। हमें एहसास होगा कि हमारा सह अस्तित्व संभव और वास्तविकता है तथा यही एक मात्र चीज अंतत: लाभदायक है।’ इस पुस्तक को ब्लूम्सबरी ने प्रकाशित किया गया है और इसमें 1940 से 1947 के बीच की घटनाओं का उल्लेख है।
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